जिनके विशिष्ट वाग्भव बीजमंत्र ' ऐं 'का किसी भी बहाने से उच्चारण करते ही शाश्वती सिद्धि प्राप्त हो जाती है। उन इच्छित फल देने वाली भगवती का सभी लोगों को अपनी समस्त कामनाएं पूर्ण करने के लिए समर्पण भाव से सम्यक स्मरण करना चाहिए। 

       उपरिचर नाम के एक सत्यवादी ,धर्मात्मा ,ब्राह्मणपूजक तथा श्रीमान राजा हुए। जो चेदि देश के शासक थे। उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर देवराज इंद्र ने उन्हें स्फटिक मणि का बना हुआ एक सुन्दर तथा दिव्य विमान दिया। उस दिव्य विमान पर चढ़ कर चेदिराज सदा विचरण करते थे। वे कभी भूमि पर न उतारते तथा पृथ्वी से ऊपर ही ऊपर चलने के कारण सभी लोकों में उपरिचर वसु के नाम से प्रसिद्ध हुए। राजा अत्यंत धर्मपरायण थे। उनकी पत्नी का नाम गिरिका था। जो रूपवती तथा सुन्दर थी। 

      महाराज उपरिचर के पांच पुत्र थे जो महान वीर एवं प्रतापी थे। उन्होंने अपने राजकुमारों को अलग -अलग देशों का राजा   बना दिया। 

      एक बार राजा वसु की पत्नी गिरिका ने स्नान से पवित्र होकर राजा से पुत्र प्राप्ति की कामना की। जिस समय वह प्रार्थना करने लगी उसी समय पित्रों ने उन से   कहा - हे राजन ! मृगों को मार लाओ - इस आदेश को सुनकर राजा को अपनी पत्नी का स्मरण हो आया। किन्तु पित्रों की आज्ञा को मानकर तथा अपने कर्तव्य का निश्चय कर राजा मन ही मन गिरिका का स्मरण करते हुए। आखेट के लिए  चल पड़े। 

       वन में रहते हुए राजा वसु साक्षात दूसरी लक्ष्मी के समान रूपवती अपनी पत्नी का स्मरण करने लगे। उसकामिनी के ध्यान से एकाएक उनका वीर्य स्खलित हो गया और राजा ने शीघ्र ही उसको बरगद के पत्ते पर समेत लिया। यह तेज व्यर्थ न हो यह सोचकर उन्होंने ऐसा निश्चय कर लिया कि मेरा तेज अमोघ है। अतः अवश्य ही इसे में रानी के पास भेज दूंगा। 

       राजा ने उस वीर्य को अभिमंत्रित किया और पास ही बैठे उस बाज पक्षी को बुलाकर उससे कहा - हे महाभाग ! तुम इसे ग्रहण करो और शीघ्र ही मेरे घर चले जाओ। और इसे गिरिका को दे देना। क्यूंकि आज ही उसका ऋतुकाल है। 

        चोंच में पत्ते का दोना लेकर आकाश में उड़ते हुए उस बाज को एक दूसरे बाज पक्षी ने अपनी ओर आते देखा। बाज की चोंच में मांस का टुकड़ा समझकर तत्काल उसने उस बाज पर आक्रमण कर दिया। दोनों बाजों के बीज आकाश में चोंचों से भयंकर युद्ध होने लगा।  उन दोनों के युद्ध करते समय वह दोना यमुना जी के जल में जा गिरा। दोने के गिर जाने पर दोनों पक्षी वहां से चले गए। 

       उसी समय अद्रिका नाम की एक अप्सरा जल में निमग्न होकर जल क्रीड़ा कर रही थी ।  उस सुन्दर स्त्री ने वहां पर उपस्थित संध्या वंदन करते हुए  एक ब्राह्मण को देखा और उन ब्राह्मण का पैर पकड़ लिया। 

       प्राणयाम करते हुए ब्राह्मण ने उसे देख कर यह श्राप दे दिया कि तुमने मेरे ध्यान में विघ्न डाला है। अतएव तुम मछली हो जाओ। इस प्रकार ब्राह्मण से श्राप पाकर वह अद्रिका नाम की रूपवती अप्सरा मछली बनकर यमुना के जल में विचरण करने लगी।  बाज के पदाघात से गिरे उस वीर्य के पास जाकर मत्स्यरूपधरिणी अद्रिका अप्सरा ने उसे शीघ्रता पूर्वक निगल लिया। 

       कुछ समय बाद दस महीने बीतने पर एक मछुआरे ने उस सुन्दर मछली को अपने जाल में फॅसा लिया। उस मछुआरे ने शीघ्र ही उस मछली का पेट चीर दिया। उसके उदर से मनुष्य के आकार वाली जुड़वाँ सन्तति निकली। उन दोनों में एक रूपवान बालक तथा एक सुन्दर मुख वाली बालिका थी। इस अद्भुत घटना को देखकर वह भी अत्यंत विस्मित हुआ।    

                                                                                                                   आगे भी जारी .........                  

      

       

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