
श्री आदिशक्ति की लीला श्री जबदम्बिका द्वारा आत्म स्वरूपा का वर्णन - स्वयं जगदम्बिका ने अपनी मधुरवाणी में ब्रह्मा , विष्णु , शंकर से कहा - मैं और परमब्रह्म एक ही है। मुझमे और परमब्रह्म में किंचित मात्रा में भी भेद नहीं है। जो वे है वही मैं हूँ। और जो मैं हूँ वही वे है। बुद्धि के भ्रम में भेद होता है। ब्रह्ममा एक ही केवल संसार की रचना के समय ये द्ववेत रूप प्राप्त होता है। फिर द्ववेत की भावना होने लगती है। में और ब्रह्मा एक ही है। फिर भी मायारूपी कारण से हमारा प्रतिबिम्ब अलग -अलग झलक रहा है। ब्रहमा जी जगत का निर्माण करने के लिए सृष्टिकाल में भेद दिखता ही है। जब हम दो रूप धारण करके कार्य करने लगते है। तब दृश्य में यह भेद प्रतीत होने लगता है। जब संसार नहीं रहता ,तब मैं न स्त्री हूँ ,न पुरुष पुरुष। संसार रहने पर इस भेद की कल्पना हो जाती है। ...