देवी बोलीं --- हे पर्वतराज !इसके ऊपर नाभिदेश में मेघ तथा विदुत के समान कान्ति वाला अत्यंत तेजसंम्पन्न और महान प्रभा से युक्त मणिपूरक चक्र है। मणि के सदृश प्रभा वाला होने के कारण यह मणिपद्म भी कहा जाता है। यह दस दलों से युक्त है और ड ,ढ ण ,त ,थ ,द ,ध ,न ,प ,फ ,-इन अक्षरों से समन्वित है। भगवान विष्णु के द्वारा अधिष्ठित होने के कारण यह कमल उनके दर्शन का महान साधन है।
उसके ऊपर उगते हुए सूरज के समान प्रभा से संपन्न अनाहत पदम् है। यह कमल क ,ख ,ग घ ,ंड़ ,च ,छ ज झ ,ज़ ट ठ ,इन अक्षरों से युक्त बारह पत्रों से प्रतिष्ठित है। उसके मध्य में हजार सूर्यों के समान प्रभा वाला वाणलिंग स्तिथ है। बिना किसी आघात के इसमें शब्द होता रहता है अतः मुनियों के द्वारा उस शब्द ब्रह्ममय पद्म को अनाहत कहा गया है।
उसके ऊपर सोलह दलों से युक्त विशुद्ध नामक कमल है। महती प्रभा से युक्त तथा धूम्र वर्ण वाला यह कमल अ ,आ ,इ ,ई।,से लेकर ाः तक इन सोलह अक्षरों के स्वरों से संपन्न है इसमें हंस स्वरूप परमात्मा के दरसन से जीव विशुद्ध आत्म स्वरूप को प्राप्त हो जाता है। इसलिए इसे विशुद्ध पदम् कहा गया है। इस महान अदभुत कमल को आकाश चक्र भी कहा गया है
उसके ऊपर परमात्मा के द्वारा अधिष्ठित श्रेष्ठ आज्ञा चक्र। है.उसमे परमात्मा की आज्ञाका संक्रमण होता है। इसीसे उसे आज्ञाचक्र -ऐसा कहा गया है। वह कमल दो दलों वाला है ,तथा ह तथा क्ष -इन दो अक्षरों से युक्त और अत्यन्त मनोहर है।
उसके ऊपर कैलाश नामक चक्र और उसके भी ऊपर रोधिनी -नामक चक्र स्तिथ है। हे सुव्रत !इस प्रकार मैंने आपको आधार चक्रों के विषय में बता दिया। इसके और भी ऊपर सहस्त्र दलों से संपन्न बिंदुस्थान रूप सहस्त्रार चक्र बताया गया है। यह मैनें आपसे सम्पूर्ण श्रेष्ठ योगमार्ग का बर्णन कर दिया
उसके ऊपर परमात्मा के द्वारा अधिष्ठित श्रेष्ठ आज्ञा चक्र। है.उसमे परमात्मा की आज्ञाका संक्रमण होता है। इसीसे उसे आज्ञाचक्र -ऐसा कहा गया है। वह कमल दो दलों वाला है ,तथा ह तथा क्ष -इन दो अक्षरों से युक्त और अत्यन्त मनोहर है।
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