गूगल से साभार चित्र
श्री नारायण बोले -(हे नारद ) राजा वैवस्वत सातवें मनु कहे गए हैं। समस्त राजाओं में मान्य तथा दिव्य आनंद का भोग करने वाले वे श्राद्धदेव भी कहे जाते हैं वे वैवस्वत मनु पराम्बा भगवती की तपस्या करके उनके अनुग्रह से मनवन्तर के अधिपति बन गए
आठवें मनु भूलोक में सावर्णि नाम से विख्यात हुए पूर्व जन्म में देवी की आराधना करके तथा उनसे वरदान प्राप्त कर वे मनवन्तर के अधिपति हो गए। वे सभी राजाओं से पूजित ,धीर ,महापराक्रमी तथा देवी भक्तिपरायण थे
नारदजी बोले -उन सावर्णि मनु ने पूर्वजन्म में भगवती की पार्थिव मूर्ती की किस प्रकार आराधना की थी इसे मुझे बताने की कृपा करें
श्री नारायण बल -स्वारोचिष मन्वन्तर में चैत्रवंश में उत्पन्न सुरथ नाम विख्यात एक राजा हुए। वे महान बल तथा पराक्रम से संपन्न ,गुणग्राही ,धनुर्धर ,श्रेष्ठ कवि ,कुशल ,धनसंग्रह करने वाले तथा याचकों को दान देने वाले ,शत्रुओं का दमन करने वाले ,मानी ,सभी अस्त्रों के संचालन में परम दक्ष तथा बलवान थे
एक बार कोला विध्वंसी नामक क्षत्रिय राजा उनके शत्रु हो गए। महान बलशाली शत्रुओं ने सेना के साथ चढ़ाई करके सम्मान के धनी उन राजा सुरथ की नगरी को घेर लिया तत्पश्चात शत्रुओं का विनाश करने वाले वे राजा सुरथ सेना से सुसज्जित होकर अपने नगर से निकल पड़े।
वे राजा सुरथ युद्ध में शत्रुओं के द्वारा जीत लिए गए। उनके अमात्यों तथा मन्त्रियुं ने अवसर पाकर उनके कोष में स्थित सम्पूर्ण धन का पूरी तरह से हरण कर लिया। इससे राजा को महान संताप हुआ। वे परम तेजस्वी राजा सुरथ नगर से निष्कासित कर दिए गए
तत्पश्चात वे एक अश्वपर चढ़कर आखेट करने के बहाने वन में अकेले घूमने लगे। पुनः शान्त स्वभाव वाले पशुओं से युक्त तथा मुनि शिष्यों से परिपूर्ण सुमेधा मुनि के आश्रम में पहुँच गए। तब उनके चित्त को शान्ति मिली उन राजा ने दूरदृष्टि वाले मुनिवर सुमेधा ऋषी के परम रमणीक आश्रम में कुछ काल तक निवास किया
एक दिन राजा सुरथ मुनि के पूजन कृत्य की समाप्ति पर शीघ्र उनके पास पहुँच कर प्रणाम करके विनम्रता पूर्वक उनसे पूछने लगे।
हे मुने !मेरा मन अत्यधिक मानसिक कष्ट के कारण सदा संतप्त रहता है। हे भूदेव !इस दुख ने सभी तत्वों के ज्ञाता होनेपर भी मुझे अज्ञानी -सा बना दिया है। मैं शत्रुओं से पराजित कर दिया गया हूँ तथा राज्यचुत हो गया हूँ फिरभी उनके प्रति मेरा मन में बार -बार ममता उतपन्न हो रही है।
हे मुने !मैं क्या करूँ कहाँ जाऊं तथा किस प्रकार शांति प्राप्त करूँ ?हे वेदवेत्ताओं !अब तो मैं एकमात्र आपसे ही अनुग्रह की आशा करता हूँ। इस कष्ट के निवारण का कोइ उपाय बताइये।
मुनि बोले -हे राजन आप अत्यंत विश्मयकारी अनुपम तथा सभी कामनाओं को पूर्ण करने वाले श्रेष्ठ देवा -माहातम्य श्रवण कीजिये
वे विश्वमयी महामाया ब्रह्मा ,विष्णु ,तथा महेश को भी उतपन्न करने वाली हैं वे ही प्राणियों के मन बलपूर्वक आकृष्ट करके मोहित कर देती हैं। हे राजन !इस रहस्य को आप भली -भाँती जान लीजिये। हे पृथ्वीपुत्र !वे ही समग्र विश्वका सृजन करती हैं ,सर्वदा पालन करती हैं तथा अंत में रूद्र रूप में संहार करती हैं। वे महामाया सभी मनोरथ पूर्ण करने वाली ,विश्व का संहार करने वाली तथा दुर्धर्ष कालरात्रि रूपा साक्षात् काली हैं
वे ही कमल निवासिनी महालक्ष्मी हैं। यह जगत उन्ही से उत्पन्न हुआ है ,उन्ही में स्तिथ है और अंत में उन्ही में विलीन भी हो जाएगा ,अतएव वे भगवती परात्परा हैं।
हे राजन !उन भगवती की कृपा जिसके ऊपर हो जाती है ,वही इस मोहजाल से मुक्त होता है इसमें संदेह नहीं है ।
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