गूगल से साभार चित्र
सुकन्या ने च्यवन मुनि से जब अश्विनी कुमारों के विषय में बताया, तब च्यवन मुनि बोले - हे कांते ! मेरी आज्ञा के अनुसार तुम देवताओं के श्रेष्ठ चिकित्सक अश्विनी कुमारों के समीप जाओ और उन्हें मेरे पास शीघ्र ले आओ। तुम उनकी शर्त तुरंत स्वीकार कर लो। इसमें कोई सोच - विचार नहीं करना चाहिए। इस प्रकार मुनि की आज्ञा पाकर वह अश्विनी कुमारों के पास जाकर उनसे बोली - हे श्रेष्ट अश्विनी कुमारों आप लोग प्रतिज्ञा के अनुसार शीघ्र ही कार्य करें।
सुकन्या की बात सुनकर वह अश्विनी कुमार राजकुमारी से बोले - तुम्हारे पति इस सरोवर में प्रवेश करें। तब रूप प्राप्ति के लिए च्यवन मुनि शीघ्रता पूर्वक सरोवर में प्रविष्ट हो गए। उसके बाद दोनों अश्विनी कुमारों ने भी उस सरोवर में प्रवेश किया। तदनन्तर वे तीनों तुरंत ही उस सरोवर से बाहर निकल आये और एक समान युवा बन गए। शरीर के सभी अंग समान वाले वे तीनों युवा दिव्य कुण्डलों एवं आभूषणों से सुशोभित थे।
वे सभी एक साथ बोल उठे - हे भद्रे ! हम लोगों में से जिसे तुम चाहती हो उसको पति रूप में वरण कर लो। हे वरानने ! जिसमें तुम्हारी सब से अधिक प्रीति हो उसे पति रूप में चुन लो। देव कुमारों के समान प्रतीत होने वाले उन तीनो का रूप ,अवस्था ,स्वर ,वेश - भूषा तथा आकृति में पूर्ण तरह एक जैसा देखकर सुकन्या बड़े असमंजस में पड़ गयी।
वह अपने पति च्यवन मुनि को ठीक - ठीक पहचान नहीं पा रही थी। अतः उसने व्याकुल होकर सोचा मैं क्या करूँ ? ये तीनों देवकुमार एक जैसे हैं। दोनों देवताओं ने यह विचित्र इंद्रजाल यहाँ रच डाला है। इस स्थिति में मुझे क्या करना चाहिए। मैं अपने पति को छोड़कर किसी दूसरे को कभी नहीं चुन सकती। चाहे वह कोई परम सुन्दर देवता ही क्यू ना हो। यह मेरा दृढ विचार है। इस प्रकार मन में भली भांति सोचकर सुकन्या कल्याण रूपिणी पराम्बा भगवती भुवनेश्वरी के ध्यान में गयी। और उनकी स्तुति करने लगी।
सुकन्या बोली - हे जगदम्बे! मैं महान कष्ट से पीड़ित हो कर आपकी शरण में आयी हूँ। आप मेरे पति व्रत धर्म की रक्षा करें। मैं आपके चरणों में प्रणाम करती हूँ। आपको नमस्कार है। हे शंकर प्रिये ! आपको नमस्कार है। हे विष्णु की प्रिय लक्ष्मी ! हे वेद माता सरस्वती ! आपको नमस्कार है।
आपने ही इस सम्पूर्ण चराचर जगत का सृजन किया है। आप ही सावधन होकर जगत का पालन करती हैं और प्रलय काल में लोक शांति के लिए इसे अपने में लीन कर लेती हैं। आप ब्रह्मा ,विष्णु और महेश की सुसम्मत जननी है। अज्ञानियों को बुद्धि तथा ज्ञानियों को सदा मोक्ष प्रदान करती हैं। आप श्रेष्ठ विचार वाले प्राणियों को भोग तथा मोक्ष प्रदान करती हैं। हे माता ! आप ही योगी जनों को सिद्धि , विजय तथा कीर्ति प्रदान करती हैं।
हे माता ! महान असमंजस में पड़ी हुयी मैं ,इस समय आपकी शरण में आयी हूँ। आप मेरे पति को दिखने की कृपा करें। इन दोनों देवताओं ने अत्यंत कपट पूर्ण चरित्र उपस्थित कर दिया है। मेरी बुद्धि तो कुंठित हो गयी है। मैं इसमें किस का वरण करूँ ? हे सर्वज्ञ ! मेरे पतिव्रत पर सम्यक ध्यान देकर आप मेरे पति का दर्शन करा दें।
इस प्रकार सुकन्या के स्तुति करने पर भगवती त्रिपुर सुंदरी ने शीघ्र सुख का उदय करने वाला ज्ञान उसके हृदय में उत्पन्न कर दिया। तदनन्तर मन में निश्चय कर के सुकन्या ने समान रूप तथा अवस्था वाले उन तीनो पर भली भांति दृष्टिपात करके अपने पति का वरण कर लिया।
इसप्रकार सुकन्या के द्वारा च्यवन मुनि का वरण करने के पश्चात दोनों देवता परम संतुष्ट हुए। और सुकन्या का पतिधर्म देखकर उन्होने उसे अति प्रसन्नता पूर्वक वर प्रदान किया। तत्पश्यात भगवती की कृपा से प्रसन्नता को प्राप्त वे दोनों श्रेष्ठ अश्विनी कुमार मुनि से आज्ञा लेकर तुरंत वहां से प्रस्थान करने को उद्यत हो गए।
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