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Showing posts from November, 2017
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                                                         गूगल से साभार चित्र         ब्रह्मा और विष्णु बोले - सर्व सृष्टि कारिणी , परमेश्वरी ,सत्यविज्ञानरूपा ,नित्या ,आद्याशक्ति ! आपको हम प्रणाम करते है। आप वाणी से परे हैं ,निर्गुण और अति सूक्ष्म है। ज्ञान से परे और शुद्ध विज्ञान से प्राप्य हैं। आप पूर्णा ,शुद्धा ,विश्वरूपा ,वंदनीया तथा विश्ववन्धा है। आप सबके अन्तः कारण  में वास करती हैं एवं सारे संसार का पालन करती हैं। दिव्य स्थान निवासिनी आप भगवती महाकाली को हमारा प्रणाम है। महामाया स्वरूपा आप महामयी तथा माया से अतीत हैं। आप भीषण श्याम वर्ण वाली भयंकर नेत्रों वाली परमेश्वरी  हैं। आप सिद्धियों से संपन्न विद्या रूपा  समस्त प्राणियों के हृदय में निवास करने वाली तथा सृष्टि का संहार करने वाली हैं। आप महाकाली को हमारा नमस्कार है।  दोनों संध्याएँ आपकी दोनों भृगुटियाँ हैं। आप विश्व रूपा हैं। वायु आपका श्वा...
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                                                     गूगल से साभार चित्र      भगवान शिव की बात सुनकर सभी ने अपने वाहनों से धरातल पर उतर कर तथा ध्वज की और देखकर भक्ति पूर्ण प्रणाम किया। उन्होंने उस नगरी में प्रवेश को वर्जित करने वाले विघ्नो को भी चारों और देखा। तब भगवान शिव को आगे करके ब्रह्मा , विष्णु और इंद्र ने भैरवी गणों से रक्षित जगदम्बा की उस दिव्य नगरी में प्रवेश किया। उस दिव्य नगरी को देखकर वैकुण्ठपति  विष्णु ने भी अपने मन में विस्मित होते हुए अपने दिव्य लोक की निंदा की।         अंतपुर के द्वार पर उन्होंने महाभाऊ ,स्थूलकाय चतुर्भुज गणनायक गजानन को देखा। भगवान् रूद्र ने उन गणनायक से परम प्रीति पूर्वक कहा कि वत्स ! तुम शीघ्र जाकर महाकाली को मेरा सन्देश दो।        माहेश्वरी ! ब्रह्मा ,विष्णु और इंद्र शिव के साथ भक्ति पूर्वक आपके दर्शन की इच्छा से नगर के द्वार आये हैं। उनक...
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                                        गूगल से साभार चित्र           एक समय इंद्र ने श्रेष्ठ मुनिवर गौतम जी से ब्रह्म हत्या का प्रायश्चित पूछा था। उन्होंने देवराज इंद्र को बताया की सुरश्रेष्ट भगवती महाकाली के लोक में जाकर उनके दर्शन करो। किन्तु उनका लोक कहाँ है यह मैं नहीं जनता। उनकी यहाँ बात सुनकर इंद्र ब्रह्मा जी के पाए आये और  पूछा। तब उन्होंने कहा की इसका पता तो श्री विष्णु बता सकते हैं। किन्तु भगवन विष्णु भी महाकाली के धाम को नहीं जानते थे। अतः वे सभी श्री महादेव जी के पास पहुंचे। और अपने आने का उद्देश्य प्रकट किया।             श्री शिव जी बोले - मधुसूदन ! एक लाख दिव्य वर्षों तक तपस्या कर के मैंने उस स्थान का ज्ञान प्राप्त किया  है। आप सभी मेरे साथ आएं। मैं वहां  ले चलूँगा। शीघ्र ही उनके लोक में पहुंचकर उन भगवती के दर्शन कराऊंगा। हम आज ही महाकाली के रत्नमंडित लोक को जायेंगे।   ...
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                                                     गूगल से साभार चित्र                ब्रह्मा आदि देवताओं ने कहा माता ! शिवसुन्दरी ! आप तीनो लोको की माता हैं और शिवजी पिता है तथा ये सभी देवगण आप के बालक हैं। अपने को आप का शिशु मानने के कारण देवताओं को आप से कोई भय नहीं है। देवी ! आप की जय हो। गौरी ! आप तीनो लोको में लज्जा रूप से व्याप्त हैं। अतः पृथ्वी की रक्षा करें। और हम लोगो पर प्रसन्न हों।       विश्व जननी ! आप सर्वात्मा हैं। और आप तीनो गुणों से रहित ब्रह्म है ,अहो , अपने गुणों के वसीभूत होकर आप ही स्त्री तथा पुरुष का स्वरूप धारण  करके संसार में इस प्रकार की क्रीड़ा करती है और लोग आप जगत जननी को कामदेव के विनाशक परमेश्वर शिव की रमणी कहते है।         तीनो लोको को सम्मोहित करने वाली शिवे ! आप अपनी इच्छा के अनुसार अपने अंश से कभी पुरुष ...
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                                             गूगल से साभार चित्र           एक समय धन के लोभी हैहय  वंशी क्षत्रिय भार्गव  वंश की स्त्रियों को अपार दुःख पहुंचने लगे। तब वे भयभीत होकर और अत्यंत घबराकर जीवन से निराश हो हिमालय पर्वत पर चली गयी। वही नदी के तट पर उन्होंने मिट्टी की गौरी देवी की प्रतिमा बनाकर स्थापित की और निराहार रहकर उनकी उपासना करने लगी। उन्हें अपनी मृत्यु निश्चित जान पड़ती थी। उस समय श्रेष्ट स्त्रियों के पास स्वप्न में देवी पधारी और उनसे बोली -  तुम लोगों में से किसी एक स्त्री की जाँघ से एक पुरुष उत्पन्न होगा। मेरा अंशभूत यह पुरुष तुम लोगों का कार्य संपन्न करेगा। यों कहकर भगवती जगदम्बा अंतर ध्यान हो गयी।             नींद टूटने पर उन सभी  स्त्रियों के मन में बड़ा हर्ष हुआ। उनमे से एक चतुर स्त्री ने गर्भ धारण किया। उसका हृदय भी भयभीत था। वंश वृद्धि के लिए वह वहां से भ...
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                                        गूगल से साभार चित्र           इस प्रकार भगवती से वर पाकर देवता तथा  मुनि वृत्रासुर के श्रेष्ठ स्थान पर गए। और वृत्रासुर के समीप जाकर प्रिय वचन कहने लगे। उन्होंने कपट भरी बड़ी मधुर तथा सरस वाणी में वृत्रासुर को संधि करने के लिए प्रसन्न कर लिया।         उनकी बात सुनकर वृत्रासुर ने कहा - महाभाग ! सूखे अथवा गीले अस्त्र ,पत्थर तथा भयंकर वज्र से दिन में या रात में देवताओं सहित इंद्र मुझे न मारें। इसप्रकार की शर्त पर इनके साथ संधि की जा सकती है। अन्यथा संधि बिलकुल असंभव है। तदनन्तर उन्होंने वृत्रासुर से कहा - बहुत ठीक ऐसा ही होगा। इंद्र ने  आकर सारी शर्तों को स्वीकार  कर लिया। तब से वृत्रासुर इंद्र की बातों पर विश्वास करने लगा। इस प्रकार की मित्रता हो जाने पर वृत्रासुर के मन में बड़ी प्रसन्नता हुयी। फिर भी वृत्रासुर को मरने की इच्छा इंद्र के मन में बानी हुयी थी।  ...
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                                                        गूगल से साभार चित्र         तदनन्तर इंद्र के साथ सभी देवता भगवान शंकर और ब्रह्मा जी को साथ लेकर भगवान विष्णु के स्थान पर पहुंचे। वेद में कहे पुरुषसूक्त मन्त्र से स्तुति करने के बाद श्री हरि से बोले -विभो ! त्रिलोकी में कोई भी बात आप से छिपी नहीं है। फिर भी हम से बार - बार आने का कारण क्यों पूछते हैं ?           भगवान विष्णु ने कहा - देवताओं ! तुम्हें भयभीत नहीं होना चाहिए।  वृत्रासुर को मारने का उपाय मैं तुम्हें बताता हूँ।  इस दैत्य ने तपस्या कर ब्रह्मा जी से वर प्राप्त कर लिया है। इस कारण इस दैत्य को जीतने में सब प्राणी असमर्थ हैं। पहले इसे किसी प्रकार प्रलोभन से वश में करो। फिर अवसर पाकर इसको मार डालना चाहिए। मैं इंद्र की सहायता के लिए ,इनके श्रेष्ठ आयुध वज्र में गुप्तरुप से प्रवेश कर जाता हूँ। गन्धर्वो तुम लोग वृत्र...