श्री आदिशक्ति की लीला 

इस प्रकार त्रिदेव की जिज्ञासा को शांत करके भगवती देवी ने ब्रह्मा , विष्णु , शंकर को आदेश दिया की तुम भली - भाटी सावधान होकर अपने - अपने कार्यो में संलग्न हो जाओ | महान पराक्रमी दैत्य मुधु व कैटभ का वध मैंने ही विष्णु के द्वारा कराया हैं | अब तुम्हे अपना स्थान बना कर सृष्टि का पालन एवं संहार तुम्हारे कार्य है | यह कहकर आदि शक्ति भगवती ने तीनों देवों को विदा किया | पुरुष रूप में उनकी प्रतिष्ठा हुयी | देवी के परम अदभुत रूप का सदा स्मरण करते हुए वे तीनों अपने - अपने कार्यों में संलग्न हो गये | 

ब्रह्मा जी कहते है - इस प्रकार कहकर भगवती जगदम्बिका ने हमें अपने महल से विदा कर दिया | उनहोंने शुद्ध आचरण वाली सहक्तियों में से भगवन विष्णु के लिए महालक्ष्मी को , शंकर  के लिये महाकाली को, और मेरे लिये सरस्वती को पत्नी बनाने की आज्ञा दी | और उनहोंने  कहा , आज से वही तुम्हारी शक्तियां है | अब हम उस स्थान से चल पड़े  |  यात्रा काल में हमारे विभाग में चलते ही वे द्वीप , वह देवी और सुधा सागर सब के सब अदृश्य हो गए | पुनः हमें विभाग ही दिखायी दिया | दूसरी कोई वास्तु वहां नहीं थी | वह विमान ही दिखायी दिया | दूसरी कोई वस्तु वहां नहीं था | वह विमान बहुत विशाल था | उस पर बैठकर हम लोग उस कमल के पास पहुंचे , जहाँ केवल जल ही जल था | और मधु और कैटभ नामक दानव श्री विष्णु के द्वारा काल के ग्रास बन चुके थे | और इस प्रकार ब्रह्मा जी सृष्टि के बनाने वाले तथा विष्णु जी सृस्टि का पालन पोषण करने वाले तथा शंकर जी , सृष्टि के संहार करने के कार्य में आज तक लगे हुये हैं |   

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