मित्रों, भगवान शिवजी का विवाह सती के साथ हो जाने पर वे हिमालय के श्रेष्ठ शिखर पहुंचे तथा सभी देवगण भी वहां आ पहुंचे। महर्षिगण , देवपत्निया ,सर्प , गंदर्भ एवं हजारों किन्नरनिया वहां पहुंच गए। देवताओं ने आकाश से पुष्पों की वर्षा की। अप्सराएँ नाचने लगी और गंदर्भ गान करने लगे। सभी प्रथमगणों ने प्रसन्न होकर भगवान् शंकर एवं सती को प्रणाम किया तथा ताली बजाकर नाचने तथा गाने लगे।
तदनन्तर सभी देवगण सती एवं देवेश भगवान शंकर को प्रणाम कर तथा उनकी आज्ञा पाकर अपने - अपने स्थान को चले गए।
एक बार बुद्धिमानों में श्रेष्ठ ज्ञानी और शिव भक्त नंदी जो दक्ष की सेवा में थे वहां आये और भगवान् महेश को दंडवत प्रणाम कर वे बोले - देवाधिदेव !प्रभो ! मैं प्रजापति दक्ष का सेवक और ब्रह्मऋषि दधीचि का शिष्य हूँ। आप मुझे मोहित मत कीजिये। मैं आप को साक्षात् परमेश्वर और परमात्मा के रूप में जनता हूँ। मैं सृष्टि - स्थिति और संहारकारिणी भगवती सती को मूल प्रकृति के रूप में जनता हूँ। इस प्रकार भक्तों पर कृपा करने वाले भगवान् शंकर का अपनी भक्तिपूर्ण वाणी से स्तवन किया।
नंदी बोले - शिव !आप त्रिलोकी के आदि परम पुरुष हैं और समस्त जगत के सृष्टि , पालन एवं संहार करने वाले आप ही हैं। वरदायक भवानीपति आप ऐश्वर्य युक्त युवक , वृद्ध और एक मात्र ब्रह्म हैं। हिमधवल कांति से युक्त शशिसमूह को पराजित करने वाला और अर्द्ध चन्द्र धारण किये हुए चन्द्रमा के सामान पांच मुखों वाला सुन्दर आपका स्वरूप अचिन्त्य है। निर्मल नागमणि से सुशोभित सर्प रूपी आभूषण को सिर पर धारण करने वाले और ब्रह्मादि देवताओं द्वारा पूजित युग चरण कमल वाले आपको मैं नमस्कार करता हूँ। पृथ्वी पर जो व्यक्ति निरंतर भक्ति अथवा अभक्ति पूर्वक भी आप की नित्य पूजा करते हैं , आप के नामों का संकीर्तन करते हैं और आप के मन्त्र का निरंतर जप करते हैं वे आपके चरणों की सनिधि पाकर निरंतर स्वर्ग में रमण करते हैं। प्रभो ! पशुपति ! आप देवाधिदेव को छोड़कर दीनों पर दया करने वाला और कौन है ?
महादेव जी बोले - नंदी ! तुम्हारी क्या इच्छा है मांगो , वह मैं तुम्हें देता हूँ।
नंदी ने कहा - जगदीश्वर ! मैं आपका हमेशा निकट रहने वाला दास बना रहूं और अपनी आँखों से नित्य आपके दर्शन करता रहूँ। यही आप से याचना करता हूँ।
शिव जी बोले - वत्स ! जो तुमने मुझसे माँगा है वैसा ही होगा। अवश्य ही तुम हमेशा मेरे समीप निवास करोगे।
पृथ्वी पर जो मानव इस स्त्रोत से भक्तिपूर्वक मेरी स्तुति करेंगे ,उनका तीनो लोको में कभी अशुभ नहीं होगा। इस मृत्यु लोक में दीर्घ काल तक रहकर वे अंत में मोक्ष प्राप्त करेंगे। महामते ! तुम मेरे इन प्रथमगणों के अधिपति होकर मेरे इस शिवलोक में निवास करो। नंदी तुम मेरे प्रिय भक्त हो।
इस प्रकार भगवान् शंकर से वर प्राप्त कर नंदी शिव के गणों के अधिपति हो गए और सदा शिव के साथ वही पर निवास करने लगे।
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