श्री महादेव जी बोले- एक बार की बात है ,जगत की सृष्टि करने वाले ब्रह्मा जी ने अपने पुत्र दक्षप्रजापति से कहा - पुत्र ! मैं तुम्हारे कल्याण की एक बात बताता हूँ ,सुनो साक्षात् भगवान शिव ने परमपूर्णा प्रकृति की आराधना कर उनसे अपनी भार्या होने का वरदान प्राप्त किया है।  वह कहीं  न कहीं जन्म लेकर उन शिव को अपना पति रूप में अवश्य प्राप्त करेंगी।  वे प्रकृति आपकी पुत्री के रूप में उत्पन्न होकर शम्भु की भार्या बने इसके लिए आप कठोर तपस्या के द्वारा भक्ति पूर्वक उनकी प्रार्थना कीजिये और इस जगत में उत्पन्न मायरूपणी उन जगदम्बिका को पुत्री रूप में प्राप्त कर आप अपना जन्म सार्थक कीजिये।
     ब्रह्मा जी के ऐसा कहने पर दक्षप्रजापति अतिशीघ्र  क्षीरसागर के तट पर आकर जगदम्बा की आराधना करने लगे।  उन्होंने उपवास आदि विधि से तीन हजार वर्ष तक तपस्या की।  उस प्रकार की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवती शिवा प्रकट हुईं।  उनका विग्रह निखरे हुए काजल के सामान था तथा वे चार सुन्दर भुजाओं से उक्त थीं ।  वे अपने हाथ में खड़क , कमल तथा अभयमुद्रा धारण किये हुए थीं ।  उनके नेत्र नीलकमल के सामान सुशोभित थे।  उनके दांत अत्यंत मनोहर थे।  वे सुन्दर मुंडमाला से विभूषित थीं ।  वे दिशा रूपी वस्त्र धारण किये हुए थीं ।  उनके बाल खुले हुए थे।  वे अनेक विद्धमणियों से शोभा पा  रही थीं।  सिंह की पीठ पर सवार थीं ।  और मध्यान कालीन सैकड़ों सूर्य की प्रभा के सामान प्रकाशमान थीं।
      देवी ने दक्ष से कहा - वत्स !तुम मुझसे क्या याचना कर रहे हो ? प्रजापते मैं तुम्हारे भाव से प्रसन्न होकर उसे शीघ्र दूंगी।
      दक्ष बोले - माता ! आदि आप मुझ से प्रसन्न हैं ,तो आप मेरी पुत्री के रूप में मेरे घर में जन्म लीजिये।
 श्री देवी जी ने कहा - पूर्व काल में शम्भु ने मुझ से प्रार्थना की थी।  मैं उनकी भार्या बनू।  और मैंने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली थी।  अब मुझे कहीं जन्म लेना है।  अब मैं आपके घर में जन्म लूंगी।  मैं साक्षात् प्रकृति स्वरूपणी भगवती पूर्णा आपकी इस तपस्या से प्रसन्न हूँ।  स्वर्णतुल्य गौर अंगों से युक्त विग्रह वाली मैं आपकी कन्या होउंगी।  सुन्दर शरीर वाली तथा सौम्य रूप वाली मैं तभी तक आपके यहाँ रहूंगी , जब तक आपकी तपस्या का पुण्य क्षीण नहीं हो जाता।  पुनः तपस्या का पुण्य क्षीण होने पर जब आपके द्वारा मेरा अनादर होगा तब मैं इसी तरह का विग्रह धारण कर अपनी माया से स्थावर - जंगम में सम्पूर्ण जगत को विमोहित करके अपने धाम चली जाउंगी।  ऐसा कहकर उनके देखत - देखते अचानक वे अंतरध्यान हो गयीं।  

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