गूगल से साभार चित्र
हे पृथ्वीपते यह मेरा शरीर आपकाही है यद्यपि मैं समर्थ नहीं हूँ फिर भी आप कहिये मैं आपकी क्या सेवा
करूँ ?मेरे रहते आपको किसी प्रकार की चिंता नहीं होनी चाहिए। में आपका असाध्य कार्य भी तत्काल पूरा करूंगा।
हे राजन !आप बताइये की आपको किस बात की चिंता है ?मैं अभी धनुष लेकर उसका निवारण कर दूंगा। यदि मेरे इस शरीर से भी आपका कार्य सिद्ध हो सके तो मैं आपकी अभिलाषा पूर्ण करने को तत्पर हूँ। उस पुत्र को धिक्कार है ,जो समर्थ होकर भी अपने पिता की इच्छा पूर्ण नहीं करता। जिस पुत्र के द्वारा पिता की चिंता दूर न हुई ,उस पुत्र का जन्म लेने का क्या प्रयोजन ?
सूतजी बोले !-अपने पुत्र गांग्ये का वचन सुनकर महाराज शांतनु मन में लज्जित होते हुए उससे शीघ्र ही कहने लगे /
राजा बोले -हे पुत्र ! मुझे यही महान चिंता है की तुम मेरे इकलौते पुत्र हो /यद्यपि तुम बलवान स्वाभिमानी और साहसी पुत्र हो /तथापि केवल एक पुत्र होने के कारण मुझ पिता का जीवन व्यर्थ है ,क्योंकि यदि कहीं किसी समय में तुम्हें अमरगति प्राप्त हो गए तो मैं असहाय होकर क्या कर सकूंगा ?यही मुझे बड़ी चिंता है ,इसी कारण
मैं आजकल दुखित रहता हूँ /हे पुत्र ! इसके अतिरिक्त मुझे दूसरी कोइ चिंता नहीं है जिसे मैं तुम्हारे सामने कहूँ /
सूतजी बोले।-यह सुनकर गांगेय ने वृद्ध मंत्रियों से पूछा कि लज्जा से परिपूर्ण महाराज मुझे कुछ बता नहीं रहे हैं। आप लोग राजा की भावना जानकर सही एक निश्चित कारण मुझे बताइये ,मैं प्रसन्नता पूर्वक उसे संपन्न करूंगा
यह सुनकर मंत्रीगण राजा के पास गए और सब कारण सही -सही जानकर उन्होंने युवराज गांगेय से कह दिया.तब उनका अभिप्राय जानकर गांगेय विचार करने लगे। मंत्रियों के साथ गंगा पुत्र देवव्रत उस निषाद के घर शीघ्र गए और प्रेम के साथ विनम्र होकर यह कहने लगे।
गांगेय बोले -हे परंतप !आप अपनी सुंदरी कन्या मेरे पिताजी के लिए प्रदान करदें -यही मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ आपकी यह कन्या मेरी माता हों और मैं इनका सेवक रहूँगा।
निषाद ने कहा -हे महाभाग !आप स्वयं ही इसे अपनी भार्या बनाइये ,क्योंकि आपके रहते इसका पुत्र राजा नहीं हो सकता।
गांगेय बोले -आपकी यह कन्या मेरी माता है। मैं राज्य नहीं करूंगा। इसका पुत्र ही निश्चित रूप से राज्य करेगा इसमें कुछ भी संदेह नहीं है।
निषाद ने कहा -मैंने आपकी बात सही मान ली ,परन्तु यदि आपका पुत्र बलवान हुआ तो वह बलपूर्वक राज्य को निश्चय ही ले लेगा
गांगेय बोले -हे तात !मैं कभी विवाह नहीं करूँगा ,मेरा यह वचन सर्वथा सत्य है -यह मैंने भीष्म -प्रतिज्ञा कर ली
सूतजी बोले -गांगेय द्वारा की गयी प्रतिज्ञा सुनकर निषाद ने उन राजा शांतनु को अपनी सर्वांग सुंदरी कन्या सत्यवती सौंप दी।
इस प्रकार राजा शांतनु ने प्रिय सत्यवती से विवाह कर लिया। वे नृप श्रेष्ठ शांतनु पूर्व में सत्यवती से व्यास जी का जन्म नहीं जानते थे।
हे राजन !आप बताइये की आपको किस बात की चिंता है ?मैं अभी धनुष लेकर उसका निवारण कर दूंगा। यदि मेरे इस शरीर से भी आपका कार्य सिद्ध हो सके तो मैं आपकी अभिलाषा पूर्ण करने को तत्पर हूँ। उस पुत्र को धिक्कार है ,जो समर्थ होकर भी अपने पिता की इच्छा पूर्ण नहीं करता। जिस पुत्र के द्वारा पिता की चिंता दूर न हुई ,उस पुत्र का जन्म लेने का क्या प्रयोजन ?
सूतजी बोले !-अपने पुत्र गांग्ये का वचन सुनकर महाराज शांतनु मन में लज्जित होते हुए उससे शीघ्र ही कहने लगे /
राजा बोले -हे पुत्र ! मुझे यही महान चिंता है की तुम मेरे इकलौते पुत्र हो /यद्यपि तुम बलवान स्वाभिमानी और साहसी पुत्र हो /तथापि केवल एक पुत्र होने के कारण मुझ पिता का जीवन व्यर्थ है ,क्योंकि यदि कहीं किसी समय में तुम्हें अमरगति प्राप्त हो गए तो मैं असहाय होकर क्या कर सकूंगा ?यही मुझे बड़ी चिंता है ,इसी कारण
मैं आजकल दुखित रहता हूँ /हे पुत्र ! इसके अतिरिक्त मुझे दूसरी कोइ चिंता नहीं है जिसे मैं तुम्हारे सामने कहूँ /
सूतजी बोले।-यह सुनकर गांगेय ने वृद्ध मंत्रियों से पूछा कि लज्जा से परिपूर्ण महाराज मुझे कुछ बता नहीं रहे हैं। आप लोग राजा की भावना जानकर सही एक निश्चित कारण मुझे बताइये ,मैं प्रसन्नता पूर्वक उसे संपन्न करूंगा
यह सुनकर मंत्रीगण राजा के पास गए और सब कारण सही -सही जानकर उन्होंने युवराज गांगेय से कह दिया.तब उनका अभिप्राय जानकर गांगेय विचार करने लगे। मंत्रियों के साथ गंगा पुत्र देवव्रत उस निषाद के घर शीघ्र गए और प्रेम के साथ विनम्र होकर यह कहने लगे।
गांगेय बोले -हे परंतप !आप अपनी सुंदरी कन्या मेरे पिताजी के लिए प्रदान करदें -यही मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ आपकी यह कन्या मेरी माता हों और मैं इनका सेवक रहूँगा।
निषाद ने कहा -हे महाभाग !आप स्वयं ही इसे अपनी भार्या बनाइये ,क्योंकि आपके रहते इसका पुत्र राजा नहीं हो सकता।
गांगेय बोले -आपकी यह कन्या मेरी माता है। मैं राज्य नहीं करूंगा। इसका पुत्र ही निश्चित रूप से राज्य करेगा इसमें कुछ भी संदेह नहीं है।
निषाद ने कहा -मैंने आपकी बात सही मान ली ,परन्तु यदि आपका पुत्र बलवान हुआ तो वह बलपूर्वक राज्य को निश्चय ही ले लेगा
गांगेय बोले -हे तात !मैं कभी विवाह नहीं करूँगा ,मेरा यह वचन सर्वथा सत्य है -यह मैंने भीष्म -प्रतिज्ञा कर ली
सूतजी बोले -गांगेय द्वारा की गयी प्रतिज्ञा सुनकर निषाद ने उन राजा शांतनु को अपनी सर्वांग सुंदरी कन्या सत्यवती सौंप दी।
इस प्रकार राजा शांतनु ने प्रिय सत्यवती से विवाह कर लिया। वे नृप श्रेष्ठ शांतनु पूर्व में सत्यवती से व्यास जी का जन्म नहीं जानते थे।
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