एक समय की बात है, कि एक महा  मूर्ख जंगली आदमी शिकार खेलते हुए वहाँ आ पंहुचा।  उस धनुषधरी किरात के वाण  से एक सुअर  घायल हो गया , और  वह उतथ्य मुनि के आश्रम में पहुंच गया।  उसकी देह खून से लत -पत थी।  दीन - हीन  पशु पर उतथ्य मुनि की दृष्टि  पड़ी।  दया के फलस्वरुप उतथ्य मुनि काँप उठे।  फिर तो उनके मुख से सारस्वत बीज   ' ऐ  ' का उच्चारण हो गया।  पहले इस मन्त्र को न कभी सुना था और न ही जाना था।  यह तो किसी अदृश्य प्रेरणा से ही उनके मुख पर आ गया था।  इधर वह सुअर  आश्रम में एक झाड़ी में छिप  गया। इसके बाद वह निषाद  राज शिकारी वहां पहुंच गया।  उसने मुनि को प्रणाम कर  पूछा  कि, वह सुअर किधर गया? मैं  जनता हूँ कि आप सत्यव्रत हैं।  मेरा सारा परिवार इस समय भूखा है।  मैं  उस परिवार की भूख शांत करने के  लिए ही इधर आया हूँ।  मेरा  कोई रोजगार नहीं है।  मैं  बिलकुल सत्य कहता हूँ।  अच्छे अथवा बूरे किसी भी उपाय से कुटुंब का पालन - पोषण करना तो अनिवार्य ही है।  ब्राह्मण देव आप सत्यव्रती हैं।  सच्ची बात बता दें, कि  मेरे वाण  से मरा हुआ सुअर कहाँ गया ?
           इस प्रकार निषाद राज के पूछने पर मुनि के मन में भांति - भांति के विचार उठाने लगे।  नहीं देखा है ये कहने का क्या उपाय है , कि मेरा सत्य व्रत भी न टूटे।  अगर मैं सत्य बताता हूँ तो वह सुअर को मार देगा।  इस तरह उतथ्य सोचते रहे जब उतथ्य ने उस दया पात्र को देखा  तो उनके मुख से अनायास ' ऐ ' शब्द निकल पड़ा था।  अतः उसे सुनकर भगवती जगदम्बिका प्रसन्न हो गयी और उन्होंने उतथ्य मुनि को अलभ्य विद्या प्रदान कर दी।  भगवती के बग्बीज मंत्र का उच्चारण हो जाने से मुनि को सम्पूर्ण विद्याएँ प्राप्त हो गयी।  सत्य बोलने की अभिलाषा रखने वाले धर्मात्मा उतथ्य दयाशील तो थे ही ,उन्होंने  सामने खड़े निषाद राज से एक श्लोक कहा -
'देखने वाली जो आँख हैं  वे बोल नहीं सकती ,और जो वाणी बोलती है वह  देखती नहीं '' फिर तुम अपना कार्य साधने की धुन में क्यों बार - बार पूछते हो?  इस प्रकार कहने पर वह पशुघाती व्याध  वहां  से चला गया।  अब सारे भू - मंडल में उतथ्य मुनि की सत्यव्रत नाम से प्रसिद्ध हो गयी।  उसके बाद मुनि ने उस मन्त्र का विधिपूर्वक जाप किया - यह समाचार प्राप्त होने पर उन के पिता उनके आश्रम पर गए।  तथा बड़े आदर के साथ उन्हें घर पर ले आये।
        राजन उन आदिशक्ति भगवती जगदम्बिका की सदा भक्तिपूर्वक उपासना करनी चाहिए।  वे पराशक्ति ही सारे जगत की कारण हैं।  भक्तिपूर्वक स्मरण , पूजन , ध्यान , नामोच्चारण एवं स्थवन करने पर भगवती सभी अभिलाषों को  पूर्ण करती हैं।  इसी से लोग उन्हें '' कामदा ''   कहते हैं।  इस जगत में सुखियों को देखकर यह निश्चित कर लेना चाहिए की उन्होंने भगवती की निरंतर उपासना की है। इसलिए वे सुखी हैं।
         दोस्तों हम अगले पाठांश में अपने शत्रुओं के बारे में चर्चा करेंगे। वे शत्रु हमारे ही अंदर विद्ययमान हैं।

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