Posts

Showing posts from July, 2017
Image
              मित्रों, भगवान  शिवजी का विवाह सती  के साथ हो जाने पर वे हिमालय के श्रेष्ठ शिखर पहुंचे  तथा  सभी देवगण भी वहां आ पहुंचे।  महर्षिगण , देवपत्निया ,सर्प , गंदर्भ एवं हजारों किन्नरनिया वहां पहुंच गए। देवताओं ने आकाश से पुष्पों की वर्षा की।  अप्सराएँ नाचने लगी और गंदर्भ गान करने लगे।  सभी प्रथमगणों ने प्रसन्न होकर भगवान् शंकर एवं सती को प्रणाम किया तथा ताली बजाकर नाचने तथा गाने लगे।         तदनन्तर सभी देवगण सती एवं देवेश भगवान शंकर को  प्रणाम कर तथा उनकी आज्ञा पाकर अपने - अपने स्थान को चले गए।         एक बार बुद्धिमानों में श्रेष्ठ ज्ञानी और शिव भक्त नंदी   जो दक्ष की सेवा में थे वहां आये और भगवान् महेश को दंडवत प्रणाम कर वे बोले - देवाधिदेव !प्रभो ! मैं प्रजापति दक्ष का सेवक और  ब्रह्मऋषि दधीचि का शिष्य हूँ।  आप मुझे मोहित मत कीजिये।  मैं आप को साक्षात् परमेश्वर और परमात्मा के रूप में जनता हूँ।  मैं सृष्टि -...
Image
       तत्पश्चात उन आद्या सनातनी पूर्ण प्रकृति ने जन्म लेने के लिए सर्वगुण संपन्न दक्षपत्नी के गर्भ में प्रवेश किया। तदनन्तर दक्षपत्नी प्रसूति ने शुभ दिन एक कन्या को जन्म दिया।  वह कन्या प्रकृति स्वरूपणी भगवती पूर्णा ही थी।  करोड़ो चन्द्रमा के सामान उसकी आभा थी।  खिले हुए कमल के सामान उसके बड़े - बड़े नेत्र थे।  वह आठ भुजाओं से सुशोभित थी और उसका मुख अति सुन्दर था।  उस समय आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी।  सौकड़ों मधुर ध्वनियाँ बजने लगी और दिशाएँ स्वच्छ हो गयी।  उस कन्या का नाम सती रखा गया।          कन्या के बड़ी हो जाने पर एक दिन प्रजापति दक्ष उस सुन्दर मुख वाली कन्या को विवाह योग्य देखकर अपने मन में उसके विवाह का विचार करने  लगे कि इस कन्या को किसे प्रदान करना  चाहिए।  परन्तु यह तो स्वयं पराप्रकृति हैं।  जो अपने वर हेतु पहले से ही वचनबद्ध हैं।  लेकिन वे इस कन्या का विवाह शिव से नहीं करना चाहते थे।  इस लिए शूलधारी शिव को बिना आमंत्रित किये हुए ,श्रेष्ठ देवता , द...
Image
          श्री महादेव जी बोले- एक बार की बात है ,जगत की सृष्टि करने वाले ब्रह्मा जी ने अपने पुत्र दक्षप्रजापति से कहा - पुत्र ! मैं तुम्हारे कल्याण की एक बात बताता हूँ ,सुनो साक्षात् भगवान शिव ने परमपूर्णा प्रकृति की आराधना कर उनसे अपनी भार्या होने का वरदान प्राप्त किया है।  वह कहीं  न कहीं जन्म लेकर उन शिव को अपना पति रूप में अवश्य प्राप्त करेंगी।  वे प्रकृति आपकी पुत्री के रूप में उत्पन्न होकर शम्भु की भार्या बने इसके लिए आप कठोर तपस्या के द्वारा भक्ति पूर्वक उनकी प्रार्थना कीजिये और इस जगत में उत्पन्न मायरूपणी उन जगदम्बिका को पुत्री रूप में प्राप्त कर आप अपना जन्म सार्थक कीजिये।      ब्रह्मा जी के ऐसा कहने पर दक्षप्रजापति अतिशीघ्र  क्षीरसागर के तट पर आकर जगदम्बा की आराधना करने लगे।  उन्होंने उपवास आदि विधि से तीन हजार वर्ष तक तपस्या की।  उस प्रकार की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवती शिवा प्रकट हुईं।  उनका विग्रह निखरे हुए काजल के सामान था तथा वे चार सुन्दर भुजाओं से उक्त थीं ।  वे अपने हाथ में खड़क , कम...
Image
           तदनन्तर देवी प्रकृति ने उन ब्रह्मा से कहा - महामते ! द्विजगण तीनों संध्याओं में जिनकी उपसना करते हैं ,वे सावित्री मेरे अंश से उत्पन्न हुयी हैं।  वे सरस्वती तथा लक्ष्मी भी मेरे ही अंश से उत्पन्न हुयी हैं।  जिन्होंने अपनी लीला से तीनों लोको के पालन करता विष्णु को पति रूप में प्राप्त किया।  आप दोनों ब्रह्मा तथा विष्णु विश्यासक्त हो गए।  देवर्षिवर ! उन साक्षात् पराप्रकृति को पूर्ण भाव से पत्नी रूप में पाने की अभिलाषा करते हुए भी शिव परम योगी बने रहे।  उस प्रकार की तपस्या में रत भगवान शिव से जगदम्बिका प्रसन्न होकर प्रत्यक्ष रूप से बोली।      प्रकृति बोली- शम्भु ! आपका कौन सा अभीष्ठ वर है ,मुझ से मांग लें।  आपकी तपस्या पूर्ण उपासना से परम प्रसन्नता को प्राप्त मैं वह वर आपको अवश्य दूंगी।         शिव जी बोले- जिन से पूर्ण पांच श्रेष्ठ नारियाँ प्रकट हुयी थी ,वे आप विशुद्ध प्रकृति ही हम ब्रह्मा , विष्णु , महेश्वर को प्राप्त होंगी। उनमें से अपने अंश से सावित्री के रू...
Image
           मित्रों जब आदिशक्ति अपनी लीला में मग्न होती हैं ,तब सदाशिव दूर से ही उनके कार्यों को देखते रहते हैं।  और अगर उनकी लीला में कोई शक्ति रुकावट डालने की कोशिश करती है ,तब सदाशिव उस शक्ति को नष्ट कर  देते हैं।       मित्रों सावन का  महीना सदाशिव का माह कहा जाता है।  सारे संसार में सावन माह में भगवान शंकर की पूजा की जाती है।  अतः हम भी इस माह में आदिशक्ति के साथ सदाशिव का भी गुणगान करेंगे और उनसे सम्बंधित कुछ रोचक और शिक्षाप्रद प्रसंग आप को बताएँगे।       मित्रों आपने पहले पढ़ा था कि, किस प्रकार आदिशक्ति ने त्रिदेवों को प्रकट कर उन्हें इस सृष्टि के कार्यों में लगा दिया था।  ब्रह्मा जी और विष्णु जी के अपने - अपने कार्यों में लगने के बाद भगवान महेश्वर उन पूर्ण प्रकृति को पत्नी रूप में प्राप्त करने के लिए संयचित होकर भक्ति पूर्वक तप के द्वारा आराधना करने लगे। अपने ज्ञान नेत्र से भगवान महेश्वर को ऐसा करता देख परमपुरुष विष्णु भी उन्हीं को प्राप्त करने के लिए तपस्या करने बैठ गए। ...
Image
         मित्रों अब तक आपने पढ़ा कि किस प्रकार राजकुमार सुदर्शन को माँ भगवती जगदम्बिका कि कृपा से सिद्धि प्राप्त हो गयी थी।       एक रात स्वप्न   में विष्णुमयी पूर्ण ब्रह्मस्वरूपा भगवती जगदम्बा ने उसे अपने दर्शन भी कराये। वे अव्यक्त स्वरूपणी भगवती समस्त सम्पति प्रदान कर देती है।       शृंगवेरपुर के अध्यक्ष निषाद ने एक दिन , सुदर्शन के पास आकर उसे एक उत्तम रथ प्रदान किया।  उस रथ में सभी उपयोगी सामग्री प्रस्तुत थी।  वह रथ चार घोड़ों से खींचा जाता था।  पताकाएं उसकी शोभा बढाती थी।  राजकुमार सुदर्शन एक विजयशाली महान  व्यक्ति हैं।  मन में यह जानकर श्रृंगवेरपुर  के अध्यक्ष ने भेंट स्वरूप में उसके पास वे रथ उपस्थित किया था।  सुदर्शन ने भी प्रसन्नता  पूर्वक वह रथ ले लिया।  तथा  मित्र रूप में निषाद राज का जंगली फल - फूलों से स्वागत भी किया।   निषाद राज के चले जाने के बाद वहां उपस्थित मुनिगण प्रसन्न होकर सुदर्शन से कहने लगे - राजकुमार तुम भगवती क...
Image
        दोस्तों पिछले कथानक में कशी  नरेश की पुत्री को जब यह ज्ञात हुआ कि, भारतद्वाज मुनि के आश्रम में रहने वाले राजकुमार सुदर्शन एक सुरवीर होने के साथ - साथ बहुत ही सुन्दर भी हैं।  तब शशिकला के मन में उसे अपना पति बनाने की इच्छा हुयी।  उसी दिन आधी रात के समय स्वपन  में भगवती जगदम्बिका ,शशीकला के पास पधारी और उसे आश्वासन देकर कहने लगी - उत्तम कटिभाग से शोभा पाने वाली सुंदरी वर मांगो। सुदर्शन मेरा भक्त है। मेरी अज्ञा मानकर सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने   वाला, वह  सुदर्शन अब तुम्हारा हो गया। इस प्रकार भगवती जगदम्बिका के मनोहर रूप के दर्शन पाकर और उनके  मुख से सुन्दर वचनों को सुनकर शशीकला बड़ी जोर से हॅसने लगी, और वह उठकर बैठ गयी। शशीकला की  माँ के बार - बार पूछने पर   उस तपस्विनी राजकन्या ने कुछ भी नहीं बताया।  शशीकला ने एक दूसरी सखी को स्वपन की सभी बातें विस्तार से बता दी। उसके उपरांत  शशीकला अपनी शाखियों के साथ घूमने के   लिए सुन्दर उपवन में गयी। चंपा के बहुत से वृक्ष उस उप...
Image
          दोस्तों आपने इससे पहले देवी के बाग्बीज मंत्र   ' ऐ ' की महिमा की कथा सुनी ,अब हम आपको भगवती आदिशक्ति के एक दूसरे बग्बीज मंत्र की महिमा सुनते हैं।       सुदर्शन नाम का एक राजकुमार बालक एक राजा के मंत्री की देख - रेख में भारतद्वाज मुनि के आश्रम में रह रहा था।  जिसका नाम विदल्ल था।  एक  समय  मुनि के आश्रम में एक मुनिकुमार आया,  और हास्य के रूप में विदल्ल को ' क्लीव ' नाम से पुकारा।  इस 'क्लीव' शब्द में जो 'क्ली'  एक अक्षर है, वह सुदर्शन को स्पष्ट सुनायी  दिया। और वह उसे तुरंत याद हो गया।  अब  अनुस्वार हीन  उस शब्द को ही वह बार- बार रटने लगा।  'क्ली ' वह कामबीज नामक भगवती जगदम्बिका का बीजमंत्र है।  वह उस मंत्र का हृदय से जाप करने लगा।  यह उसके सौभाग्य की बात थी कि सुदर्शन को अनायास ही ऐसा अदभुत बीजमंत्र स्वमेव प्राप्त हो गया।  उस समय सुदर्शन की आयु पांच वर्ष थी।  ऋषि ,छंद ,ध्यान ,न्यास जो की किसी भी मंत्र  जाप करने के लिए अन...
Image
     मित्रों जैसा कि पहले हमने अपने शत्रु यानि काम , क्रोध , लालच , अहंकार ,बैर , द्वैष ,ईर्ष्या , भय इन शत्रुओं के बारे में बताया था जो की हमारे अंदर ही विध्यमान हैं, और वे ही हमारे उत्थान (प्रगति ) में  बाधक हैं।  इसी सन्दर्भ मे  हम आपको एक प्रसंग बताते हैं।        मित्रों एक समय की बात है- श्रीमान विश्वामित्र जो की एक प्रसिद्ध नरेश हो चुके हैं , वे घूमते हुए वशिष्ठ मुनि के आश्रम पर पहुंच गए।  उन प्रतापी नरेश ने मुनि को प्रणाम किया।  मुनि ने राजा को बैठने के लिए आसन दिया।  उसके बाद मुनि वशिष्ठ जी ने विश्वामित्र को भोजन के लिए बुलाया।  महाराज विश्वामित्र अकेले नहीं थे।  उनके साथ बड़ी  सेना भी थी।   मुनि वशिष्ठ के पास नंदनी गाय थी। जो वशिष्ठ जी के मांगने पर सभी खाने - पीने की वस्तओं  को उपलब्ध करा  देती थी।  उस नंदनी गाय की कृपा से वहां  पर सभी लोगों के लिए पर्याप्त खाने - पीने की वस्तुऐं  उपस्थित हो गयी। नंदनी गाय के प्रभाव से महाराज विश्वामित्र भी ...