
पर्वतराज हिमालय ने आदिशक्ति से पुछा -हे माहेश्वरी !अब आप ज्ञान प्रदान करने वाले योग का सांगोपांग वर्णन कीजिये जिसकी साधना से मैं तत्वदर्शन की प्राप्ति के योग्य हो जाऊं। आदिशक्ति बोलीं --हे नग !यह योग न आकाश मण्डल में है न पृथ्वी ताल पर है और न तो रसातल में ही है। योग विद्या के विद्वानों ने जीव और आत्मा के ऐक्य यानी एकाकारिता को ही योग कहा है। हे अनघ !उस योग विद्या में विघ्न उत्पन्न करने वाले काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह ,और मात्सर्ग नामक ये छह प्रकार के दोष बताये गए हैं। अतः योग के अंगों के द्वारा उन विघ्नों का उच्छेद करके योगियों को योग की प्राप्ति करनी चाहिए। देवी बोलीं --मुनियों ने जीवात्मा और परमात्मा में नित्य समत्व भावना रखने को समाधि क...