ऋषियों ने सूतजी से पूछा -हे धर्मज्ञ व्यासजी की सत्यवती नाम की माता जो पवित्र गंध वाली थी। राजा शांतनु को पत्नी रूप से कैसे प्राप्त हुईं ?हमें विस्तार से बताइये 

        सूतजी बोले -राजर्षि शांतनु सदा आखेट करने में तत्पर रहते थे। वे वन में जाकर मृगों आदि का वध किया करते थे। राजा शांतनु केवल चार वर्ष तक भीष्म के साथ उसी प्रकार सुख से रहे जिस प्रकार भगवान शंकर कार्तिकेय के साथ आनंद पूर्वक रहते थे। 

        एक बार वे महाराज शांतनु वन में वाण छोड़ते हुए बहुत से गैंडों आदि का वध करते हुए किसी समय यमुने नदी के किनारे जा पहुंचे। राजा ने वहां पर कहीं से आती हुई उत्तम गंध को सूंघा तब उस सुगन्धि के उदगम का पता लगाने के लिए वे वन में विचरने लगे। 

     वे वड़े असमंजस में पड़ गए। की यह मनोहर सुगन्धि न मंदार पुष्प की है और न कस्तूरी की है ,न मानती की है न चम्पा की है और न तो केतकी की ही है। मैंने ऐसी अनुपम सुगन्धि पूर्व में कभी नहीं अनुभव की। मुझे मुग्ध कर देने वाली यह वायु कहाँसे आ रही है?इस प्रकार सोचते हुए राजा शांतनु गंध के लोभ से मोहित सुंगंधित वायु का अनुसरण करते हुए वनप्रदेश में विचरण करने लगे 

       उनहोंने यमुना नदी के तट पर बैठी हुई एक दिव्यदर्शन वाली स्त्री को देखा जो मलिन वस्त्र धारण करने और श्रृंगार न करने पर भी मनोहर दीख रही थी। उस श्याम नयनों वाली स्त्री को देखकर राजा आश्चर्य में पड़ गए। और उन्हें इस बात का विशवास हो गए की यह सुंगन्धि इसी स्त्री के शरीर की है। 

         उसका अदभुत एवं अतिशय सुन्दर रूप सुब प्राणियों का मन स्वाभाविक रूप से अपनी ओर आकर्षित करने वाली सुगन्धि ,उसकी अवस्था तथा उसका वैसा शुभ नवयौवन देखकर राजा शांतनु को महान विस्मय हुआ 

             यह कौन है और इस समय यह कहाँ से आयी है कोइ देवांगना है या मानवी स्त्री,यह कोइ गन्धर्व कन्या अथवा नागकन्या है ?मैं इस सुंगंधा कामिनी के विषय में कैसे जानकारी प्राप्त करूँ 

            इस प्रकार विचार करके भी वे राजा जब कुछ निश्चय नहीं कर सके,तब तत्क्षण गंगाजी का स्मरण करते हुए वे काम के वशीभूत हो गए और तटपर बैठी हुई उस सुन्दरी से उनहोंने पूछा -हे प्रिये !तुम कौन हो किसकी पुत्री हो ?तुम इस वन में क्यों बैठी हो ?हे सुनयने !क्या तुम अकेली ही हो। तुम विवाहित हो या कुमारी यह वताओ 

              हे अरालनेत्रे !तुम जैसी मनोरमा स्त्री को देखकर मैं कामातुर हो गया हूँ ,हे प्रिये विस्तार पूर्वक मुझे यह बताओ कि तुम कौन हो और क्या करना चाहती हो। 

            महाराज शांतनु के वचन सुनकर वह सुन्दर नयनों वाली स्त्री मुस्करा कर बोली -हे राजन आप मुझे निषाद कन्या और अपने पिता की आज्ञा में रहने वाली कन्या समझें। हे नृपेंद्र !मैं अपने धर्म का अनुसरण करती हुई जल में यह नौका चलाती हूँ। हे अर्थपति !पिताजी अभी ही घर गए हैं आपके सम्मुख यह बातें मैंने सत्य कही हैं 

             यह कहकर वह निषाद कन्या मौन हो गयी तब काम से पीड़ित महाराज शांतनु ने उससे कहा -मुझ कुरुवंशी वीर को तुम अपना पति बना लो ,जिससे तुम्हारा यौवन व्यर्थ न जाए। 

              मेरी कोइ दूसरी पत्नी नहीं है अतः हे मृगनयनी तुम मेरी धर्म पत्नी बन जाओ। हे प्रिये !मैं सर्वदा के लिए तुम्हारा वशवर्ती दास बन जाऊंगा मुझे कामदेव पीड़ित कर रहा है।    

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