मित्रों हर धर्म एवं हर समाज    में माता पिता को ईश्वर से  ऊँचा स्थान दिया जाता है ,क्योंकि हमें इस संसार मैं मनुष्य योनि  हमारे माता पिता द्वारा ही प्राप्त होती है। इसलिए हम  अपने माता पिता का यह कर्ज कभी भी नहीं उतार सकते। अगर हम अपने मा.तापिता की खुशी के लिए कोइ कार्य कर सकें जिसमें हमारी सारी खुशियां कुर्बान हों तो भी हमें अपने ऊपर  गर्व होना चाहिए। आज जो कथानक आरंभ हो रहा है उसमें एक पुत्र का अपने पिता की खुशी के लिए किया गया बलिदान इतिहास के पन्नों पर लिख दिया गया।  
      मित्रों उस नायक का नाम आप आगे खुद जान लेगें इसलिए इस कथानक को पढ़ते रहिये 

      सूतजी बोले प्रतीप के स्वर्ग चले जाने पर सत्यपराक्रमी राजा  सांतनु व्याघ्र तथा मृगों को मारते हुए मृगया में तत्पर हो गए किसी समय गंगा के किनारे घने वन में विचरण करते हुए राजा ने मृग बच्चे जैसी आँखों वाली तथा सुन्दर आभूषणों से युक्त एक सुन्दर स्त्री को देखा | 
          
         उसे देख  कर राजा शांतनु हर्षित हो गये और सोचने लगे की साक्षात दूसरी लक्ष्मी के समान  रूप यौवन से संपन्न यह स्त्री वही है, जिसके विषय में पिताजी  ने मुझे बताया था |           उसके मुख कमल का पान करते हुए राजा तृप्त नहीं हुए ,उन निष्पाप राजा को रोमांच हो गया और उनका चित्त उस स्त्री में रम गय | 
         
          वह स्त्री भी उन्हें राजा महाभिष जानकर प्रेमासक्त हो गयी वह मंद मंद मुस्कुराती हुई राजा के सामने खड़ी हो गयी उस सुन्दरी को देखकर राजा अत्यन्त प्रेम विवश होगए तथा कोमल वाणी से उसे मधुर वचन कहने लगे    
      
          हे सुन्दरी तुम कोई देवी ,मानुषी ,अथवा अप्सरा तो नहीं हो तुम जो कोई भी हो मेरी भार्या बन जाओ। 
       हे सुंदरी !तुम प्रेमपूर्वक मुस्करा रही हो अब मेरी धर्मपत्नी बन जाओ 

     सूतजी बोले -राजा शांतनु तो निश्चित रूप से नहीं जान सके की ये वे ही गंगा है ,किन्तु गंगा ने उन्हें पहचान लिया कि ये शान्तनु के रूप में उत्पन्न वही राजा महाभिष हैं। पूर्व कालीन प्रेमबश राजा शांतनु के उस वचन को सुनकर उस स्त्री ने मंद मुस्कान करके यह वचन कहा 
        
        स्त्री बोली -हे नृप श्रेष्ठ मैं यह जानती हूँ कि आप महाराज प्रतीप  के पुत्र हैं। अतःभला कौन ऐसी स्त्री होगी जो संयोग वश अपने अनुरूप पुरुष को पाकर भी उसे पतिरूप में स्वीकार ना करेगी 

          हे राजन वचन बद्ध करके ही मैं आपको अपना पति स्वीकार करूँगी ,हे राजन अब आप मेरी शर्त सुनिये जिससे मैं आपका वरन कर सकूं। 


      हे राजन !मैं भला -बुरा जो भी कार्य करूँ आप मुझे मना नहीं करेँगे तथा ना कोई अप्रिय बात ही कहेगें -जिस समय आप मेरा यह वचन नहीं मानेंगे ,उसी समय हे राजन मैं आपको त्यागकर जहां चाहूँगी उस जगह चली जाऊँगी। 

       उस समय प्रार्थना पूर्वक वसुओं के जन्म ग्रहण करने का स्मरण करके तथा महाभिष के पूर्व कालीन प्रेम को अपने मन में सोच करके गंगा जी ने राजा शांतनु के तथास्तु कहने पर उन्हें अपना पति बनाना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार मानवी रूप धारण करने वाली रूपवती तथा सुन्दर वर्ण वाली गंगा महाराज शांतनु की पत्नी बनकर राज भवन में पहुँच गयी। राजा शांतुनु उन्हें पाकर सुन्दर उपवन में विहार करने लगे 

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