मछुआरे ने मछली के पेट से निकले उन दोनों रूपवान बालक तथा बालिका को राजा उपरिचर को सौंप दिया।  राजा भी आश्चर्यचकित हुआ और उसने उस सुन्दर पुत्र को ले लिया। जो आगे चलकर मत्स्य नामक राजा हुआ। 

        राजा उपरिचर वसु ने वह कन्या उस मछुआरे को ही दे दी। जो आगे चलकर मत्स्यगंधा नाम से कही जाने लगी। उस मछुआरे दास के घर वह सुंदरी धीरे - धीरे बड़ी होने लगी। 

        जब मुनि ने उस अप्सरा को श्राप दिया तब वह विस्मित हो गयी और दीनता पूर्वक रोती  हुयी उस ब्राह्मण से  प्रार्थना करने लगी - दयालु ब्राह्मण ने उस रोती  हुयी स्त्री से कहा - हे कल्याणी ! तुम शोक न करो मैं तुम्हारे श्राप के अंत का उपाय बताता हूँ। मैंने क्रुद्ध होकर जो श्राप दिया है उससे तुम मत्स्य यौनि को प्राप्त होगी। किन्तु तुम अपने उदर से एक युगल मानव संतान उत्पन्न कर उस श्राप से मुक्त  हो जाओगी। 

       उसके ऐसा कहने पर वह यमुना जल में मछली का शरीर पाकर तथा दो सन्तानो को उत्पन्न करके श्राप से मुक्त हो गयी।  तथा दिव्य रूप धारण करके स्वर्ग की और चली गयी। 

       इस प्रकार सुन्दर मुख वाली उस कन्या मत्स्यगंधा का जन्म हुआ। दास के घर में पुत्री की भांति उसका पालन - पोषण होने लगा। जब वह किशोरावस्था को प्राप्त हुयी तब उसका सौंदर्य और भी बढ़ गया। वह परम सुंदरी वसु कन्या  निषादराज के कार्यों को करती हुयी रहने लगी। 

           एक बार तीर्थयात्रा करते हुए महान तेजस्वी ,पराशर मुनि यमुना नदी के तट पर आये और निषाद से कहा - मुझको नाव के द्वारा यमुना के पार पंहुचा दो। मुनि का वचन सुनकर भोजन करते हुए उस निषाद ने अपनी सुन्दर युवा पुत्री मत्स्यगंधा से कहा - हे पुत्री ! तुम इन मुनि को नाव में बिठाकर पार उतार दो। 

          पिता के ऐसा कहने पर वह सुन्दर वासवी मुनि को नाव में बिठाकर खेने लगी। यमुना नदी के जल पर नाव से चलते समय देव योग से मुनि पराशर  उस सुन्दर नेत्रों वाली कन्या को देखकर आसक्त हो गए। और उस कन्या को प्राप्त करने की इच्छा करने वाले मुनि ने अपनी दाहिनी भुजा से उसकी दाहिनी भुजा का स्पर्श किया। 

      इस पर उस कन्या ने मुसकराकर कहा - क्या आपका यह कृत्य आपके कुल, तपस्या तथा वेदज्ञान के अनुरूप है? हे धर्मज्ञ ! आप वसिष्ठ जी के वंशज हैं। और कुल तथा शील से युक्त हैं। फिर भी कामदेव से पीड़ित हैं।   मुझ मत्स्यगंधा को देखकर आप अनाचार युक्त विचार वाले कैसे हो गए। हे महाभाग ! आप धैर्य धारण करें मैं अभी आपको उस पार ले चलती हूँ। 

       मुनि पराशर  उसका हितकारी वचन सुनकर उसका हाथ छोड़कर वही स्थित हो गए। और उस पार पहुंच गए। 

          तदनन्तर परासर मुनि ने मत्स्यगंधा को पकड़ लिया। तब भय से काँपती हुयी उस कन्या ने मुनि से कहा - हे मुनिवर ! मैं दुर्गन्ध वाली हूँ। मुझसे क्या आपको घृणा नहीं हो रही है। मत्स्यगंधा के ऐसा कहते ही पराशर  मुनि ने क्षण मात्र में अपने तपोबल से  उस कन्या को सुमुखि ,रूपवती तथा योजनगंधा बना दिया। उसे कस्तूरी की सुगन्धि वाली मनोहर स्त्री बनाकर कामातुर  मुनिराज ने अपने दाहिने हाथ से उसे पकड़  लिया। तब उस कन्या ने मुनि से कहा - हे मुनि ! तट पर स्थित मेरे पिता तथा सभी लोग यहाँ हमें देख रहे हैं। इस पर पराशर  मुनि ने अपने पुण्य बल से तत्काल कुहरा उत्पन्न कर दिया। उस कुहरे के उत्पन्न हो जाने पर अत्यंत  अंधकारमय वातावरण हो गया। 

      कामिनी ने पराशर मुनि से मधुर वाणी  में कहा -  हे मुनिश्रेष्ठ ! मैं अभी कन्या हूँ। ऐसी स्थिति में मेरी क्या गति होगी। यदि मैं गर्भ धारण कर लुंगी तो पिता को क्या उत्तर दूंगी। पराशर बोले - हे प्रिये ! आज मुझे प्रसन्न करके भी तुम कन्या ही बानी रहोगी। तुम जो वर चाहती हो उसे माँग लो। तब वह कन्या बोली आप ऐसा वरदान दीजिये जिससे मेरे माता पिता लोक में  इसे न जान सके। साथ ही आप ऐसा करें जिससे मेरा कन्या व्रत नष्ट न हो और जो पुत्र उत्पन्न हो वह आपके ही समान अपूर्व ओजस्वी हो। मेरी यह सुगंध बानी रहे और मेरा यौवन नितनूतन बना रहे।  पराशर  बोले - हे सुंदरी ! तुम्हारा पुत्र पवित्र तथा भगवान विष्णु के अंश से अवतीर्ण होगा। वह तीनों लोकों में विख्यात होगा। मैं तुम्हारे ऊपर किसी कारण विशेष से ही कामासक्त हुआ हूँ। मुझे ऐसा मोह पूर्व में कभी नहीं हुआ। अप्सराओं के रूप को देखकर भी मैंने  सदा धैर्य धारण किये रहा। देव योग से ही तुन्हें देखकर मैं इस प्रकार  कामके वसीभूत हुआ हूँ। तुम्हारा पुत्र पुराणों का रचयिता ,वेदों का विभाग करने वाला तथा तीनों लोको में विख्यात होगा।    

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