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Showing posts from September, 2017
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                                                गूगल से साभार चित्र           दशरथ पुत्र राम का विजयादशमी के दिन महाबली ,वेदज्ञ, ब्राह्मण रावण का वध करने का कारण विशेष है।               भगवान श्री राम का जन्म तो महाबली राक्षसराज रावण  ,मेघनाथ ,कुम्भकरण एवं अनेक राक्षसों के नाश के लिए ही हुआ था। वे भगवान विष्णु के अवतार थे। वह ख़ुशी - ख़ुशी अपनी पत्नी सीता एवं भाई लक्ष्मण के साथ वन को चले गए।           वन में रावण की बहन सूपनखा नाम की राक्षसी भगवान राम के रूप पर मोहित हो गयी और भेष बदल कर प्रभु राम के पास गयी। परन्तु एक स्त्री व्रतधारी प्रभु राम ने उसकी नाक काटकर उसे वापस भेज दिया।  इस बात से कुपित होकर उसके भाई रावण ने छल से माता सीता का अपहरण कर लिया। सब ओर पता करने पर भी राम  को सीता का कुछ पता नहीं चला ,तब प्रभु राम ने अपने भाई लक्ष्मण ...
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                                                  गूगल से साभार चित्र            दुर्गा सप्तसती के अनुसार राजा सुरथ ने  अपने मंत्रियों के द्वारा राज्य छीन लिए जाने के कारण जंगल में मेघा ऋषि के आश्रम में शरण ली और वैश्य समाधि के अपने पुत्रों एवं अपनी पत्नी के द्वारा घर से निकले जाने से मेघा ऋषि के आश्रम में पहुंचने पर एक दूसरे से परिचय प्राप्त किया। अपने दुःख को मेघा ऋषि के सामने व्यक्त करने पर ऋषि द्वारा उन्हें बताया गया की यह सब माया भगवती आदिशक्ति की लीला है। इस पर उन दोनों द्वारा आदिशक्ति के चरित्र के विषय में पूछे जाने पर मेघा ऋषि ने उन्हें भगवती आदि शक्ति माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों की महिमा का गुणगान करते हुए दैत्यराज महिषासुर के वध के विषय में सुनते हुए कहा -                   जगदम्बा के श्री अंगों की कांति उदय काल के सहस्त्रों सूर्यों के समन है।  व...
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                                                                    गूगल से साभार         जिनकी अंग कान्ति शारदीय चन्द्रमा   के समान उज्जवल है, जो उत्तम रत्न द्वारा निर्मित मकराकृति कुण्डल और हार से विभूषित हैं ,जिनके गहरे नीले हजारों हाथ दिवायुद्धों से संपन्न है तथा चरण लाल कमल की  कान्ति सदृश्य  हैं ,ऐसी आप परमेश्वरी का मैं प्रातः काल स्मरण करता हूँ।                जो महिषासुर ,चण्ड - मुण्ड ,शुम्भासुर आदि प्रमुख दैत्यों का विनाश करने में निपुण हैं। लीला पूर्वक ब्रह्मा ,इंद्र ,रूद्र और मुनियों को मोहित करने वाली हैं।समस्त देवताओं की मूर्ति रूप हैं तथा अनेक रूपों वाली हैं। उन चण्डी को मैं प्रातः काल नमस्कार करता हूँ।         जो भजन करने वाले भक्तों की अभिलाषा को पूर्ण करने वाली, समस्त जगत का धारण -...
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                                                            गूगल से साभार               महोत्कट चार वर्ष के हुए। अपनी बुद्धि ,कौशल एवं अलौकिक कर्मों से वे आश्रम वासियों के प्राण प्रिय और सम्पूर्ण आशाओं के केन्द्र बन गए।              आश्रम के निकट ही तमाल ,देवदारु ,जम्बू ,आम और कटहल के सघन वृक्ष थे। उनके मध्य में एक सुन्दर सरोवर था।  सरोवर का जल अत्यंत मीठा ,निर्मल और मधुर था। किन्तु उसमें बहुत से मत्स्य और मगर रहते थे।  उनसे आश्रम वासियों को बड़ा कष्ट होता था। मगर के भय से आश्रमवासी उसमे स्वच्छंद स्नान नहीं कर सकते थे। उसके तट पर संध्या वंदन करने एवं जल भरने में भी डरते थे।           एक दिन की बात है ,सोमवती अमावस्या थी और व्यतिपात का योग इस उत्तम पर्व पर अदिति देवी सरोवर में स्नान करने के लिए आयी। माता के साथ श...
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                                                          गूगल से साभार             तेजस्वी महोत्कट की ख्याति सुनकर उनके दर्शनार्थ वशिष्ठ ,वामदेव आदि महर्षि कश्यप  के आश्रम में पहुंचे। मुनि कश्यप ने उनकी आसन ,पाद्य और अर्ध्य पूर्वक रीति पूर्वक पूजा की। उन्होंने गायें प्रदान की। हाथ जोड़कर श्रद्धा पूर्वक शब्दों में कहा- मेरा परम सौभाग्य है जो आप जैसे तपोधनो ने यहाँ पधारने का अनुग्रह किया।  मुझे आज्ञा प्रदान करे की मैं आपका क्या कार्य करूँ ?                 मुनिवर ! देवर्षि नारद के द्वारा आपके अद्भुत ,आलौकिक परम तेजस्वी और लोकोद्धारक पुत्र महोत्कट के जन्म का समाचार पाकर हम उसे देखने आये हैं।  वशिष्ठ ने कहा - यहाँ आने का यही परियोजन है।                       माता अदिति तुरंत अपने प्राण ...
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                देवान्तक और नरान्तक के कठोरत्तम क्रूर शासन में समस्त देव समुदाय और ब्राह्मण अत्यंत भयभीत होकर कष्ट भोग रहे थे।  वे आधिर व अशांत हो गए थे।  दुष्ट - दैत्यों के भार से पीड़ित धरती कमलासन के पास पहुंची। हाथ जोड़कर अश्रु बहते हुए ,पृथ्वी ने चतुर्मुख से निवेदन किया। समस्त देवताओं सहित सहरत्रात और ऋषिगण गिरी - गुफांओं में छिप कर यातनाएँ पा  रहे हैं। यज्ञ ,व्रत आदि स्थगित हो गए हैं।  दानवकुल के असह भार से दुःखी होकर मैं आपकी शरण में आयी हूँ। आप दुष्ट दैत्यों के विनाश का यत्न कीजिये।  अन्यथा मैं वनों ,पर्वतों और सृष्टि के समस्त प्राणियों सहित रसातल में चली जाउंगी।                 स्वयं मैं समस्त लोकपाल ,इन्द्रादि देवगण  और ऋषिगण ,स्वधा  -  स्वाहा रहित हो अतिशय दुःख पा  रहें हैं। विधाता ने धरती की वाणी सुनकर कहा - देवी ! हम सभी स्थान मन्त्र और आचार से भ्र्ष्टप्राय हो गए हैं।  अतेव इस विपत्ति से त्राण पाने के लिए हम सभी करुणामय देव - देव...
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एक दन्त, चतुर्भुज ,चा रों हाथों में पाश , अंकुश, अभय और वरदान की मुद्रा धारण किये हुए तथा मूसक चिन्ह की ध्वजा   लिए हुए रक्तवर्ण ,लम्बे उदर वाले सूप जैसे बड़े- बड़े   कानों वाले ,रक्तवस्त्र धारी ,शरीर पर लाल चन्दन का लेप किये हुए ,लालपुष्पों से भली - भांति पूजित भक्त के ऊपर अनुकम्पा करने वाले देवता जगत के कारण अच्युत सृष्टि के आदि में अभिभूर्त  प्रकृति और पुरुष से परे मूसक ध्वज श्री गणेश जी का जो नित ध्यान करता है ,वह योगी सब योगियों में श्रेष्ठ है।             महामुनि कश्यप रत्रष्टा के पुत्र थे।  वे अत्यधिक बुद्धिमान पुण्यात्मा ,धर्मशील ,तपस्वी , इन्द्रियों के संयमी ,  करुणामय  ,दुःख -शोक को दूर करने वाले ,भूत  -भविष्य -वर्तमान के ज्ञाता ,वेदांत शास्त्रों में निपुण ,सर्वशास्त्रों के मर्मज्ञ एवं मनोनिग्रही थे।  उनकी परम पतिव्रता पत्नी अदिति समस्त शुभ लक्षणों से संपन्न एवं अदीना थी।  अदभुत शीलवती होने के कारण वे महर्षि कश्यप की विशेष कृपा भाजन थी।  उन्हीं अनुपम गुण सम्पना अदिति की कोख से ...
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      देवता बोले गणेश्वर ! आप गज के समान मुख धारण करने वाले पूर्णपरमात्मा और ज्ञान स्वरुप हैं।  आप निराकार रूप से सर्वत्र विराजमान है। आपको बारम्बार नमस्कार है।  हे रम्भ ! आपको किन्हीं प्रमाणों द्वारा मापा नहीं जा सकता।  आप परशु धारण करने वाले हैं , आप का वहन मूसक है। आप विश्वेश्वर  को बारम्बार नमस्कार है।  आप का वैभव अनंत है।  आप परात्पर हैं। भगवान शिव के पुत्र और स्कन्द के बड़े भाई हैं। देव ! आपको नमस्कार है।        पार्वती को आनंदित करने वाले उनके लाडले लाल है।  देवताओं के रक्षक हैं और जिनका श्री विग्रह सब के लिए पूज्य्नीय है। आपको  बारम्बार नमस्कार है।  भगवान शिव के कुल देवता आप अपने स्वरुपभूत स्वानंद धाम में निवास करते हैं।  विष्णु आदि देवताओं के तो आप विशेष रूप से कुल देवता है।  आपको नमस्कार है।  आप योग स्वरूप एवं सब को योग जनित शांति प्रदान करते हैं।  ब्रह्मभाव की प्राप्ति कराने वाले आप ब्रह्मेश्वर को नमस्कार है।  नाथ ! आप सिद्धि और बुद्धि के प्राण पति तथा सिद्धि और बुद्...
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            श्री शक्ति और शिव भोले भक्तों को सुख देने वाले देवेश्वर आप भक्ति पूर्वक हैं ! तथा गणों के अधिपति हैं।  आप गणनायक को नमस्कार हैं।  आप स्वानन्दलोक  के वासी हैं और सिद्धि - बुद्धि के प्राण बल्लभ हैं।  आप की नाभि में भूषण रूप से शेषनाग विराजते हैं।  आप ढुंढिराज देवता को नमस्कार है।  आप के हाथों में  वरद और अभय की मुद्राएं हैं। आप परशु धारण करते हैं। आपके हाथ में अंकुश शोभा पता है। नाभि में नागराज ,आपको नमस्कार है।  आप रोग रहित सर्वस्वरूप और सबके पूज्य्नीय है आपको नमस्कार है।  आप ही सगुण और निर्गुण ब्रह्म हैं,आपको नमस्कार है।  आप प्रथम पूजनीय ,जेष्ठ और जेष्ठराज हैं ,आपको नमस्कार है। सबके माता - पिता हेरम्ब !को बारम्बार नमस्कार है।  विघ्नेस्वर आप अनादि और विघ्नों के भी जनक हैं।  आपको बारम्बार नमस्कार है।  लम्बोदर ! आप अपने भक्तों का विघ्नहरण करने वाले हैं ,आपको बारम्बार नमस्कार है।  योगिश्वरगण आपके भक्ति योग से शांति को प्राप्त हुए हैं।  योगस्वरूप! आपकी हम दोन...