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Showing posts from December, 2017
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                                                             गूगल से साभार चित्रण        अश्विनी कुमारों ने सुकन्या की बात सुनकर उससे कहा - हे कल्याणी ! तुम्हारे पिता ने तुम्हें उन तपस्वी को कैसे सौंप दिया। तुम तो इतनी सुन्दर हो, की तुम्हें देवताओं के यहाँ होना चाहिए। इतनी सुन्दर स्त्रियाँ तो वहां भी  नहीं हैं। तुम्हें तो दिव्य वस्त्र और सुन्दर आभूषण धारण करने चाहिए।  इन वल्कल वस्त्रों में तुम  सोभा नहीं पा रही हो।        हे प्रिये ! विधाता ने यह कौन सा कृत्य किया है जो की तुम इस नेत्र हीन मुनि को पति रूप में प्राप्त करके इस वन में महान कष्ट भोग रही हो ? तुमने इन्हें व्यर्थ ही वरण किया। नवीन अवस्था प्राप्त करके  तुम इनके साथ सोभा नहीं पा रही हो।  भली - भांति लक्ष्य साध करके कामदेव के द्वारा वेग पूर्वक छोड़े  गए बाण किस पर गिरेंगे। तुम्हारे पति तो इस प्रका...
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                                                       गूगल से साभार चित्र                                          राजा शर्याति के महल वापस जाने के पश्चयात सुकन्या अपने पति च्यवन मुनि की सेवा   में संलग्न हो गयी। धर्मपरायण वह उस आश्रम में अग्नियों की सेवा में निरंतर रहने लगी। सर्वदा पति  सेवा में तत्पर रहने वाली वह बाला  विभित प्रकार के   स्वादिष्ट फल तथा कंदमूल लेकर मुनि को अर्पण करती थी।         वह शीतकाल में उष्ण जल से उन्हें शीघ्रता पूर्वक स्नान करने के पश्चयात मृगचर्म पहनकर पवित्र आसान पर विराजमान कर देती थी। पुनः उनके आगे तिल ,जौ ,कुशा और कमंडल रखकर उनसे कहती थी मुनि श्रेष्ट अब आप अपना नित्य कर्म करें। उसके पश्चयात सुकन्या पति का हाथ पकड़कर उठती और पुनः किसी आसान अथवा...
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             राजा शर्याति एवं उनके मंत्रीगण इस शंकट पर कोई निर्णय नहीं ले सके तब अपने पिता तथा मंत्रियों को चिंता से व्याकुल देखकर सुकन्या उनका अभिप्राय समझ गयी और मुस्कराकर बोली -हे पिता जी ! आज आप चिंता से व्याकुल इन्द्रियों वाले किसलिये है ? निश्चित ही आप मेरे लिए ही अत्यंत दुःखी तथा म्लानमुख  है। अतएव हे पिताजी ! मैं अभी भयाक्रांत मुनि च्यवन के पास जाकर और उन्हें आश्वस्त करके अपने को अर्पितकर प्रसन्न करुँगी।        इस प्रकार सुकन्या ने जो बात कही उसे सुनकर प्रसन्न मन वाले राजा शर्याति ने सचिवों के समक्ष उससे कहा - हे पुत्री ! तुम अबला हो।  अतएव वृद्धता से त्रस्त उस अंधे तथा विशेष रूप से क्रोधी मुनि की सेवा उस वन में कैसे करोगी ? हे पुत्री ! कहाँ तो तुम ऐसी रूपवती और कहाँ वन में रहने वाला वह वृद्ध मुनि ऐसी स्थिति में ,मैं अपनी पुत्री को उस अयोग्य को भला कैसे अर्पित करू ?       हे पुत्री मेरा राज्य और यहाँ तक की मेरा शरीर भी रहे अथवा चला जाये ,किन्तु मैं उस नेत्रहीन मुनि को  तुम्ह...
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                                                 गूगल से साभार चित्र          राजा शर्याति के सैनिकों के मलमूत्र के अवरोध की बात उन्हें ज्ञात हुयी तब राजा ने इस कष्ट को दूर करने पर विचार किया। कुछ समय सोचने के पश्चयात घर पर आकर अपने परिजनों तथा सैनिकों से अत्यंत व्याकुल हो  पूछने लगे - किसके द्वारा यह नीच कार्य किया गया है ? इस सरोवर के पश्चिमी तट पर वन में महान  तपस्वी च्यवन मुनि कठिन तपस्या कर रहे हैं। अग्नि के समान तेज वाले उन तपस्वी के प्रति किसी ने कोई अपकार अवश्य ही किया है। इसलिए हम सबको   ऐसा कष्ट हुआ है। महा तपस्वी ,वृद्ध एवं श्रेष्ट महात्मा च्यवन का अवश्य ही किसी ने अनिष्ट कर दिया है। यह अनिष्ट जान बूझकर किया गया या अनजाने में इसका फल तो भोगना ही पड़ेगा।         इस घटना से चिंतित राजा शर्याति ने सब लोगों से पूछने के पश्चयात अपने बंधुओं से भी पूछा। समस्त प्रजा जन और अपने ...
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गूगल से साभार चित्र          मित्रों आज से हम जो कथानक आरम्भ कर रहे हैं। उसमे एक पत्नी का पति व्रत ,एक राजा की मर्यादा एवं एक ऋषि की तपस्या का फल सम्मिलित है। कथानक बड़ा अवश्य है परन्तु अत्यंत रुचिकर भी है।.           वैवस्वत मनु के पुत्र शर्याति नाम वाले ऐश्वर्यशाली राजा थे। उनकी चार हजार भार्यायें  थी। वे सभी अत्यंत रूपवती तथा समस्त शुभ लक्षणों से युक्त थी।राजा की  सभी पत्नियाँ  प्रेम पूर्वक रहती थी। उन सभी के बीच में सुकन्या नाम की एक ही सुन्दर पुत्री थी। सुन्दर मुस्कान से सरोवर रहने वाली वह कन्या पिता एवं समस्त माताओं की अत्यंत दुलारी थी।              उस नगर से थोड़ी ही दूर पर मानसरोवर के समान एक सुन्दर तालाब था। जिसमे उतरने के लिए सीड़ियों का मार्ग बना हुआ था। स्वच्छ जल से परिपूर्ण उस सरोवर में हंस ,बतख ,चक्रवाक ,जलकाक और सारस पक्षियों का समूह था। जो की उसकी शोभा बढ़ा रहा था। पाँच प्रकार के कमलों से सुशोभित था। जिनके ऊपर भवरे मड़राते रहते थे।      ...