गूगल से साभार चित्र
एक समय इंद्र ने श्रेष्ठ मुनिवर गौतम जी से ब्रह्म हत्या का प्रायश्चित पूछा था। उन्होंने देवराज इंद्र को बताया की सुरश्रेष्ट भगवती महाकाली के लोक में जाकर उनके दर्शन करो। किन्तु उनका लोक कहाँ है यह मैं नहीं जनता। उनकी यहाँ बात सुनकर इंद्र ब्रह्मा जी के पाए आये और पूछा। तब उन्होंने कहा की इसका पता तो श्री विष्णु बता सकते हैं। किन्तु भगवन विष्णु भी महाकाली के धाम को नहीं जानते थे। अतः वे सभी श्री महादेव जी के पास पहुंचे। और अपने आने का उद्देश्य प्रकट किया।
श्री शिव जी बोले - मधुसूदन ! एक लाख दिव्य वर्षों तक तपस्या कर के मैंने उस स्थान का ज्ञान प्राप्त किया है। आप सभी मेरे साथ आएं। मैं वहां ले चलूँगा। शीघ्र ही उनके लोक में पहुंचकर उन भगवती के दर्शन कराऊंगा। हम आज ही महाकाली के रत्नमंडित लोक को जायेंगे।
तब महेश्वर शिव वृषवाहन पर आरूढ़ होकर , भगवान् विष्णु वायु से भी द्रुत गामी गरुण पर तथा पितामह ब्रह्मा मणि जटित विमान पर तथा इंद्र भी अपने पुष्पक विमान पर आरूढ़ होकर चले। आकाश मार्ग से जाते हुए श्रेष्ट देवों ने परस्पर वार्तालाप में कहा की - वे ही महा माहेश्वरी पराशक्ति हैं और श्री महाकाली से श्रेष्ट कुछ भी नहीं। वे ही माहेश्वरी इस जगत का सृजन , पालन एवं संहार करती हैं। हम तीनों तो निमित्त मात्र हैं। वे श्रेष्ठ देवगण मार्ग को पार कर श्री महाकाली के श्रेष्ट लोक में आये। जो स्वर्ण से मंडित होकर अद्भुत शोभा पा रहा था।
वहां पहुंचकर चारों ओर की शोभा देखकर इंद्र ,ब्रह्मा और विष्णु अत्यंत चकित हुए। और आपस में कहने लगे कि हमारे लोकों को धिक्कार है ,लगता ही की इनकी रचना व्यर्थ ही हुयी है। ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश और इंद्र चारों ओर भ्रमण करते हुए भगवती जगदम्बिका के उस नगर की शोभा देखकर देर तक स्थिर रहे और अपने सभी अभीष्ट उद्देश्यों को भूलकर किसी को भी यह स्मरण नहीं रहा कि वे यहाँ क्यों उपस्थित हुए हैं?
कुछ समय बाद पुष्प चुनने वाली योगिनिया वहां आयी। उन्होंने उन महा पुरुषों से पूछा की आप यहाँ किस कारण से आये हैं। उनकी बात सुनकर उन्हें यहाँ आने का कारण याद आया। और उन्होंने कहा की हम साक्षात् महाकाली के दर्शन करने आये हैं।
योगिनिया बोली - यदि आप लोग देवी महाकाली के दर्शन करने आये हैं तो यहाँ खड़े रहकर इतनी देर से आदर पूर्वक क्या देख रहे हैं ? देवी की महामाया आश्चर्य जनक है , जिसने संसार को मोहित कर रखा है। उसी ने आप लोगों को भी मोहित किया है। आप अपने वर्तमान लक्ष्य को भूल गए।
इतना कहकर वे सभी चली गई और सभी देवता परस्पर कहने लगे कि इतनी देर से यहाँ आकर हम लोग खड़े - खड़े क्या कर रहे हैं। महेश्वर ! हम लोग तो भगवती महाकाली के दर्शन के लिए आये हैं। किन्तु उन माहेश्वरी देवी महाकाली के अब तक दर्शन नहीं हुए।
श्री शिवजी बोले - हम लोग आज ही चल कर जगन माता परमेश्वरी के दर्शन करेंगे और जगदम्बा के रत्न जटित पवित्र लोक में प्रवेश करेंगे। भगवान् शिव के इस प्रकार कहने पर श्रेष्ट देवगण अपने हृदय में भगवती माहाकाली का ध्यान करते हुए उनके दिव्य धाम के अंदर प्रवेश करने हेतु चल पड़े। तब नगर द्वार पर पंहुच कर हर्ष से प्रफुलित नेत्र वाले भगवान शिव ने ब्रह्मा ,विष्णु , इंद्र से कहा - यह विद्युत प्रभा के समान प्रभा युक्त स्वर्ण स्वचित वस्त्र से बना हुआ अत्यंत उच्च विशाल तथा श्रेष्ट सिंहध्वज भगवती जगदम्बा के प्रासाद शिखर पर पवन के द्वारा लहराता हुआ दिखाई दे रहा है। आप सब अपने विमानों और वाहनों से पृथ्वी पर उतर कर भक्ति पूर्वक उन जगत पूज्या भगवती को प्रणाम करें। जिससे इस नगर में प्रवेश करने में कोई विध्न न हो।
क्रमश ः .......
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