मित्रों जब आदिशक्ति अपनी लीला में मग्न होती हैं ,तब सदाशिव दूर से ही उनके कार्यों को देखते रहते हैं।  और अगर उनकी लीला में कोई शक्ति रुकावट डालने की कोशिश करती है ,तब सदाशिव उस शक्ति को नष्ट कर  देते हैं।
      मित्रों सावन का  महीना सदाशिव का माह कहा जाता है।  सारे संसार में सावन माह में भगवान शंकर की पूजा की जाती है।  अतः हम भी इस माह में आदिशक्ति के साथ सदाशिव का भी गुणगान करेंगे और उनसे सम्बंधित कुछ रोचक और शिक्षाप्रद प्रसंग आप को बताएँगे।
      मित्रों आपने पहले पढ़ा था कि, किस प्रकार आदिशक्ति ने त्रिदेवों को प्रकट कर उन्हें इस सृष्टि के कार्यों में लगा दिया था।  ब्रह्मा जी और विष्णु जी के अपने - अपने कार्यों में लगने के बाद भगवान महेश्वर उन पूर्ण प्रकृति को पत्नी रूप में प्राप्त करने के लिए संयचित होकर भक्ति पूर्वक तप के द्वारा आराधना करने लगे। अपने ज्ञान नेत्र से भगवान महेश्वर को ऐसा करता देख परमपुरुष विष्णु भी उन्हीं को प्राप्त करने के लिए तपस्या करने बैठ गए।
        यह सब जानकर भगवान ब्रह्मा भी सृष्टि करना छोड़कर उसी अभिलाषा से तपस्या हेतू बैठ गए।  इस प्रकार आराधनारत उन तीनों की परीक्षा करने के लिए स्वयं प्रकृति ब्रह्माण्ड को डरा देने वाला भयंकर रूप धारण कर  के उन के पास आयी।  उन्हें देखकर ब्रह्मा जी ने भय से अपना मुख फेर लिया।  वे उनके सम्मुख पुनः गयी। तब भी ब्रह्मा जी विमुख हो गए।  इसी प्रकार चारों दिशाओं में वे क्रम से चार बार गयीं।  इससे अत्यंत डरे हुए ब्रह्मा चार मुख वाले हो गए।  और भयभीत होकर वे तपस्या छोड़कर उसी समय वहां से भाग गए।  उसके बाद महान भय उत्पन्न करने वाली वे प्रकृति वहां  पर शीघ्र पहुंची।  जहाँ परम पुरुष विष्णु एकाग्रचित्त होकर तप कर रहे थे।  उन्हें देखकर हजार सिर ,हजार नेत्र तथा हजार पैरों वाले वह विष्णु भी उस समय भयभीत हो गए ,और तपस्या छोड़कर आँखें बंद किये हुए जल के अंदर प्रविष्ट हो गए।
       इस प्रकार उन दोनों की तपस्या भंग हो जाने पर भीषण रूप वाली वे प्रकृति महेश के पास गयी।  किन्तु वे किसी भी तरह उनका ध्यान भंग करने में समर्थ नहीं हो सकी।  अपने विज्ञान विशेष से भगवान शिव भयंकर रूप वाली देवी प्रकृति को परीक्षा के लिए आयी हुयी जानकर समाधि  में बैठे रहे।  उससे अत्यंतप्रसन्न हुयी प्रकृति - स्वरूपणी श्रेष्ट भगवती जो गंगा रूप में स्वर्ग में स्थित हैं ,भगवान् शिव को देवी पूर्णा के स्वरूप में प्राप्त हुयी। उन्होंने अपनी पूर्व प्रतिज्ञा के अनुसार अपने अंश से सावित्री होकर पति रूप में ब्रह्मा जी को प्राप्त किया।  महामते इसी प्रकार उन्होंने अपने ही अंश से लक्ष्मी होकर विष्णु को पति रूप में प्राप्त किया और अपने ही अंश से सरस्वती के भी रूप में प्रतिष्ठित हुयीं।

Comments

Popular posts from this blog