गूगल से साभार चित्र
राजा शर्याति के महल वापस जाने के पश्चयात सुकन्या अपने पति च्यवन मुनि की सेवा में संलग्न हो गयी। धर्मपरायण वह उस आश्रम में अग्नियों की सेवा में निरंतर रहने लगी। सर्वदा पति सेवा में तत्पर रहने वाली वह बाला विभित प्रकार के स्वादिष्ट फल तथा कंदमूल लेकर मुनि को अर्पण करती थी।
वह शीतकाल में उष्ण जल से उन्हें शीघ्रता पूर्वक स्नान करने के पश्चयात मृगचर्म पहनकर पवित्र आसान पर विराजमान कर देती थी। पुनः उनके आगे तिल ,जौ ,कुशा और कमंडल रखकर उनसे कहती थी मुनि श्रेष्ट अब आप अपना नित्य कर्म करें। उसके पश्चयात सुकन्या पति का हाथ पकड़कर उठती और पुनः किसी आसान अथवा कोमल शय्या पर उन्हें बिठा देती थी।
तत्पश्च्यात राजकुमारी मुनि को भोजन करती उसके पश्चयात पति को आदर पूर्वक आचवन करके बड़े प्रेम के साथ उन्हें ताम्बूल और पूगीफल प्रदान करती थी। मुनि के मुख शुद्ध करने के बाद अपने शरीर सम्बन्धी कार्य संपन्न करती थी। उसके उपरांत स्वयं फलाहार करकर वह पुनः मुनि के चरण दबाकर उनकी सेवा करती थी। रात्रि में जब च्यवन मुनि सो जाते थे तब वे भी उनके चरणों के पास सो जाती थी।
ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सुकन्या मुनि को आश्रम से दूर ले जा कर नित्यकर्म के कार्य को पूरा कराती थी। तथा दातुन करकर स्न्नान के लिए शुद्ध तथा परम पवित्र जल उपलब्ध कराती थी। प्रातःकालीन अग्निहोत्र करके देवताओं का पूजन करना उसका नित्य का कार्य था। इस प्रकार वह श्रेष्ठ सुकन्या तपस्वी पति प्राप्त कर तप तथा नियम के साथ प्रेमपूर्वक प्रतिदिन उनकी सेवा करती रहती थी।
किसी समय सूर्य के पुत्र दोनों अश्विनी कुमार क्रीड़ा करते हुए च्यवन मुनि के आश्रम के पास पहुंचे। उन अश्विनी कुमारों ने जल में स्नान करके निवृत हुयी तथा अपने आश्रम की और जाती हुयी उस सर्वांग सुंदरी सुकन्या को देख लिया। देवकन्या के समान कांति वाली उस सुकन्या को देखकर दोनों अश्विनी कुमार अत्यधिक मुग्ध हो गए और शीघ्र ही उसके पास पहुंचकर आदर पूर्वक कहने लगे।
हे वरारोहे ! थोड़ी देर ठहरो। हे गजगामिनी ! हम दोनों सूर्य देव के पुत्र अश्विनी कुमार तुमसे कुछ पूछना चाहते हैं। सच - सच बताओ की तुम किसकी पुत्री हो ? तुम्हारे पति कौन हैं ? हे चरुलोचने ! इस सरोवर में स्न्नान करने के लिए तुम अकेले ही उद्यान में क्यों आयी हो ? हे कमललोचने ! तुम तो सौंदर्य में दूसरी लक्ष्मी की भांति प्रतीत हो रही हो। हे शोभने ! हम यह रहस्य जानना चाहते हैं। शीघ्र बताओ।
हे कांते ! हे चंचल नयनों वाली जब तुम्हारे ये कोमल तथा नग्न चरण कठोर भूमि पर पड़ते हैं तथा आगे की और बढ़ते हैं तब ये हमारे हृदय में व्यथा उत्पन्न करते है। तुम विमान पर चलने योग्य हो। तब तुम नंगे पैर पैदल ही क्यों चल रही हो? इस वन में तुम्हारा नंगे पैर चलना क्यों हो रहा है ?
तुम सैकड़ो दासियों को साथ लेकर घर से क्यों नहीं निकली ? हे वरानने ! तुम राजपुत्री हो अथवा अप्सरा हो ? यह सच्च - सच बता दो। तुम्हारी माता धन्य है जिससे तुम उत्पन्न हुयी हो। तुम्हारे पिता भी धन्य हैं। तुम्हारे पति के भाग्य के विषय में हम तुम से कह नहीं सकते।
हे सुलोचने ! यहाँ की भूमि ,देव लोक से भी बढ़कर है। पृथ्वी तल पर पड़ता हुआ तुम्हारा चरण इसे पवित्र बना रहा है। तुम्हारी अधिक प्रसंसा क्या करें ? अब तुम सत्य बता दो। की तुम्हारे पिता कौन हैं ? और तुम्हारे पतिदेव कहाँ रहते हैं ? उन्हें आदर पूर्वक देखने की हमारी इच्छा है।
अश्विनी कुमारो की बात सुनकर परम सुंदरी राजकुमारी सुकन्या अत्यंत लज्जित हो गयी। देवकन्या के सदृश्य उस राजकुमारी ने कहा - आप लोग मुझे शर्याति की पुत्री तथा च्यवन मुनि की पत्नी समझे। मैं एक पतिव्रता स्त्री हूँ। मेरे पिता ने स्वेछ्या से मेरा विवाह मुनि से किया है। हे देवताओं ! मेरे पतिदेव वृद्ध तथा नेत्रहीन हैं। वे परम तपस्वी हैं। मैं प्र्सनता के साथ दिन - रात उनकी सेवा करती हूँ। आप दोनों कौन हैं ? और यहाँ क्यों पधारे हैं ? मेरे पतिदेव इस समय आश्रम में विराजमान है। आप लोग वहां चलकर आश्रम को पवित्र कीजिये। ही
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