गूगल से साभार चित्र
मित्रों आज से हम जो कथानक आरम्भ कर रहे हैं। उसमे एक पत्नी का पति व्रत ,एक राजा की मर्यादा एवं एक ऋषि की तपस्या का फल सम्मिलित है। कथानक बड़ा अवश्य है परन्तु अत्यंत रुचिकर भी है।.
वैवस्वत मनु के पुत्र शर्याति नाम वाले ऐश्वर्यशाली राजा थे। उनकी चार हजार भार्यायें थी। वे सभी अत्यंत रूपवती तथा समस्त शुभ लक्षणों से युक्त थी।राजा की सभी पत्नियाँ प्रेम पूर्वक रहती थी। उन सभी के बीच में सुकन्या नाम की एक ही सुन्दर पुत्री थी। सुन्दर मुस्कान से सरोवर रहने वाली वह कन्या पिता एवं समस्त माताओं की अत्यंत दुलारी थी।
उस नगर से थोड़ी ही दूर पर मानसरोवर के समान एक सुन्दर तालाब था। जिसमे उतरने के लिए सीड़ियों का मार्ग बना हुआ था। स्वच्छ जल से परिपूर्ण उस सरोवर में हंस ,बतख ,चक्रवाक ,जलकाक और सारस पक्षियों का समूह था। जो की उसकी शोभा बढ़ा रहा था। पाँच प्रकार के कमलों से सुशोभित था। जिनके ऊपर भवरे मड़राते रहते थे।
उस सरोवर के तट पर बहुत से सुन्दर वृक्ष और पौंधे थे। सुन्दर और स्वच्छ लताओं से वह सरोवर घिरा हुआ था। कोकिलों एवं मयूरो की ध्वनि से सदा निनादित रहता था। उस सरोवर के निकट ही वृक्षों से घिरे एक शुभ स्थान पर शांत चित्त वाले महा तपस्वी भृगु वंशी च्यवन मुनि रहते थे। उस स्थान को निर्जन समझकर उन्होंने मन को एकाग्र कर के तपस्या में लीन थे। वे आसन पर पूर्ण रूप से मौन धारण कर प्राणवायु पर अधिकार एवं इन्द्रियो को वश में करके तपस्या कर रहे थे। उन तपोनिधि ने भोजन भी त्याग दिया था।
वे जल ग्रहण किये बिना जगदम्बा का ध्यान करते थे। उनके शरीर पर लताएँ घिरी हुयी थीं तथा दीमकों द्वारा वे पूरी तरह से ढक लिए गए थे। बहुत दिनों तक इस प्रकार बैठे रहने के कारण उन पर दीमक की चीटियां चढ़ गयी और उससे वे घिर गए। वे बुद्धि संपन्न मुनि पूरी तरह से मिट्टी की ढेर की तरह दीखते थे।
किसी समय राजा शर्याति रानियों के साथ विहार करने के लिए उस उत्तम सरोवर पर आये। स्वच्छ जल से परिपूर्ण उस सुन्दर सरोवर में राजा शर्याति सुंदरियों को साथ लेकर जल क्रीड़ा करने लगे।
लक्ष्मी की तुलना करने वाली तथा चंचल स्वभाव वाली वह सुकन्या वन में आकर सुन्दर फूलों को एकत्र करती हुयी ,सखियों के साथ विहार करने लगी। वह सभी प्रकार के आभूषणों से अलंकृत थी। तथा उसके पैरों में घुँगरू मधुर ध्वनि कर रहे थे। इधर -उधर भ्रमण करती हुयी वह राजकुमारी मिट्टी का ढेर बने च्यवन मुनि के निकट पहुंच गयी। क्रीड़ा में आसक्त वह सुकन्या वल्मीक बने मुनि के निकट बैठ गयी और उसे वाल्मीक के छिद्रों से जुगनू की तरह चमकने वाले दो ज्योतियाँ दिखयी पड़ी।
यह क्या है ऐसा सोच कर उसने एक नुकीला काँटा लेकर उस मिट्टी को हटाया। मुनि ने उस राजकुमारी से जो की बहुत सुन्दर थी ,को पास में मिट्टी हटते देखा। तपोनिधि मुनि ने धीमे स्वर में उस सुन्दर सुकन्या को देखकर कहा - हे विशाल नयनो वाली दूर चली जाओ। मैं एक तपस्वी हूँ। इस बॉबी को काँटे से मत हटाओ। मुनि के कहने पर उसने उनकी बातें नहीं सुनी। यह कौन सी चमकाने वाली वस्तु है यह कहकर उसने मुनि के नेत्र भेद डाले।
देव की प्रेरणा से राजकुमारी उनके नेत्र बींध कर संशय भाव से खेलती हुयी और मैंने यह क्या कर दिया यह सोचती हुयी वहां से चली गयी। नेत्रों के बिंद जाने पर महर्षि को क्रोध हुआ और अत्यधिक वेदना से पीड़ित होने के कारण वे बहुत दुखित हुए।
उसी समय से राजा के सैनिकों का मल - मूत्र अवरुद्ध हो गया। मंत्री सहित राजा को विशेष रूप से यह कष्ट झेलना पड़ा। हाथी, घोड़े ,ऊँट आदि सभी प्राणियों के मल तथा मूत्र का अवरोध हो जाने के कारण राजा शर्याति अत्यंत दुखी हुए।
आगे और .....
Comments
Post a Comment