तत्पश्चात उन आद्या सनातनी पूर्ण प्रकृति ने जन्म लेने के लिए सर्वगुण संपन्न दक्षपत्नी के गर्भ में प्रवेश किया। तदनन्तर दक्षपत्नी प्रसूति ने शुभ दिन एक कन्या को जन्म दिया।  वह कन्या प्रकृति स्वरूपणी भगवती पूर्णा ही थी।  करोड़ो चन्द्रमा के सामान उसकी आभा थी।  खिले हुए कमल के सामान उसके बड़े - बड़े नेत्र थे।  वह आठ भुजाओं से सुशोभित थी और उसका मुख अति सुन्दर था।  उस समय आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी।  सौकड़ों मधुर ध्वनियाँ बजने लगी और दिशाएँ स्वच्छ हो गयी।  उस कन्या का नाम सती रखा गया।  
       कन्या के बड़ी हो जाने पर एक दिन प्रजापति दक्ष उस सुन्दर मुख वाली कन्या को विवाह योग्य देखकर अपने मन में उसके विवाह का विचार करने  लगे कि इस कन्या को किसे प्रदान करना  चाहिए।  परन्तु यह तो स्वयं पराप्रकृति हैं।  जो अपने वर हेतु पहले से ही वचनबद्ध हैं।  लेकिन वे इस कन्या का विवाह शिव से नहीं करना चाहते थे।  इस लिए शूलधारी शिव को बिना आमंत्रित किये हुए ,श्रेष्ठ देवता , दैत्य , गंदर्भ और किन्नरों की एक शिवशून्य सभा बुलाकर बिना शिव के एक स्वयम्वरोत्सव यज्ञ का आयोजन किया। 
      दिव्यमाला और वस्त्रों तथा प्रभामय स्वर्ण के मुकुट धारण किये हुए देवता उस सभा में विराजमान थे।  उस सभा में गंदर्भगण मनोहर गीत गा रहे थे।  सौकड़ों अप्सराएं आनंदित होकर नाच रही थी।  प्रजापति दक्ष ने शुभ समय पर त्रैलोक्य सुंदरी उस कन्या सती को सभा में बुलाया। 
      मनोहर कांति युक्त  परम् प्रसन्नता पूर्वक वहां उपस्थित हुयी।  वह सौंदर्य की प्रतिमा सामान सुशोभित हो रही थी।  इसी बीच सर्वश्रेष्ठ महेश्वर नंदी पर स्वर हो उस सभा में अंतरिक्ष में स्थित हो वहाँ उपस्थित हो गए।  प्रजापति दक्ष ने अपनी कन्या सती से कहा - माता ! ये देवता, असुर , ऋषि तथा महात्मा लोग यहाँ उपस्थित हैं , इनमे से जो भी आपको अच्छा प्रतीत हो उसका वरण कर लें।  उनका ऐसा कहने पर प्रकृति रूपिणी देवी सती ने शिवाय नमः  ऐसा कहकर वह माला भूमि को समर्पित कर दी और वहां पर प्रकट होकर भगवान शिव ने  सती के द्वारा अर्पित की हुयी उस माला को अपने सिर में धारण कर लिया।  दिव्यमाला तथा वस्त्र धारण करने वाले , दिव्य गंधों से लिप्त शरीर वाले, खिले हुए कमल के समान तीन नेत्रों वाले दिव्यधारी भगवान शिव सती के द्वारा प्रदत्त उस माला को  धारण कर प्रसन्ता पूर्वक सभी देवताओं के देखते - देखते उस स्थान से सहसा अंतरध्यान हो गए। 

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