गूगल से साभार चित्रण
अश्विनी कुमारों ने सुकन्या की बात सुनकर उससे कहा - हे कल्याणी ! तुम्हारे पिता ने तुम्हें उन तपस्वी को कैसे सौंप दिया। तुम तो इतनी सुन्दर हो, की तुम्हें देवताओं के यहाँ होना चाहिए। इतनी सुन्दर स्त्रियाँ तो वहां भी नहीं हैं। तुम्हें तो दिव्य वस्त्र और सुन्दर आभूषण धारण करने चाहिए। इन वल्कल वस्त्रों में तुम सोभा नहीं पा रही हो।
हे प्रिये ! विधाता ने यह कौन सा कृत्य किया है जो की तुम इस नेत्र हीन मुनि को पति रूप में प्राप्त करके इस वन में महान कष्ट भोग रही हो ? तुमने इन्हें व्यर्थ ही वरण किया। नवीन अवस्था प्राप्त करके तुम इनके साथ सोभा नहीं पा रही हो। भली - भांति लक्ष्य साध करके कामदेव के द्वारा वेग पूर्वक छोड़े गए बाण किस पर गिरेंगे। तुम्हारे पति तो इस प्रकार के असमर्थ हैं।
विशाल लोचने तुम इस योग्य नहीं हो। अतः तुम किसी दूसरे को अपना पति बाना लो। ऐसे नेत्रहीन मुनि को पति रूप में पाकर तुम्हारा जीवन व्यर्थ हो गया हैं। हम लोग इस तरह से वन में तुम्हारे निवास करने तथा वल्कल वस्त्र धारण करने को उचित नहीं मानते। अतः तुम सम्यक विचार करके हम दोनों में से किसी एक को अपना पति बना लो। हे सुंदरी ! तुम इस मुनि की सेवा करती हुयी अपने यौवन को व्यर्थ क्यों कर रही हो ?
हे कांते ! हमें वरण करके तुम इंद्र के नंदन वन में तथा कुवेर के चैत्र रथ वन में स्वेच्छया पूर्वक विहार करो। तुम इस अंधे तथा वृद्ध के साथ अपमानित होकर अपना जीवन कैसे बिताओगी। तुम समस्त शुभ लक्षणों से युक्त एक राजकुमारी हो। अतः तुम भाग्यहीन स्त्री की भांति इस निर्जन वन में अपना समय व्यर्थ क्यों बिता रही हो ?
कृश कटि - प्रदेश वाली हे राजकुमारी हम दोनों में से किसी एक के साथ देव भवनों में चलकर नानाविध सुखों का भोग करो। एक तो तुम्हारी युवावस्था और उस पर भी एक अंधे की सेवा। तुम्हें करनी पड़ रही है। हे राजकुमारी क्या दुःख भोगना ही तुम्हारा अभीष्ट है। तुम अत्यंत कोमल हो। अतः इस वन में इसप्रकार फल तथा जल ले आना कदापि उचित नहीं है।
उन अश्विनी कुमारों की यह बात सुनकर राजकुमारी सुकन्या थर - थर कांपने लगी और धैर्य पूर्वक उनसे बोली - हे देवताओं ! आप दोनों सूर्य पुत्र हैं। आपलोग सर्वज्ञ तथा देवताओं में सम्मानीय है। मुझ पतिव्रता तथा धर्मपरायण स्त्री के प्रति आपको ऐसी बात नहीं करनी चाहिए। मेरे पिता ने मुझे इन्ही योगपरायण मुनि को सौंप दिया है । तब मैं व्यभिचारिणी स्त्रियों के द्वारा सेवित उस मार्ग का अनुशरण कैसे करूँ ?
भगवान सूर्य समस्त प्राणियों के कर्मो के साक्षी है। वे सब कुछ देखते रहते हैं। आप लोगो को ऐसी बात नहीं करनी चाहिए। कोई भी कुलीन कन्या अपने पति को छोड़कर अन्य पुरुष को स्वीकार कैसे कर सकती है। धर्म सिद्धांतों को जानने वाले आप दोनों अपनी इच्छा के अनुसार जहाँ चाहें चले जाइये। अन्यथा हे देवताओं ! मैं आप लोगो को श्राप दे दूंगी। पति की भक्ति में तत्पर रहने वाली मैं ,महाराज शर्याति की पुत्री सुकन्या हूँ।
सुकन्या की यह बात सुनकर अश्विनी कुमार बहुत विस्मय में पड़ गए। उसके बाद मुनि च्यवन के भय से सशंकित उन दोनों ने सुकन्या से कहा - हे राज पुत्री ! तुम्हारे इस पति धर्म से हम प्रसन्न हैं। तुम वर मांगो। हम तुम्हारा कल्याण अवश्य करेंगे। तुम यह निश्चय जान लो कि हम देवताओं में श्रेष्ठ वैद्य हैं। हम अपनी चिकित्सा से तुम्हारे पति को रूपवान तथा युवा बना देंगे। जब हम ऐसा करेंगे तब तुम समान रूप और देह वाले हम तीनो में से किसी एक को पति चुन लेना।
तब उन दोनों की बात सुनकर सुकन्या को बड़ा आश्चर्य हुआ और उसने अपने पति के पास जाकर अश्विनी कुमारो द्वारा कही गयी सारी बात कहने लगी।
हे स्वामिन ! आपके आश्रम में सूर्य पुत्र दोनों अश्विनी कुमार आये हुए हैं। हे भृगु नंदन दिव्य देह वाले उन देवताओं को मैंने स्वयं देखा है। मुझ सर्वांग सुंदरी को देखकर वह दोनों कामासक्त हो गए। हे स्वामिन ! उन्होंने मुझ से कहा है कि हम लोग तुम्हारे पति च्यवन मुनि को नव यौवन से संपन्न दिव्य शरीर वाला तथा नेत्रों से युक्त बना देंगे। इसमें एक शर्त है। वह यह है की, जब हम तुम्हारे पति को अपने समान अंग तथा रूप वाला बना दें तब तुम हम तीनो में से किसी एक को अपना पति चुन लेना।
कृपया अब आप मुझे बताएं की हम इस संकट में कार्य के आ जाने पर मुझे क्या करना चाहिए। देवताओं की माया बड़ी विचित्र होती है। उन दोनों के इस भेद को मैं समझ नहीं पा रही हूँ। अतः हे सर्वज्ञ ! अब आप ही मुझे आदेश दीजिये आपकी जो इच्छा होगी मैं वही करुँगी। / //
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