
गूगल से साभार चित्र राजा शांतनु ने निषाद कन्या से कहा -मेरी प्रियतमा मुझे छोड़कर चली गयी है तबसे मैंने अपना दूसरा विवाह नहीं किया है। हे कांते !मैं इस समय विधुर हूँ -तुम जैसी सर्वांग सुंदरी को देखकर मेरा मन अपने वशमें नहीं रहगया है। राजा की अमृतरस के सामान मथुर तथा मनोहारी बात सुनकर वह दास कन्या सुगंधा सात्विक भावसे युक्त होकर धैर्य धारण करके राजा से बोली -हे राजन !आपने मुझसे जोकुछ कहा वह यथार्थ है किन्तु आप अच्छी तरह जान लीजिये कि मैं स्वंतंत्र नहीं हूँ। मेरे पिताजी ही मुझे दे सकते हैं। अतएव आप उन्हीं से मेरे लिए याचना कीजिये मैं एक निषाद की कन्या होती हुई भी स्वेच्छा चारिणी नहीं हूँ। मैं सदा पिता के वश में रहती हुई सब काम करती हूँ। यदि मेरे पिता जी मुझे आपको देना स्व...