श्री जबदम्बिका द्वारा आत्म स्वरूपा का वर्णन - स्वयं जगदम्बिका ने अपनी मधुरवाणी में ब्रह्मा , विष्णु , शंकर से कहा -
मैं और परमब्रह्म एक ही है। मुझमे और परमब्रह्म में किंचित मात्रा में भी भेद नहीं है। जो वे है वही मैं हूँ। और जो मैं हूँ वही वे है। बुद्धि के भ्रम में भेद होता है। ब्रह्ममा एक ही केवल संसार की रचना के समय ये द्ववेत रूप प्राप्त होता है। फिर द्ववेत की भावना होने लगती है। में और ब्रह्मा एक ही है। फिर भी मायारूपी कारण से हमारा प्रतिबिम्ब अलग -अलग झलक रहा है। ब्रहमा जी जगत का निर्माण करने के लिए सृष्टिकाल में भेद दिखता ही है। जब हम दो रूप धारण करके कार्य करने लगते है। तब दृश्य में यह भेद प्रतीत होने लगता है। जब संसार नहीं रहता ,तब मैं न स्त्री हूँ ,न पुरुष पुरुष। संसार रहने पर इस भेद की कल्पना हो जाती है।
संसार में मेरे बिना कोई भी पदार्थ नहीं है। ब्रहमा जी सब कुछ मेरा ही रूप है। इस सारे संसार में मैं व्यापक रूप से विराजमान हूँ। संपूर्ण देवताओं में विभिन्न नामों से मैं ही विख्यात हूँ। में ही शक्ति रूप धारण करके पराक्रम करती हूँ। गौरी , वैष्णवी ,शिवा ,रौद्री ,नारसिंही सभी मेरे रूप है। विभिन्न कार्यो के उपस्थित होने पर उन -उन देवियों के भीतर अपनी शक्ति स्थापित करके मैं सारी व्यवस्था करके मैं उनके भीतर प्रविष्ट होती हूँ ।
ब्रहमा जी मैं तुमसे निश्चित कहती हूँ। अदि मैं शक्ति हट जाऊ तो संसार में एक भी प्राणी हिल न सके ,मुझ शक्ति के हट जाने पर आप सभी अपने -अपने कार्य करने में असमर्थ हो जाओगे। इसीलिए मुझ शक्ति को एक कारण समझो। ब्रहमा जब मैं साथ देती हूँ ,तब ही तुम अखिल जगत की रचना करते हो। विष्णु ,शंकर ,इंद्र,अग्नि ,चन्द्रमा ,सूर्य ,यम ,वरुण और पवन सब मुझ शक्ति के सहयोग से कार्य में सफलता पाते है। पृथ्वी तभी स्थिर रहकर प्राणी जगत को धारण कर सकती है ,जब मैं शक्तियों से साथ दिये रहती हूँ। मैं हट जाऊ तो एक परमाणु तक को धारण करने में वे असमर्थ हैं। वैसे ही शेषनाग ,कच्छप एवं सारे दिग्गज भी मेरे सहयोग से ही अपने कार्य सम्पादन करते है। संपूर्ण जल पी जाना ,अग्नि की सत्ता को नष्ट कर देना तथा पवन की गति को रोकना मेरी इच्छा पर ही निर्भर करता है। मैं जो चाहूं सौ कर सकती हूँ। मुझ शक्ति के बिना सभी प्राणी निष्प्राण है।
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