दोस्तों आपने इससे पहले देवी के बाग्बीज मंत्र ' ऐ ' की महिमा की कथा सुनी ,अब हम आपको भगवती आदिशक्ति के एक दूसरे बग्बीज मंत्र की महिमा सुनते हैं।
सुदर्शन नाम का एक राजकुमार बालक एक राजा के मंत्री की देख - रेख में भारतद्वाज मुनि के आश्रम में रह रहा था। जिसका नाम विदल्ल था। एक समय मुनि के आश्रम में एक मुनिकुमार आया, और हास्य के रूप में विदल्ल को ' क्लीव ' नाम से पुकारा। इस 'क्लीव' शब्द में जो 'क्ली' एक अक्षर है, वह सुदर्शन को स्पष्ट सुनायी दिया। और वह उसे तुरंत याद हो गया। अब अनुस्वार हीन उस शब्द को ही वह बार- बार रटने लगा। 'क्ली ' वह कामबीज नामक भगवती जगदम्बिका का बीजमंत्र है। वह उस मंत्र का हृदय से जाप करने लगा। यह उसके सौभाग्य की बात थी कि सुदर्शन को अनायास ही ऐसा अदभुत बीजमंत्र स्वमेव प्राप्त हो गया। उस समय सुदर्शन की आयु पांच वर्ष थी। ऋषि ,छंद ,ध्यान ,न्यास जो की किसी भी मंत्र जाप करने के लिए अनिवार्य है ,उसका उसे पता ही न था। वह उस मंत्र को हर समय मन ही मन जपा करता था। क्यूंकि उसमें उसे एक सार वस्तु समझ लिया था। जब सुदर्शन ग्यारह वर्ष का हुआ तब भारतद्वाज मुनि ने उसका यज्ञोपवीत संस्कार करके उसे वेदध्यान करने लगे। उस कामबीज मंत्र के प्रभाव से उसे सांगोपांग ,धनुर्वेद , नीतिशास्त्र तथा सम्पूर्ण विद्यायें भलि - भांति प्राप्त हो गयी। एक समय भगवती ने उसे साक्षात् दर्शन देकर कृतार्थ किया।
भगवती लाल वस्त्र पहने हुयी थी। उनके विग्रह से लालीमा चमक रही थी। सभी आभूषण भी लाल वर्ण के ही थे। वे अदभुत शक्ति वैष्णवी गरुण पर विराजमान थी। उन जगदम्बिका के दर्शन पाकर सुदर्शन का मुख प्रसन्नता से भर गया। अब सम्पूर्ण विद्याओं को जानने वाला वह राजकुमार उसी वन में रहने लगा और भगवती जगदम्बिका की उपासना करते हुए नदी के तट पर घूमने लगा। जगत जननी की कृपा से उसे धनुष और बहुत से तीखे वाण , तूणीर और कवच मिल गए थे।
कशी नरेश की एक कन्या थी उसका नाम शशीकला था। उस कन्या में सभी उत्तम गुण थे। जब उस कन्या ने सुना की समीप ही एक मुनि के आश्रम में एक राजकुमार रहता है ,और उसका नाम सुदर्शन है। वह सूरवीर होने के साथ ही बहुत ही सुन्दर भी है। तब शशीकला के मन में उससे मिलने एवं अपना पति बनाने की इच्छा हुयी।
नोट :- अगले भाग में बताएँगे कि किस प्रकार भगवती जगदम्बिका ने शशीकला पर अपनी कृपा की वर्षा की।
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