गूगल से साभार चित्र  
       देवताओं और ब्राह्मणों द्वारा परमेश्वरी की स्तुति की - हे परमेश्वरी !आपको नमस्कार है। हे देवी ! हमारी शांति के लिए आपने हजारों नेत्रों से संपन्न अनुपम  रूप धारण किया है। अतः आप शताक्षी नाम से विख्यात हों। हे जननी ! भूख से अत्यंत पीड़ित होने के कारण आपकी स्तुति करने के लिए हम लोगों में सामर्थ नहीं है। हे अम्बिके ! अब आप कृपा कीजिये और हमें वेदों को प्राप्त कराइये। 

       उनका यह वचन सुनकर कल्याणकारिणी भगवती ने उन्हें खाने के लिए अपने हाथों में स्थित शाक तथा स्वादिष्ट फल - मूल प्रदान किये। साथ ही नानाविध अन्न तथा पशुओं के खाने योग्य पदार्थ उन्हें प्रदान किये। उसी दिन से शाकंबरी - यह उनका एक और नाम भी पड़ गया। 

        इसके बाद जगत में कोलाहल मच गया। तथा वह दुर्गम नामक दैत्य युद्ध करने के लिए अस्त्र - शस्त्र लेकर चल पड़ा। उस दैत्य ने शीघ्रता पूर्वक वाण छोड़ते हुए देवी के आगे स्थित देव सेना को अवरुद्ध कर  दिया। उसी प्रकार उसने सभी ब्राह्मणों को भी चारों ओर से रोक दिया। सभी ब्राह्मण तथा देवता रक्षा करो।  रक्षा करो ,इस प्रकार के शब्द बोलने लगे। 

       तत्पश्चात भगवती शिवा ने देवताओं की रक्षा के लिए उनके चारों और तेज युक्त मंडल का निर्माण कर दिया और स्वयं उसके बाहर आकर खड़ी हो गयी। तदनन्तर भगवती और दैत्य दुर्गम इन दोनों में युद्ध होने लगा देवी के शरीर से अनेक उग्र शक्तियाँ प्रकट हुयी। उन शक्तिओं के द्वारा दैत्यों की एक सौ अक्षौहिणी सेना का संहार कर दिए जाने पर वह दैत्य दुर्गम तुरंत सामने आ खड़ा हुआ और शक्तियों के साथ युद्ध करने लगा। 

      देवी और दुर्गम दैत्य इन दोनों में भीषण युद्ध होने लगा। जगदम्बा ने दो बाणो से उसके दोनों नेत्रों को भेद दिया ,दो वाणों से उसकी दोनों भुजाएं एवं एक वाण से उसकी ध्वजा काट डाली और पांच वाणों से उसके वक्ष स्थल का भेदन कर दिया। तदनन्तर वह दैत्य रुधिर का वमन करता हुआ भगवती परमेश्वरी  के सामने मृत्यु को प्राप्त हो गया और उसके शरीर से तेज निकलकर देवी के विग्रह में प्रविष्ट हो गया। इस प्रकार उस महापरक्रमी दैत्य का संहार हो जाने पर तीनों लोको में शांति व्याप्त हो गयी। 

      इसके बाद ब्रह्मा आदि सभी देवता भगवान विष्णु और शिव को आगे करके भक्ति पूर्वक गदगद वाणी में जगदम्बा की स्तुति करने लगे।  श्रेष्ट देवताओं के इस प्रकार स्तवन तथा विविध द्रव्यों से पूजन करने पर भगवती उसी क्षण संतुष्ट हो गयी। 

        कोयल के समान मधुर स्वर वाली उन भगवती ने दुर्गम  दैत्य से वेदों को वापस ला कर सौंप दिया। और विशेष रूप से ब्राह्मणों से कहा - जिस वेद राशि के अभाव में यह अनर्थ उत्पन्न हुआ था ,उस अनर्थ को आप लोगों ने अभी - अभी प्रत्यक्ष देखा भी है। वह वेद राशि मेरा उत्कृष्ट विग्रह है। आप लोगों को विशेष रूप से इसकी रक्षा करनी चाहिए। आप लोगों को सर्वदा मेरी पूजा तथा सेवा करनी चाहिए। आप लोगों के कल्याण के लिए इससे बढ़कर कोई अन्य उपदेश नहीं है। आप लोगों को सदा मेरे इस उत्तम महात्म्य का सर्वदा पाठ करना चाहिए। उससे प्रसन्न होकर मैं आप लोगों के समस्त कष्ट दूर कर दूंगी। दुर्गम असुर का संहार करने के कारण दुर्गा तथा शताक्षी मेरे इन नामों का जो उच्चारण करता है वह माया का भेदन करके मेरे लोक को प्राप्त होता है। हे देवगण मैं वस्तुतः सार रूप में यही कहती हूँ की सभी देवताओं तथा दैत्यों को सर्वदा मेरी उपासना करनी चाहिए।  

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