
एक समय की बात है, कि एक महा मूर्ख जंगली आदमी शिकार खेलते हुए वहाँ आ पंहुचा। उस धनुषधरी किरात के वाण से एक सुअर घायल हो गया , और वह उतथ्य मुनि के आश्रम में पहुंच गया। उसकी देह खून से लत -पत थी। दीन - हीन पशु पर उतथ्य मुनि की दृष्टि पड़ी। दया के फलस्वरुप उतथ्य मुनि काँप उठे। फिर तो उनके मुख से सारस्वत बीज ' ऐ ' का उच्चारण हो गया। पहले इस मन्त्र को न कभी सुना था और न ही जाना था। यह तो किसी अदृश्य प्रेरणा से ही उनके मुख पर आ गया था। इधर वह सुअर आश्रम में एक झाड़ी में छिप गया। इसके बाद वह निषाद राज शिकारी वहां पहुंच गया। उसने मुनि को प्रणाम कर पूछा कि, वह सुअर किधर गया? मैं जनता हूँ कि आप सत्यव्रत हैं। मेरा सारा परिवार इस समय भूखा है। मैं उस परिवार की भूख शांत करने के लिए ही इधर आया हूँ। मेरा कोई रोजगार नहीं है। मैं बिलकुल सत्य कहता हूँ। अच्छे अथव...