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Showing posts from June, 2017
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      एक समय की बात है, कि एक महा  मूर्ख जंगली आदमी शिकार खेलते हुए वहाँ आ पंहुचा।  उस धनुषधरी किरात के वाण  से एक सुअर  घायल हो गया , और  वह उतथ्य मुनि के आश्रम में पहुंच गया।  उसकी देह खून से लत -पत थी।  दीन - हीन  पशु पर उतथ्य मुनि की दृष्टि  पड़ी।  दया के फलस्वरुप उतथ्य मुनि काँप उठे।  फिर तो उनके मुख से सारस्वत बीज    ' ऐ  ' का उच्चारण हो गया।  पहले इस मन्त्र को न कभी सुना था और न ही जाना था।  यह तो किसी अदृश्य प्रेरणा से ही उनके मुख पर आ गया था।  इधर वह सुअर  आश्रम में एक झाड़ी में छिप  गया। इसके बाद वह निषाद  राज शिकारी वहां पहुंच गया।  उसने मुनि को प्रणाम कर  पूछा  कि, वह सुअर किधर गया? मैं  जनता हूँ कि आप सत्यव्रत हैं।  मेरा सारा परिवार इस समय भूखा है।  मैं  उस परिवार की भूख शांत करने के  लिए ही इधर आया हूँ।  मेरा  कोई रोजगार नहीं है।  मैं  बिलकुल सत्य कहता हूँ।  अच्छे अथव...
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कौशल देश में देवदत्त नाम का एक ब्राह्मण रहता था।  उसके कोई संतान नहीं थी।  पुत्र प्राप्ति के लिए उसने एक यज्ञ कराया।  यज्ञ करने वाले मुनियों में एक मुनि गोविल भी थे।  जो मंत्र का उच्चारण करते समय बीच में स्वास  भी ले रहे थे।  इस पर कुपित होकर देवदत्त ने गोविल मुनि से कहा- मुनिवर तुम बड़े  मुर्ख हो।  जो मेरे इस यज्ञ में स्वर हीन मंत्र का उच्चारण कर दिया।  यह सुनकर मुनि गोविल ने क्रोध में आकर देवदत्त को श्राप दे दिया ,कि  तुम्हें शब्द शून्य प्रचंड मुर्ख पुत्र प्राप्त होगा।  इस पर देवदत्त ने खेद जताते हुए मुनि से कहा - मुनिवर एक तो मैं  पुत्र के न होने पर पहले ही दुःखी था।  फिर आपने मुझे श्राप दे दिया।  मुनिवर मुर्ख ब्राह्मण को किसी भी देश , राज्य तथा राजा के यहाँ जगह नहीं मिलती है। मुर्ख ब्राह्मण की कोई भी क्रिया फलित नहीं होती।  मुनिवर मुर्ख पुत्र का होना मृत्यु से भी कष्टकर  है।  महामुनि आप इस श्राप से उद्धार  करने की मुझ पर कृपा करें।  मैं अपना मष्तक आप के चरणों में झुकता हूँ। ...
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श्री आदिशक्ति माताजी की लीला  दोस्तों अब हम श्री भगवती जगदम्बिका जो कि आदिशक्ति हैं , के आशीर्वाद के फलस्वरुप एक मुर्ख  मानव भी कितना बड़ा विद्वान  बन जाता है। उस कथानक को पढ़ेंगे।  एक समय राजा जन्मेजय ने श्री व्यास  से भगवती जगदम्बिका जी के आशीर्वादों के विषय में किसी कथा को सुनने की इच्छा  प्रकट की, जिस पर व्यास जी ने राजा  की   जिज्ञासा  को शांत करने को कहा।  श्री  व्यास जी बोले - राजन यह पुराण प्रसंग सुनो - बहुत पहले की बात है, मुनियों के समाज में मैंने यह कथा सुनी थी।  एक बार मैं  भ्रमण करता हुआ पुण्य भूमि नैमिष्यारण्य  में पहुंच गया।  जहाँ बहुत से मुनि एकत्रित  थे।  कठोर व्रत का पालन करने वाले एवं  जीवन मुक्त सभी ब्रह्मा जी के मानसपुत्र वहां पधारे थे।   मानस पुत्र - '' सृष्टि  के आरम्भ में मनुष्यों की उत्पत्ति उन के तपोबल के द्वारा उनके तेज से होती थी। '' उस समय उन मुनियों के समाज में कथा प्रारम्भ हो रही थी।  उन मुनियों  में से एक जगदग्नि ...
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श्री आदिशक्ति की लीला  इस प्रकार त्रिदेव की जिज्ञासा को शांत करके भगवती देवी ने ब्रह्मा , विष्णु , शंकर को आदेश दिया की तुम भली - भाटी सावधान होकर अपने - अपने कार्यो में संलग्न हो जाओ | महान पराक्रमी दैत्य मुधु व कैटभ का वध मैंने ही विष्णु के द्वारा कराया हैं | अब तुम्हे अपना स्थान बना कर सृष्टि का पालन एवं संहार तुम्हारे कार्य है | यह कहकर आदि शक्ति भगवती ने तीनों देवों को विदा किया | पुरुष रूप में उनकी प्रतिष्ठा हुयी | देवी के परम अदभुत रूप का सदा स्मरण करते हुए वे तीनों अपने - अपने कार्यों में संलग्न हो गये |  ब्रह्मा जी कहते है - इस प्रकार कहकर भगवती जगदम्बिका ने हमें अपने महल से विदा कर दिया | उनहोंने शुद्ध आचरण वाली सहक्तियों में से भगवन विष्णु के लिए महालक्ष्मी को , शंकर  के लिये महाकाली को, और मेरे लिये सरस्वती को पत्नी बनाने की आज्ञा दी | और उनहोंने  कहा , आज से वही तुम्हारी शक्तियां है | अब हम उस स्थान से चल पड़े  |  यात्रा काल में हमारे विभाग में चलते ही वे द्वीप , वह देवी और सुधा सागर सब के सब अदृश्य हो गए | पुनः हमें विभाग ही दिखा...