तदनन्तर देवी प्रकृति ने उन ब्रह्मा से कहा - महामते ! द्विजगण तीनों संध्याओं में जिनकी उपसना करते हैं ,वे सावित्री मेरे अंश से उत्पन्न हुयी हैं।  वे सरस्वती तथा लक्ष्मी भी मेरे ही अंश से उत्पन्न हुयी हैं।  जिन्होंने अपनी लीला से तीनों लोको के पालन करता विष्णु को पति रूप में प्राप्त किया।  आप दोनों ब्रह्मा तथा विष्णु विश्यासक्त हो गए।  देवर्षिवर ! उन साक्षात् पराप्रकृति को पूर्ण भाव से पत्नी रूप में पाने की अभिलाषा करते हुए भी शिव परम योगी बने रहे।  उस प्रकार की तपस्या में रत भगवान शिव से जगदम्बिका प्रसन्न होकर प्रत्यक्ष रूप से बोली।      प्रकृति बोली- शम्भु ! आपका कौन सा अभीष्ठ वर है ,मुझ से मांग लें।  आपकी तपस्या पूर्ण उपासना से परम प्रसन्नता को प्राप्त मैं वह वर आपको अवश्य दूंगी। 
       शिव जी बोले- जिन से पूर्ण पांच श्रेष्ठ नारियाँ प्रकट हुयी थी ,वे आप विशुद्ध प्रकृति ही हम ब्रह्मा , विष्णु , महेश्वर को प्राप्त होंगी। उनमें से अपने अंश से सावित्री के रूप में उत्पन्न होकर आप ब्रह्मा जी को प्राप्त हुईं ,और अपने ही अंश से लक्ष्मी एवं सरस्वती होकर विष्णु को प्राप्त हुयी।  किन्तु परमपूर्णा प्रकृति आप स्वयं अपनी लीला से कहीं जन्म लेकर मुझे प्राप्त हों। 
       प्रकृति बोली - दक्ष प्रजापति के यहाँ अपनी माया से उत्पन्न होकर मनोहर शरीर वाली पूर्णा प्रकृति मैं ही आपकी भार्या बनूँगी।  जब दक्ष के यहाँ उनके देहाभिमान से मेरा तथा आपका अनादर होगा तब अपने मायारुपी अंश से उन्हें विमोहित कर मैं अपने स्थान को चली जाऊँगी।  महेश्वर उस समय आप से मेरा वियोग हो जायेगा।  और तब आप भी मेरे बिना कही भी नहीं ठहर सकेंगे।  इस प्रकार हम दोनों के बीच परमप्रीति बानी रहेगी। 
       श्री महादेव जी बोले - मुनिश्रेष्ठ ! वे परमेश्वरी प्रकृति महेश्वर से इतना कहकर अंतरध्यान हो गयी।  और शिव के  मन में प्रसन्नता व्याप्त हो गयी।  

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