
मित्रों, भगवान शिवजी का विवाह सती के साथ हो जाने पर वे हिमालय के श्रेष्ठ शिखर पहुंचे तथा सभी देवगण भी वहां आ पहुंचे। महर्षिगण , देवपत्निया ,सर्प , गंदर्भ एवं हजारों किन्नरनिया वहां पहुंच गए। देवताओं ने आकाश से पुष्पों की वर्षा की। अप्सराएँ नाचने लगी और गंदर्भ गान करने लगे। सभी प्रथमगणों ने प्रसन्न होकर भगवान् शंकर एवं सती को प्रणाम किया तथा ताली बजाकर नाचने तथा गाने लगे। तदनन्तर सभी देवगण सती एवं देवेश भगवान शंकर को प्रणाम कर तथा उनकी आज्ञा पाकर अपने - अपने स्थान को चले गए। एक बार बुद्धिमानों में श्रेष्ठ ज्ञानी और शिव भक्त नंदी जो दक्ष की सेवा में थे वहां आये और भगवान् महेश को दंडवत प्रणाम कर वे बोले - देवाधिदेव !प्रभो ! मैं प्रजापति दक्ष का सेवक और ब्रह्मऋषि दधीचि का शिष्य हूँ। आप मुझे मोहित मत कीजिये। मैं आप को साक्षात् परमेश्वर और परमात्मा के रूप में जनता हूँ। मैं सृष्टि -...