च्यवन मुनि के द्वारा अश्विनी कुमारों को सोमभाग दे दिए जाने पर इंद्र अत्यंत कुपित हुए और उन्होंने अपना परक्रम दिखते हुए मुनि  से कहा - आप इस प्रकार की अनुचित मर्यादा स्थापित मत कीजिये। अन्यथा मेरा विरोध करने वाले  आप मुनि का भी दूसरे विश्वरूप की भांति वध कर डालूंगा। 

     च्यवन मुनि बोले हे मघवन ! जिन महात्मा अश्विनी कुमारो ने रूप सम्पदा के तेज के द्वारा मुझे दूसरे देवता की भांति बना  दिया है , उनका अपमान मत कीजिये। हे देवेंद्र !आपके अतिरिक्त अन्य देवता सोमभाग क्यों पाते हैं ? परम् तपस्वी इन अश्विनी कुमारों को भी आप देवता समझें। 

     इंद्र बोले - ये दोनों चिकित्सक किसी प्रकार भी यज्ञ में सोमभाग पाने के अधिकारी नहीं हैं। यदि आप इन्हें सोमरस देंगें तो मैं अभी आपका सिर काट दूंगा। 

       इंद्र की इस बात की उपेक्षा करके च्यवन मुनि ने अश्विनी कुमारों को यज्ञ भाग प्रदान कर दिया। जब उन दोनों ने पीने की इच्छा से सोमपात्र ग्रहण किया तब शत्रु सेना का भेदन करने वाले इंद्र ने मुनि से यह कहा - यदि आप इन्हें सोमरस देंगे तो मैं स्वयं आपके ऊपर वज्र से उसी प्रकार प्रहार करूँगा जैसे मैंने विश्वरूप को मार डाला था। 

       इंद्र के ऐसा कहने पर तपोबल से गर्वित च्यवन मुनि ने कुपित होकर विधि पूर्वक अश्विनी कुमारों को सोमरस दे दिया। 

      इस पर इंद्र ने भी क्रोध करके करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाला अपना आयुध वज्र सभी देवताओं के सामने ही च्यवन मुनि पर चला दिया। तब अमित तेज वाले इंद्र के चलाये गए उस वज्र को च्यवन मुनि ने  अपने तपोबल से उसे स्थम्बित कर दिया। 

      इसके बाद मुनियों में श्रेष्ठ च्यवन कृत्या राक्षसी के द्वारा इंद्र को मरवा डालने के लिए उद्दत हो गयी और  पकाये  गए हव्य से मन्त्र सहित अग्नि में आहुति देने लगे। च्यवन के तपोबल से वहां पर कृत्या उत्पन्न हो गयी। अत्यंत बलशाली तथा क्रूर पुरुष के रूप में प्रकट हुयी। उस पुरुष का शरीर महान  दैत्य के समान बहुत विशाल था। 
       उसका नाम मद था। वह शरीर से पर्वत के आकर का था। उसके तीखे दांत थे। वह बड़ा ही भयावह था।  देखने में क्रूर लगने वाली उसकी दोनों भुजाएं पर्वत के समान दूर तक फैली हुयी थी। अत्यंत भयंकर  लगने वाली उसकी जिव्या आकाश और पाताल को चाट रही थी। उसकी डरावनी तथा कठोर गर्दन पर्वत की चोटी के समान थी। उसके नाख़ून बाघ के नाख़ून के समान थे। उसका शरीर काजल की आभा वाला था। अत्यंत भीषण तथा भयावह दोनों नेत्र दावानल के सामान प्रतीत हो रहे थे। इस प्रकार का विशाल शरीर वाला मद नामक दानव  उत्पन्न हुआ।  

      उसे देखते ही सभी देवता शीघ्र ही भयभीत हो गए। इंद्र भी भय से व्याकुल हो उठे। उनके मन में युद्ध का विचार नहीं रह गया।  इंद्र को खा जाने के विचार से वह क्रोधित होकर उनकी ओर दौड़ा। इस पर सभी देवता जोर - जोर से चिल्लाने लगे। 

       तब देवराज इंद्र ने उस दानव को देखकर सामयिक समस्या का समाधान करने में कुशल देवगुरु बृहस्पति का मन ही मन स्मरण किया। इस पर उन्होंने कहा - हे इंद्र !माध नामक  इस असुर को   मन्त्रों से अथवा वज्र से मार पाना अत्यंत कठिन है। च्यवन मुनि का तपोबल स्वरूप महाबली दैत्य सम्यक रूप से यज्ञकुंड से उत्पन हुआ है। अतः हे देवेश आप महात्मा च्यवन की  शरण में जाएँ। वे अपने द्वारा उत्पन की गयी इस कृत्या का शमन करेंगे। आदि शक्ति के भक्त का रोष निवारण करने में कोई भी समर्थ नहीं है। 

        गुरु बृहस्पति के यह कहने पर इंद्र च्यवन मुनि के पास  गए और नम्रता पूर्वक सिर झुककर बोले - हे मुनि ! क्षमा कीजिये। संहार के लिए तत्पर इस असुर को शांत कीजिये। आप प्रसन्न हो जाइये। मैं आपकी आज्ञा का पालन अवश्य करूँगा। हे भार्गव ! ये दोनों अश्विनी कुमार आज से सोमपान के अधिकारी हो जायेंगे। मेरा यह वचन सत्य है। अब आप  प्रसन्न हो जाएँ।  

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