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Showing posts from March, 2018
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                                                                                                     गूगल से साभार चित्र श्री नारायण बोले -(हे नारद ) राजा वैवस्वत सातवें मनु कहे गए हैं। समस्त राजाओं में मान्य तथा दिव्य आनंद का भोग करने वाले वे श्राद्धदेव भी कहे जाते हैं वे वैवस्वत मनु पराम्बा भगवती की तपस्या करके उनके अनुग्रह से मनवन्तर के अधिपति बन गए            आठवें मनु भूलोक में सावर्णि नाम से विख्यात हुए पूर्व जन्म में देवी की आराधना करके तथा उनसे वरदान प्राप्त कर वे मनवन्तर के अधिपति हो गए। वे सभी राजाओं से पूजित ,धीर ,महापराक्रमी तथा देवी भक्तिपरायण थे          नारदजी बोले -उन सावर्णि मनु ने पूर्वजन्म में भगवती की पार्थिव मूर्ती की किस प्रकार आराधना की थी ...
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       श्रेष्ठ वसु की पत्नी के द्वारा नंदिनी गाय के विषय में पूछे जाने पर उनके पति ने कहा - हे सुंदरी! यह महर्षि वसिष्ठ जी की गाय है। इस गाय का दूध स्त्री या पुरुष जो कोई भी पीता  है उसकी आयु दस हजार वर्ष की हो जाती है। और उसका यौवन सर्वदा बना रहता है। यह सुकर उस सुंदरी स्त्री ने कहा - मृत्यु लोक में मेरी एक सखी है, वह राजर्षि उशीनर की परम सुंदरी कन्या है। उसके लिए अत्यंत सुन्दर तथा सब प्रकार की कामनाओं को देने वाली इस गाय को बछड़े सहित अपने आश्रम में ले चलिए। जब मेरी सखी इसका दूध पीयेगी तब वह निर्जरा एवं रोग रहित होकर मनुष्यों में एक मात्र अद्वितीय बन जाएगी। यह सुनकर उन श्रेष्ठ वसुओं ने मुनि का अपमान करके नंदिनी गाय का अपहरण कर लिया।        महा तपस्वी वसिष्ठ जी  ने जब अपने आश्रम में बछड़े सहित नंदिनी को नहीं देखा तब उन्होंने उसे वनों एवं गुफाओं में देखा। जब वह गाय नहीं मिली तब मुनि ने ध्यान योग से उसे वसुओं के द्वारा हरी गयी जानकर अत्यंत कुपित हुए। वसुओं ने मेरी अवमानना करके गाय चुरा ली है। वे सभी मानव यौनि में जन्म ग्रहण करेंगे। ...
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         मुनि के ऐसा कहने पर कि हे  सुंदरी ! इस कार्य में देवताओं का ही कोई कार्य छुपा हुआ है। इसी कारण मैं तुम्हारे ऊपर कामाशक्त हुआ हूँ। ऐसा कहकर अपने वश में आयी हुयी उस कन्या के साथ संसर्ग करके मुनि श्रेष्ठ पराशर तत्काल यमुना नदी में स्नान कर वह से शीघ्र चले गए। वह साध्वी मत्स्यगंधा  भी तत्काल गर्भवती हो गयी। यथा समय उसने यमुना जी के द्वीप में दूसरे कामदेव के तुल्य एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया।            उस पुत्र ने पैदा होते ही अपनी माता से कहा - हे माता ! मन में तपस्या का निश्चय करके ही अत्यंत तेजस्वी मैं गर्भ में प्रविष्ट हुआ था। हे माते ! अब आप अपनी इच्छा के अनुसार कहीं भी चली जाएँ और मैं भी यहाँ से तप करने के लिए जा रहा हूँ। हे माता ! आपके स्मरण करने पर ,मैं अवश्य ही दर्शन दूंगा। हे माता ! जब कोई उत्तम कार्य आ पड़े तब आप मुझे स्मरण कीजिये। मैं शीघ्र ही उपस्थित हो जाऊंगा। आप चिंता छोड़ सुखपूर्वक रहिये। मत्स्यगंधा ने ( सत्यवती ) बालक को यमुना जी में जन्म दिया था। अतः वह बालक " द्वैपायन " नाम से विख्यात हुआ। वि...
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     मछुआरे ने मछली के पेट से निकले उन दोनों रूपवान बालक तथा बालिका को राजा उपरिचर को सौंप दिया।  राजा भी आश्चर्यचकित हुआ और उसने उस सुन्दर पुत्र को ले लिया। जो आगे चलकर मत्स्य नामक राजा हुआ।          राजा उपरिचर वसु ने वह कन्या उस मछुआरे को ही दे दी। जो आगे चलकर मत्स्यगंधा नाम से कही जाने लगी। उस मछुआरे दास के घर वह सुंदरी धीरे - धीरे बड़ी होने लगी।          जब मुनि ने उस अप्सरा को श्राप दिया तब वह विस्मित हो गयी और दीनता पूर्वक रोती  हुयी उस ब्राह्मण से  प्रार्थना करने लगी - दयालु ब्राह्मण ने उस रोती  हुयी स्त्री से कहा - हे कल्याणी ! तुम शोक न करो मैं तुम्हारे श्राप के अंत का उपाय बताता हूँ। मैंने क्रुद्ध होकर जो श्राप दिया है उससे तुम मत्स्य यौनि को प्राप्त होगी। किन्तु तुम अपने उदर से एक युगल मानव संतान उत्पन्न कर उस श्राप से मुक्त  हो जाओगी।         उसके ऐसा कहने पर वह यमुना जल में मछली का शरीर पाकर तथा दो सन्तानो को उत्पन्न करके श्राप ...
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      जिनके विशिष्ट वाग्भव बीजमंत्र ' ऐं 'का किसी भी बहाने से उच्चारण करते ही शाश्वती सिद्धि प्राप्त हो जाती है। उन इच्छित फल देने वाली भगवती का सभी लोगों को अपनी समस्त कामनाएं पूर्ण करने के लिए समर्पण भाव से सम्यक स्मरण करना चाहिए।          उपरिचर नाम के एक सत्यवादी ,धर्मात्मा ,ब्राह्मणपूजक तथा श्रीमान राजा हुए। जो चेदि देश के शासक थे। उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर देवराज इंद्र ने उन्हें स्फटिक मणि का बना हुआ एक सुन्दर तथा दिव्य विमान दिया। उस दिव्य विमान पर चढ़ कर चेदिराज सदा विचरण करते थे। वे कभी भूमि पर न उतारते तथा पृथ्वी से ऊपर ही ऊपर चलने के कारण सभी लोकों में उपरिचर वसु के नाम से प्रसिद्ध हुए। राजा अत्यंत धर्मपरायण थे। उनकी पत्नी का नाम गिरिका था। जो रूपवती तथा सुन्दर थी।        महाराज उपरिचर के पांच पुत्र थे जो महान वीर एवं प्रतापी थे। उन्होंने अपने राजकुमारों को अलग -अलग देशों का राजा   बना दिया।        एक बार राजा वसु की पत्नी गिरिका ने स्नान से पवित्र होकर राजा से पुत्र प्...