गूगल से साभार चित्र
दशरथ पुत्र राम का विजयादशमी के दिन महाबली ,वेदज्ञ, ब्राह्मण रावण का वध करने का कारण विशेष है।
भगवान श्री राम का जन्म तो महाबली राक्षसराज रावण ,मेघनाथ ,कुम्भकरण एवं अनेक राक्षसों के नाश के लिए ही हुआ था। वे भगवान विष्णु के अवतार थे। वह ख़ुशी - ख़ुशी अपनी पत्नी सीता एवं भाई लक्ष्मण के साथ वन को चले गए।
वन में रावण की बहन सूपनखा नाम की राक्षसी भगवान राम के रूप पर मोहित हो गयी और भेष बदल कर प्रभु राम के पास गयी। परन्तु एक स्त्री व्रतधारी प्रभु राम ने उसकी नाक काटकर उसे वापस भेज दिया। इस बात से कुपित होकर उसके भाई रावण ने छल से माता सीता का अपहरण कर लिया। सब ओर पता करने पर भी राम को सीता का कुछ पता नहीं चला ,तब प्रभु राम ने अपने भाई लक्ष्मण से व्याकुल होकर दुखी मन से कहा -
भाई लक्ष्मण जानकी का कुछ पता नहीं चला। उसके बिना मेरी मृत्यु निश्चित है । राज्य नहीं है ,वनवासी जीवन जीना पड़ रहा है और अब स्त्री हर ली गयी। पता नहीं देव और क्या दिखाना चाहते हैं। लक्ष्मण ! रावण के घर में वह सुंदरी सीता कैसे इस दुःखदायी समय को जी रही होगी ? वह मुझसे अपार प्रेम करती है। वह रावण के वश में कभी नहीं आ सकती। वह अपने प्राण त्याग देगी ,लेकिन रावण के आधीन नहीं होगी। अगर उसका जीवन समाप्त हो गया तो मैं भी अपने प्राण त्याग दूंगा। तब भाई लक्ष्मण ने प्रभु राम को सांत्वना दी और बोले कि आप तो रघुकुलवासी हैं। जहाँ आपके पूर्वज वंशों ने बड़े - बड़े योद्धाओं को पराजित किया है।
राघव ! महाराज रघु ने केवल एक रथ पर बैठ कर सम्पूर्ण दिशाओं में विजय प्राप्त कर ली थी। आप उस कुल के दीपक हैं। मैं अकेले ही समस्त देवताओं और राक्षसों को मरने की शक्ति रखता हूँ। फिर राक्षस रावण को मारने में क्या संदेह है। जो व्यक्ति शोक के सागर में डूब जाता है उसे कभी सुख नहीं मिलता। आप तो इन सब से परे हैं। फिर क्यों दुखी होते हैं? अतः राघव दुख की घड़ी में मनुष्य को धैर्य पूर्वक कार्य करना चाहिए। आप सब तरह से समर्थ हैं ,फिर साधारण मनुष्य की भांति शोक क्यों कर रहे हैं ?
लक्ष्मण के इन वचनों को सुनकर प्रभु राम का विवेक विकसित हो गया और वह शोक रहित हो गए।
इस प्रकार राम और लक्ष्मण आपस में वार्ता कर रहे थे कि आकाश मार्ग से मुनिवर नारद जी उन दोनों के पास पहुंचे। वे वीणा बजाते हुए मधुर स्वर में गीत गए रहे थे। उनके वहाँ पहुंचने पर भगवान राम ने उनका स्वागत किया तथा मुनि को पवित्र आसन दिया। पाद्य और अर्ध्य की व्यस्था की तथा मुनि की पूजा कर भगवान वही खड़े हो गए और मुनि नारद के कहने पर बैठ गए।
मुनिवर नारद ने राम का कुशल मंगल पूछा और कहा - राघव ! तुम साधारण मनुष्य की भांति इतने दुखी क्यों होते हो ? दुरात्मा रावण ने सीता का हरण कर लिया यह बात मुझे पता है। रावण ने अपनी मृत्यु को न जानकर मोह वश ऐसा किया है। आपके द्वारा रावण का वध ही आपके अवतार लेने का परियोजन है। इसलिए सीता का हरण हुआ है।
मुनिवर नारद ने कहा - पूर्व जन्म में जानकी मुनि पुत्री थी। वह वन में तपस्या कर रही थी। उसे देखकर रावण ने उससे अपनी पत्नी बनने को कहा। लेकिन उस मुनि कन्या ने उसे अपमानित कर दिया। इस पर रावण ने उस तापसी का जुड़ा पाकर लिया। मुनि कन्या ने उसके द्वारा स्पर्श किये हुए अपने शरीर को त्यागने का निर्णय लिया। तापसी ने क्रोधित होकर रावण को श्राप दिया कि मैं तेरा संहार करने के लिए इस धरती पर एक उत्तम स्त्री के रूप में प्रकट होंगी। मेरे इस अवतार में माता के गर्भ से कोई सम्बन्ध नहीं होगा। इतना कहकर उस तापसी ने अपना शरीर त्याग दिया। वही वह मुनि कन्या सीता के रूप में लक्ष्मी अंश से प्रकट हुयी है। रावण ने अपने कुल का नाश करने के लिए ही भ्रम वश सर्प को माला के रूप में गले में डाल लिया है।
रावण के अत्याचारों से व्यथित होकर देवताओं ने श्री हरी से प्रार्थना की थी। इसलिए तुम्हारे रूप में रघुकुल में तुम्हारा जन्म हुआ है। सीता किसी के वश ने नहीं रह सकती। वह निरंतर तुम्हारा ध्यान करती है। स्वयं इंद्र सीता को पीने के लिए एक पात्र में कामधेनु गाय के दूध को भेजते हैं। उस अमृतमय मधुर दूध को सीता ग्रहण करती हैं। कमल नेत्रों वाली सीता को उस स्वर्ग की सुरभि गौ का दुग्ध पान करने के पश्चयत भूख और प्यास का बिलकुल भी कष्ट नहीं होता है। यह मैंने स्वयं देखा है।
राघव अब मैं तुम्हें रावण वध का उपाय बताता हूँ। अश्विन मास में तुम इस नवरात्र व्रत का अनुष्ठान करो। नवरात्र में उपासना, व्रत ,आराधना विधि अनुसार जप एवं हवन करो। इसके द्वारा सभी सिद्धियां प्राप्त होती हैं। इससे पहले ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश एवं कश्यप ऋषियों द्वारा भी इसका अनुष्ठान किया गया है। इसलिए राघव तुम इस व्रत को अवश्य करो।
इस प्रकार नारद जी के सविस्तार बताने पर प्रभु राम और लक्ष्मण ने विधि अनुसार अश्विन मास में नौ दिनों तक उपवास करते हुए नवरात्र व्रत का पालन किया। अष्टमी तिथि को रात के समय भगवती प्रकट हुईं। पूजा के उपरांत भगवती सिंह पर बैठी हुयी पधारी और राम लक्ष्मण को दर्शन देकर कहा -
विशाल भुजा से शोभित श्री राम मैं तुम्हारी पूजा से अति संतुष्ट हूँ। अतः जो तुम्हारे मन में हो वह वर तुम मुझ से माँग लो। तुम भगवान् नारायण के अंश से प्रकट हुए हो। मनु के पावन वंश में तुम्हारा अवतार हुआ है। रावण को मारने के लिए देवताओं की प्रार्थना पर ही तुम्हारा अवतार हुआ है। इस समय तुमने राजा दशरथ के पुत्र के रूप में जन्म देवताओं की प्रार्थना पर लिया है ,क्यों कि रावण उन्हें महान कष्ट दे रहा है। राम ये वानर अत्यंत बलशाली हैं। ये देवताओं के अंश से प्रकट हुए हैं। इन सब में मेरी शक्ति निहित है। तुम्हारा ये छोटा भाई शेष नाग का अवतार है। रावण के पुत्र मेघनाथ का वध इसके द्वारा ही होगा। अब तुम्हारा परम कर्तव्य है कि इस वसंत ऋतु के नवरात्र में पूर्ण श्रद्धा के साथ मेरी उपासना करो और पापी रावण को मारकर सुखपूर्वक राज्य करो। ग्यारह हजार वर्षों तक तुम्हारा राज्य स्थिर रहेगा। इसके बाद तुम अपने परम धाम सिधारोगे।
इस प्रकार कहकर भगवती जगदम्बा अंतर्ध्यान हो गयी। भगवन राम का मन प्रसन्न हो गया। नवरात्र व्रत समाप्त करके भगवान् राम ने विजयादशमी की पूजा का कार्य संपन्न कर देव शत्रु रावण का वध किया।
मित्रों जो भी मनुष्य देवी के इस उत्तम चरित्र को सुनता या सुनाता है उसे भगवती जगदम्बा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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