सुमेरु पर्वत के शिखर पर ही इंद्रलोक ,ब्रह्मलोक ,सेमिनीपुरी ,सत्यलोक ,कैलाश और बैकुण्ठ ये सभी लोक प्रतिष्ठित है। बैकुण्ठ को ही वैष्णवपद कहा जाता है। महाराज रेवत सुन्दर नेत्रों वाली पुत्री रेवती को साथ में लेकर ब्रह्मलोक पहुंच गए। उस समय गन्दर्भ लोगों का संगीत हो रहा था। वे अपनी कन्या के साथ कुछ देर तक सभा में रूककर संगीत सुनते हुए आनंद लेते रहे। गन्दर्भो का संगीत समाप्त हो जाने पर परमेश्वर ब्रह्मा जी को प्रणाम कर उन्हें कन्या रेवती को दिखाकर अपना आशय प्रकट किया। राजा बोले- हे देवेश ! मैं अपनी पुत्री किसको प्रदान करूँ ? यही पूछने के लिए आपके पास आया हूँ। अतः आप इसके योग्य वर बतायें। मैंने उत्तम कुल में उत्पन्न बहुत से राजकुमारों को देखा है। किन्तु किसी में भी मेरा मन स्थिर नहीं होता है। इसलिए देवेश ! वर के विषय में आपसे पूछने के लिए यहाँ आया हूँ। आप किसी योग्य राजकुमार के विषय में बताइये जो कुलीन ,बलवान, समस्त लक्षणों से संपन्न ,दानी तथा धर्मपरायण हो। ब्रह्म...
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Showing posts from February, 2018
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गूगल से साभार चित्र देवताओं और ब्राह्मणों द्वारा परमेश्वरी की स्तुति की - हे परमेश्वरी !आपको नमस्कार है। हे देवी ! हमारी शांति के लिए आपने हजारों नेत्रों से संपन्न अनुपम रूप धारण किया है। अतः आप शताक्षी नाम से विख्यात हों। हे जननी ! भूख से अत्यंत पीड़ित होने के कारण आपकी स्तुति करने के लिए हम लोगों में सामर्थ नहीं है। हे अम्बिके ! अब आप कृपा कीजिये और हमें वेदों को प्राप्त कराइये। उनका यह वचन सुनकर कल्याणकारिणी भगवती ने उन्हें खाने के लिए अपने हाथों में स्थित शाक तथा स्वादिष्ट फल - मूल प्रदान किये। साथ ही नानाविध अन्न तथा पशुओं के खाने योग्य पदार्थ उन्हें प्रदान किये। उसी दिन से शाकंबरी - यह उ...
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गूगल से साभार चित्र इस प्रकार कुछ समय बीतने पर गंगाजी ने महाराज शांतनु से गर्भ धारण किया और यथा समय उन सुनयनी ने एक वसु को पुत्र रूप में जनम दिया। उन्होंने उस बालक को उत्पन्न होते ही तत्काल जल में फेंक दिया। इस प्रकार दूसरा तीसरे चौथे पांचवे और छठे तथा सातवें पुत्र के मारे जाने पर राजा सांतनु को बड़ी चिंता हुई यह मुझे त्याग कर चली जाएगी। मेरा आठवाँ गर्भ भी इसे प्राप्त हो गया है यदि मैं इसे रोकता नहीं हूँ तो यह इसे भी जल में फेंक देगी। यह भी मुझे संदेह है कि भविष्य में कोइ और सन्तति होगी अथवा नहीं । वंश की रक्षा के लिए मुझे कोई दूसरा यत्न करना ही होगा तदनन्तर यथा समय जब वह आठवाँ वसु पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। जिसने अपनी स्त्री के वशीभूत होकर वशिष्ठ की नंदिनी गाय का हरण कर लिया था ,तब उस पुत्र को देखकर राजा शांतनु गंगा जी के ...
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प्राचीन काल की बात है दुर्गम नामक एक अत्यंत भयंकर महा दैत्य था। वह महान दुष्ट दुर्गम रुरु का पुत्र था। देवताओं का बल वेद है। उस वेद के नष्ट हो जाने पर देवताओं का भी नाश हो जायेगा। अतः पहले वेद नाश किया जाना चाहिए। ऐसा सोचकर वह तप करने के लिए हिमालय पर्वत पर चला गया। वहाँ पर मन में ब्रह्मा जी का ध्यान करके केवल वायु पीकर रहते हुए , एक हजार वर्ष तक कठोर तपस्या की। उसके तेज से देव दानव सहित सभी प्राणी भयभीत हो उठे। तब उसके तप से प्रसन्न होकर विकसित कमल के समान सुन्दर मुख वाले चतुर्मुख भगवान् ब्रह्मा हंस पर आरूढ़ होकर उसे वर देने के लिए वहाँ गए। ब्रह्मा जी ने स्पष्ट वाणी में कहा - तुम्हारा कल्याण हो। तुम्हारे मन में जो भी इच्छा हो उसे वर के रूप में माँग लो। मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर इस समय उपस्थित हुआ हूँ। ब्रह्मा जी के मुख से यह वाणी सुनकर वह दैत्य समाधी से उठ खड़ा हुआ। और उसने पूजा करके वर मांगते हुए कहा - हे सुरेश्वर !मुझे सभी वेद देने की कृपा की...
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च्यवन मुनि के द्वारा अश्विनी कुमारों को सोमभाग दे दिए जाने पर इंद्र अत्यंत कुपित हुए और उन्होंने अपना परक्रम दिखते हुए मुनि से कहा - आप इस प्रकार की अनुचित मर्यादा स्थापित मत कीजिये। अन्यथा मेरा विरोध करने वाले आप मुनि का भी दूसरे विश्वरूप की भांति वध कर डालूंगा। च्यवन मुनि बोले हे मघवन ! जिन महात्मा अश्विनी कुमारो ने रूप सम्पदा के तेज के द्वारा मुझे दूसरे देवता की भांति बना दिया है , उनका अपमान मत कीजिये। हे देवेंद्र !आपके अतिरिक्त अन्य देवता सोमभाग क्यों पाते हैं ? परम् तपस्वी इन अश्विनी कुमारों को भी आप देवता समझें। इंद्र बोले - ये दोनों चिकित्सक किसी प्रकार भी यज्ञ में सोमभाग पाने के अधिकारी नहीं हैं। यदि आप इन्हें सोमरस देंगें तो मैं अभी आपका सिर काट दूंगा। इंद्र की इस बात की उपेक्षा करके च्यवन मुनि ने अश्विनी कुमारों को यज्ञ भाग प्रदान कर दिया। जब उन दोनों ने पीने की इच्छा से सोमपात्र ग्रहण किया तब शत्रु सेना का भेदन करने वाले इंद्र ने मुनि से ...