गूगल से साभार चित्र 

       तदनन्तर इंद्र के साथ सभी देवता भगवान शंकर और ब्रह्मा जी को साथ लेकर भगवान विष्णु के स्थान पर पहुंचे। वेद में कहे पुरुषसूक्त मन्त्र से स्तुति करने के बाद श्री हरि से बोले -विभो ! त्रिलोकी में कोई भी बात आप से छिपी नहीं है। फिर भी हम से बार - बार आने का कारण क्यों पूछते हैं ? 
   
     भगवान विष्णु ने कहा - देवताओं ! तुम्हें भयभीत नहीं होना चाहिए।  वृत्रासुर को मारने का उपाय मैं तुम्हें बताता हूँ।  इस दैत्य ने तपस्या कर ब्रह्मा जी से वर प्राप्त कर लिया है। इस कारण इस दैत्य को जीतने में सब प्राणी असमर्थ हैं। पहले इसे किसी प्रकार प्रलोभन से वश में करो। फिर अवसर पाकर इसको मार डालना चाहिए। मैं इंद्र की सहायता के लिए ,इनके श्रेष्ठ आयुध वज्र में गुप्तरुप से प्रवेश कर जाता हूँ। गन्धर्वो तुम लोग वृत्रासुर के पास जाओ उससे वार्तालाप करके इंद्र के साथ उसकी मैत्री करा दो। अन्यथा यह कार्य असम्भव है। 

     अतः अपने हित को देखते हुए आप लोग मङ्गलमय भगवती योग माया के पास जाएँ। देवताओं उनकी शरण में जाकर भक्ति पूर्वक मन्त्रों को पढ़कर स्तुति करे। तब वे  सहायता अवश्य करेंगी। पूर्व समय में मुझे भी मधु और कैटभ दैत्यों के साथ भयंकर युद्ध करना पड़ा था। तब मैंने इन परम पूज्य भगवती जगदम्बा की स्तुति करी थी। तब देवी के द्वारा मोहित होने पर मैं उनको मार सका था। 

      परम प्रभु भगवान विष्णु के इस प्रकार की विचारों से प्रेरित होकर सभी देवता सुमेरुगिरि पर्वत पर चले गए।  इस पर्वत पर एक एकांत स्थान पर बैठकर देवताओं ने जप - तप -ध्यान आरम्भ किया। जिनकी सेवा करने से सांसारिक क्लेश दूर हो जाते हैं उन भगवती जगदम्बा की स्तुति करने में  संलग्न हो गए। 

      देवता बोले - देवी प्रसन्न हो। और देवताओं की रक्षा करो। वृत्रासुर ने हमें अत्यंत दुखी कर रखा है। हे ! परमार्थ स्वरूपा देवी ,देवता सदा ही आप के चरणों में आश्रय पाते रहे हैं। देवी आप करुणा की समुद्र हैं। करुणा करने वाली देवी,हम पर दया करें। जगदम्बे इस समय हम आपकी पूजा भी किसी पदार्थ से नहीं कर सकते। क्यों की वह सभी सामग्री आप की ही बनायीं हुयी है। मन्त्रों में ,पूजा में तथा अन्य समस्त पदार्थों में आपकी ही शक्ति समायी  हुयी है।  इसलिए हम  केवल आपके चरणों में मस्तक झुकना ही अपना अधिकार समझते हैं। इस त्रिलोक का सारा वैभव भी आप ही का है। अपने सेवकों पर कृपा करके उनको शक्ति शाली बनाना आपका ही कार्य है। इसी प्रकार आप उन पर उपकार करती हो। 

        इस प्रकार देवताओं की स्तुति करने पर भगवती जगदम्बा सुन्दर रूप धारण करके उनके सामने प्रकट हो गयी। उनके इस पतले शरीर को सम्पूर्ण भूषण विभूषित कर रहे थे।  पाश ,अंकुश और अभयमुद्रा से संपन्न उनकी चार भुजाएं थी। रेशमी सूत्र से बंधा हुआ कटिभाग अत्यंत मनोहर जान पड़ता था। कोयल के सामान मधुर उनकी बोली थी। उनके पैर में घुंघरू बज रहे थे। खंड चन्द्रमा जिसे सुशोभित कर रहा था।  ऐसा मुकुट वे मस्तक पर  धारण किये हुए थी। उनका मुखार बिन्द मंद मुस्कान से भरा था। उनके तीन नेत्र अनुपम छवि बढ़ा रहे थे। उनके सर्वांग पारिजात के फूलों से ढ़के थे। वे लाल रंग के वस्त्र पहने थी। उनका शरीर रक्त चन्दन से चर्चित था। दया की समुद्र वे देवी प्रसन्न होकर हँस रही थी। 

       समस्त शृंगार उनके श्री विग्रह को सुशोभित कर रहे थे। सम्पूर्ण द्वैतभाग को प्रकट करने वाली उन पारशक्ति से किंचिन्मात्र  अविदित नहीं है। सब की रचना करने वाली देवी अखिल अधिष्ठान स्वरूपाणि है। सम्पूर्ण वेदांत उन्ही को सिद्ध करने में सार्थक होते हैं। उनका विग्रह सत ,चित ,आनंदमय है। देवता खड़े हुए भगवती की ऐसी झांकी पा  कर उन्हें प्रणाम करने लगे। तब जगदम्बा ने उन देवताओं से कहा - मुझे बताओ तुम्हारे सामने कौन सा कठिन कार्य  उपस्थित है। 

       देवता बोले - देवी ! देवताओं को अत्यंत दुःख देने वाले इस प्रबल शत्रु वृत्रासुर को मोहित करने की व्यवस्था करो। इसकी बुद्धि पर पर्दा दाल दो ,कि यह  देवताओं के प्रति विश्वास करने लगे और हमारे आयुधों में इतनी शक्ति निहित कर दो जिससे यह शत्रु मारा जा सके। 

        बहुत अच्छा - ऐसा ही होगा - यूँ कहकर भगवती जगदम्बा वहीं अंतर्ध्यान हो गयी। सम्पूर्ण देवता भी प्रसन्नता पूर्वक अपने - अपने स्थान को चले गए। 

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