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Showing posts from January, 2018
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              राजा शर्याति जब चिंता के सागर में डूबे हुए थे ,उसी समय सुकन्या ने चिंता से आकुल अपने पिता को संयोग वश देख लिया। उन्हें देखते ही प्रेम से परिपूर्ण हृदय वाली वह सुकन्या अपने पिता राजा शर्याति के पास गयी और वहां जाकर उनसे पूछने लगी। हे राजन ! कमल के समान नेत्र वाले बैठे हुए इन युवा मुनि को देखकर चिंता के कारण व्याकुल मुखमण्डल आप इस समय क्या सोच रहे हैं ? हे पिताजी ! इधर आईये और मेरे पति को प्रणाम कीजिये। हे मनुवंशीय राजन ! इस समय आप शोक मत कीजिये।         तब अपनी पुत्री सुकन्या की बात सुनकर क्रोध से संतप्त राजा शर्याति अपने सामने खड़ी उस कन्या से कहने लगे - हे पुत्री ! परम तपस्वी वृद्ध तथा नेत्रहीन वे मुनि च्यवन कहाँ है ? ये मदोन्मत युवक कौन हैं ? इस विषय में मुझे महान  संदेह हो रहा है। दुराचार में लिप्त रहने वाली हे पापिनी ! हे कुलनाशिनी ! क्या तुमने च्यवन मुनि को मार डाला और काम के वसीभूत होकर इस पुरुष का नये पति के रूप में वरण कर लिया। इस आश्रम में रहने वाले उन मुनि को मैं इस समय नहीं देख रहा ...
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              अश्विनी कुमारों के द्वारा वर प्राप्त कर सुन्दर रूप ,नेत्र ,यौवन तथा अपनी भर्या को पा  कर च्यवन मुनि अत्यंत हर्षित हुए। उन महा तेजस्वी मुनि ने अश्विनी कुमारों से कहा - हे देववरो ! आप दोनों ने मेरा महान उपकार किया है। आप लोगों ने मुझे नेत्र ,युवावस्था तथा सुन्दर रूप प्रदान किया है। अतः मैं भी आपका कुछ उपकार करूँ। इसके लिए आपसे प्रार्थना कर रहा हूँ। हे देववरो ! जो मनुष्य उपकार करने वाले मित्र का किसी प्रकार का उपकार नहीं करता उस मनुष्य को धिक्कार है। ऐसा मनुष्य पृथ्वी लोक में अपने उपकारी मित्र का ऋणि होता है।        अतएव हे देववरो ! मुझे नूतन शरीर प्रदान करने के उपकार के बदले, मैं इस समय आपकी कोई अभिलषित वस्तु आपको प्रदान करना चाहता हूँ। मैं आप दोनों को वह अभीष्ट वस्तु प्रदान करूँगा जो देवताओं तथा दानवों के लिए भी अलभ्य है।अब आप लोग  अपना मनोरथ प्रकट करें।         च्यवन मुनि के वचन सुनकर वे दोनों अश्विनी कुमार मुनि से कहने लगे - हे मुने ! पिताजी की कृपा से हमारा स...
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    गूगल से साभार चित्र         सुकन्या ने च्यवन मुनि से जब अश्विनी कुमारों  के विषय में बताया, तब च्यवन मुनि बोले - हे कांते ! मेरी आज्ञा के अनुसार तुम देवताओं के श्रेष्ठ चिकित्सक अश्विनी कुमारों  के समीप जाओ और उन्हें  मेरे पास शीघ्र ले आओ। तुम उनकी शर्त तुरंत स्वीकार कर लो। इसमें कोई सोच - विचार नहीं करना चाहिए। इस प्रकार मुनि की आज्ञा पाकर वह अश्विनी कुमारों  के पास जाकर उनसे बोली - हे  श्रेष्ट अश्विनी कुमारों  आप लोग प्रतिज्ञा के अनुसार शीघ्र ही कार्य करें।       सुकन्या की बात सुनकर वह अश्विनी कुमार राजकुमारी से बोले - तुम्हारे पति इस सरोवर में प्रवेश करें। तब रूप प्राप्ति के लिए च्यवन मुनि शीघ्रता पूर्वक सरोवर में प्रविष्ट हो गए। उसके बाद दोनों अश्विनी कुमारों   ने भी उस सरोवर में प्रवेश किया। तदनन्तर वे तीनों तुरंत ही उस सरोवर से बाहर  निकल आये और एक समान युवा बन गए। शरीर के सभी अंग समान वाले वे तीनों युवा दिव्य कुण्डलों एवं आभूषणों से सुशोभित थे।   ...