गूगल से साभार
तेजस्वी महोत्कट की ख्याति सुनकर उनके दर्शनार्थ वशिष्ठ ,वामदेव आदि महर्षि कश्यप के आश्रम में पहुंचे। मुनि कश्यप ने उनकी आसन ,पाद्य और अर्ध्य पूर्वक रीति पूर्वक पूजा की। उन्होंने गायें प्रदान की। हाथ जोड़कर श्रद्धा पूर्वक शब्दों में कहा- मेरा परम सौभाग्य है जो आप जैसे तपोधनो ने यहाँ पधारने का अनुग्रह किया। मुझे आज्ञा प्रदान करे की मैं आपका क्या कार्य करूँ ?
मुनिवर ! देवर्षि नारद के द्वारा आपके अद्भुत ,आलौकिक परम तेजस्वी और लोकोद्धारक पुत्र महोत्कट के जन्म का समाचार पाकर हम उसे देखने आये हैं। वशिष्ठ ने कहा - यहाँ आने का यही परियोजन है।
माता अदिति तुरंत अपने प्राण प्रिय पुत्र महोत्कट को ले आई। वशिष्ठ ने बालक के भाल , करकमल एवं पाद पंकज को ध्यान पूर्वक देखा और वे बोले इस बालक में शुभ बत्तीस गुण विध्यमान है। यह महोत्कट जगत के मंगल के लिए अत्यंत भयानक कर्म करेगा। इस परम तेजस्वी एवं बल -पौरुष संपन्न पराक्रमी बालक के रूप में आदि - मध्यान्तहीन साक्षात् विनायक ही अवतरित हुए हैं। इस बालक के जीवन में रह -रह कर अनेक आपदाएं आएँगी। किन्तु ये सभी शांत हो जाएँगी। आप लोग सावधानी पूर्वक इसकी रक्षा करें।
महर्षि वशिष्ठ ने कश्यप नंदन महोत्कट के ध्वज - वज्रांकुश - शोभित अरुण चरण कमलों की पूजा की। फिर उन्होंने महोत्कट की स्तुति करते हुए कहा - हे देव ! असुरों के अनाचार से त्रैलोक्य पीड़ित है। आप कृपा पूर्वक दुष्ट दानव कुल का दलन कर साधु - परित्राण करें और भूतल का भार उतारें।
सभागत मुनियों ने पुनः - पुनः अदिति नंदन महोत्कट के चरणों में प्रणाम किया और फिर अपने -अपने आश्रमों के लिए लौट गए।
प्रख्यात महर्षि वशिष्ठ वाम देव आदि आगमन एवं उनके शुभ वचन से कश्यप के आश्रम के समीप रहने वाले सभी कर्मचारियों ,ऋषियों एवं उनकी पत्नियों के मन में यह विश्वास दृढ़ हो गया की ,निश्चित ही भगवती अदिति के अंक में चराचर नायक आदिदेव विनायक है। विनायक ही महोत्कट के रूप में क्रीड़ा कर रहें हैं ,और उनके द्वारा ही अनीति -अधर्म के मूलभूत असुरों का उच्छेद होगा। उनका कुटिल ,क्रूर शासन समाप्त हो जायेगा। और त्रैलोक्य में सुख - शांति स्थापित होगी। पुनः वेदपाठ ,यज्ञादि कर्म निर्विध्न होने लगेंगे।
इतना ही नहीं यह संवाद कश्यप आश्रम से देश - देशांतर में फैल गया। असुरों के मन में अदिति के घोर तप के समय ही शंका हुयी थी। किन्तु इस समाचार से तो उनके मन में दृढ निश्चय हो गया की यह ऋषि पुत्र दनुज कुल का शत्रु होगा। यह महोत्कट देवताओं के द्वारा हमारे राज्य पर आक्रमणकरने का माध्यम बन सकता है। इस कारण असुरों ने परामर्श कर यह निर्णय लिया कि घातक तरु का अंकुर बढ़कर विशाल वृक्ष हो इसके पूर्व ही उसे नष्ट कर दिया जाये।
असुर राज ने महोत्कट को मरने के लिए विरजा नाम की एक क्रूर राक्षसी को भेजा। वह अत्यंत शक्तिशाली परम धूर्त एवं कुटिला थी। राक्षस वंश के मंगल के लिए उसने कश्यप आश्रम में प्रवेश किया। महोत्कट का तो कुछ नहीं बिगड़ा किन्तु विरजा को ही मृत्यु के मुख में जाना पड़ा। उन्होंने उसे निजधाम प्रदान किया।
शक्तिशालिनी विरजा की मृत्यु से असुर चिंतित हुए और उन्होंने उद्धत और धुंधुर नामक दो क्रूर राक्षसों को महोत्कट की हत्या के लिए भेजा। उन दोनों असुरों ने अत्यंत मनोहर तोते का रूप ग्रहण किया। उनके विषाक्त चञ्चुपुत अत्यंत तीक्षण थे। वे महर्षि कश्यप के आश्रम में वहां पहुंचे जहाँ माता अदिति महोत्कट को स्तनपान करा रही थी।
मुझे खेलने के लिए वे शुक वे दें। सुन्दर शुकों को देखते ही महोत्कट ने दुग्धपान छोड़कर अपनी माँ अदिति से कहा - माँ बोली ये शुक आकाश में उड़ने वाले पक्षी हैं। केवल भूमि पर चल सकने वाली कोई स्त्री इन्हें कैसे पकड़ सकती है।
बालक को इस उत्तर से संतोष नहीं हुआ। उसने माता की गोद से उतर कर बाज की तरह झपटा मरकर दोनों पक्षियों को पाकर लिया। यह देखकर उन दोनों ने पंखों और चोचों से मार -मारकर महोत्कट को अत्यंत घायल कर दिया। तब मुनि कुमार ने उन शुकों को बल पूर्वक पकड़कर धरती पर दे मारा। वे शुक अपने असुर रूप को प्रकट करके प्राण शून्य हो गए। माता ने असुर के विशाल शव पर स्थित हुए अपने बालक को शीघ्रता पूर्वक उठा लिया। कश्यप मुनि ने बालक के अभ्युदय के लिए शांति कर्म किया। बालक का आलौकिक पराकर्म देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने अदिति को उपालम्भ देते हुए कहा - तुमने बालक को अकेला कैसे छोड़ दिया ? जगदीश्वर ने आज इसकी रक्षा की है। यह निशाचरों के रहने का स्थान है। यहाँ मेरा शिशु कैसे जीवित रह सकेगा।
इस प्रकार बातचीज करके मुनि दंपत्ति ने बालक को नहलाया और स्वयं भी स्नान करके आश्रम में विश्राम करने के लिए चले गये .............
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