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Showing posts from May, 2018
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                                                       गूगल से साभार चित्र          राजा शांतनु ने निषाद कन्या से कहा -मेरी प्रियतमा मुझे छोड़कर चली गयी है तबसे मैंने अपना दूसरा विवाह नहीं किया है। हे कांते !मैं इस समय विधुर हूँ -तुम जैसी सर्वांग सुंदरी को देखकर मेरा मन अपने वशमें नहीं रहगया है।        राजा की अमृतरस के सामान मथुर तथा मनोहारी बात सुनकर वह दास कन्या सुगंधा सात्विक भावसे युक्त होकर धैर्य धारण करके राजा से बोली -हे राजन !आपने मुझसे जोकुछ कहा वह यथार्थ है किन्तु आप अच्छी तरह जान लीजिये कि मैं स्वंतंत्र नहीं हूँ। मेरे पिताजी ही मुझे दे सकते हैं। अतएव आप उन्हीं से मेरे लिए याचना कीजिये         मैं एक निषाद की कन्या होती हुई भी स्वेच्छा चारिणी नहीं हूँ। मैं सदा पिता के वश में रहती हुई सब काम करती हूँ। यदि मेरे पिता जी मुझे आपको देना स्व...
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           ऋषियों ने सूतजी से पूछा -हे धर्मज्ञ व्यासजी की सत्यवती नाम की माता जो पवित्र गंध वाली थी। राजा शांतनु को पत्नी रूप से कैसे प्राप्त हुईं ?हमें विस्तार से बताइये          सूतजी बोले -राजर्षि शांतनु सदा आखेट करने में तत्पर रहते थे। वे वन में जाकर मृगों आदि का वध किया करते थे। राजा शांतनु केवल चार वर्ष तक भीष्म के साथ उसी प्रकार सुख से रहे जिस प्रकार भगवान शंकर कार्तिकेय के साथ आनंद पूर्वक रहते थे।          एक बार वे महाराज शांतनु वन में वाण छोड़ते हुए बहुत से गैंडों आदि का वध करते हुए किसी समय यमुने नदी के किनारे जा पहुंचे। राजा ने वहां पर कहीं से आती हुई उत्तम गंध को सूंघा तब उस सुगन्धि के उदगम का पता लगाने के लिए वे वन में विचरने लगे।       वे वड़े असमंजस में पड़ गए। की यह मनोहर सुगन्धि न मंदार पुष्प की है और न कस्तूरी की है ,न मानती की है न चम्पा की है और न तो केतकी की ही है। मैंने ऐसी अनुपम सुगन्धि पूर्व में कभी नहीं अनुभव की। मुझे मुग्ध कर दे...