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Showing posts from October, 2017
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                                                      गूगल  साभार चित्र         मित्रों आज हम वृत्रासुर के कथानक को आगे बढ़ाते हुए कि उसने ब्रह्मा जी से वरदान पाकर आगे क्या किया।     जब कोई कथानक ज्यादा बड़ा हो जाता है तब श्रोताओं की रूचि घटने लगती है। उस रूचि को बरकरार रखने के लिए हम बीच में दूसरा कथानक आप से कहने लगते हैं। आज  हम वृत्रासुर के उसी कथानक को आगे बढ़ाएंगे।       श्री ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त करने के पश्चयात वृत्रासुर अपने पिता के पास पंहुचा और उसने अपने वरदान प्राप्त करने की सच्चाई अपने पिता को कह सुनाई। वर युक्त पुत्र को पाकर त्वस्ता बहुत प्रसन्न हुए और पुत्र से बोले -महाभाग ! तुम्हारा कल्याण हो। अब तुम मेरे परम् शत्रु इंद्र को परास्त करो। वह बड़ा पापी है। उसने मेरे पुत्र त्रिसिरा का वध कर डाला था। अतः तुम उसे परास्त कर स्वर्ग का शासन अपने हाथ में ले लो। बेटा ! ...
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                                         गूगल से साभार चित्र                  इस प्रकार लक्ष्मी जी को वरदान देकर गौरीपति भगवान शंकर पार्वती सहित अंतर ध्यान हो गए। लक्ष्मी जी वही रुककर भगवती जगदम्बा के अत्यंत मनोहर चरण कमलों का ध्यान करने लगी। पतिदेव हय का रूप धारण करके यहाँ कब पधारेंगे इस प्रतीक्षा में प्रेमपूर्वक गदगद वाणी से बार - बार श्री हरि  की स्तुति करने लगी।           लक्ष्मी जी को वर देकर भगवान् शंकर तुरंत कैलाश पहुंचे और वहाँ परम बुद्धिमान चित्ररूप को दूत बनाकर लक्ष्मी जी का कार्य पूर्ण करने के लिए वैकुण्ठ भेजने हेतु तैयार हुए।  भगवान शिव ने कहा - चित्ररूप ! तुम श्री हरि के पा जाकर इस प्रकार प्रेमपूर्वक मेरी बातें उन से कहो, जिससे वे श्री लक्ष्मी जी का  शोक दूर करने के लिए तुरंत प्रयत्नशील हो जाये।           श्री विष्णु जी के उ...
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                                            गूगल से साभार चित्र          श्री विष्णु भगवान् ने माता महालक्ष्मी को घोड़ी का रूप धारण करने का श्राप क्यों दिया ? आज हम इस कथानक के विषय में बताएँगे।        एक बार लीला में श्री विष्णु ने लक्ष्मी जी को घोड़ी बनने का श्राप दे दिया था। भगवान् की हर एक लीला में कुछ उद्देश्य अवश्य छिपा होता है। इसी रहस्य के कारण लक्ष्मी जी दुखी तो बहुत हुयी परन्तु वे भगवान् को प्रणाम कर और उनकी आज्ञा लेकर मृत्यु लोक में चली गयी। सूर्य की पत्नी ने जिस स्थान पर अत्यन कठोर तप किया था ,उसी स्थान पर लक्ष्मी जी घोड़ी का रूप धारण कर रहने लगी। वहाँ यमुना और तमसा नदी के संगम पर सुपर्णाक्ष नामक स्थान था। वहाँ सुन्दर वन सुशोभित थे। वहीं रहकर लक्ष्मी जी ने जो समस्त संसार के मनोरथ पूर्ण करती हैं वहां पर जो मस्तक पर चन्द्रमा धारण करते हैं उन त्रिशूलधारी भगवन शंकर का एकाग्रचित्त से ध्यान करने लगी। उस पावन तीर...
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                                            गूगल से साभार चित्र        मित्रों दीपावली के दिन श्री गणेश जी एवं लक्ष्मी जी की पूजा करते समय सर्वप्रथम श्री गणेश जी के बारह नामों के द्वारा जो कि  पहले कथानको में बताये गए हैं।  श्री गणेश जी की प्रार्थना कर नीचे दिए गए स्त्रोतों द्वारा उनसे हृदय से प्रार्थना करें कि वह उनके पूजन में विराजमान होकर उन्हें आशीर्वादित कर धन - ध्यान से बुद्धि विवेक के साथ आशीर्वादित कर उनके परिवार में पूरे वर्ष विराजमान रहें।                सम्पूर्ण सौभाग्य प्रदान करने वाले सचिदानंद स्वरूप विघ्नराज गणेश को नमस्कार है। जो दुष्ट अरिष्ट ग्रहों को नाश करने वाले परात्पर परमात्मा हैं उन गणपति को नमस्कार है। जो महापराक्रमी ,लम्बोदर ,सर्पमय यज्ञोपवीत से सुशोभित ,अर्धचंद्रधारी और विघ्न समूह का विनाश करने वाले हैं ,उन गणपति देव की मैं वंदना करता हूँ। हेरम्ब को नमस्कार है। भगवान् ...
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                                                 गूगल से साभार चित्र          धनतेरस के दूसरे दिन छोटी दीपावली का उत्सव मनाया  जाता हैं। इस दिन विशेष रूप से श्री महालक्ष्मी जी की पूजा की जाती हैं। इस दिन को नरकचौदस नाम से भी जाना जाता है। आज के दिन घर के द्वार पर चार बत्ती का यम के नाम का दीपक जलाया जाता है। आज हम नरकासुर की कथा का कथानक पढ़ेंगे।         नरक नाम का दानव प्राग्ज्ञोजिषितपुर का राजा था।  वह भूमि देवी का पुत्र था। उसे भौमासुर के नाम से भी पुकारा जाता था। उसने हाथी का रूप धारण कर प्रजापति त्वस्ता की पुत्री कसेरू का जिसकी आयु चौदह वर्ष थी ,अपहरण कर लिया था। वह उसे मोहवश  हर ले गया था।  उसने उसे ना - ना प्रकार के रत्नो ,आभूषणों ,वस्त्रों  आदि के प्रलोभन द्वारा अपनी रानी बनाने का प्रयत्न किया।       उसने गन्धर्व कन्याओं का भी अपहरण किया। परन्तु ...
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                                                                     गूगल से साभार चित्र      मित्रों  सर्वप्रथम आपको ,आपके परिवार तथा आपके सहपाठियों को पाँच पर्वों के त्यौहार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।      श्री गणेश जी ,श्री महालक्ष्मी जी ,श्री महा सरस्वती जी ,श्री महाकाली जी ,श्री कुबेर जी ,श्री धन्वन्तरि जी एवं श्री कृष्ण जी आपके व आपके परिवार में मंगलमय एवं समृद्धिपूर्ण परिवर्तन लाए, यही हमारी आदिशक्ति एवं देवताओं से प्रार्थना है।        सुखमय जीवन का अर्थ केवल धन ही नहीं है। मनुष्य का सर्वप्रथम निरोगी होना अनिवार्य है। अगर हम निरोगी हैं तभी हम उत्तम रूप से धन अर्जित कर सकते हैं। इसलिए दीपावली के पर्व की शुरूआत धनतेरस के दिन अर्थात धन्वन्तरि देव की पूजा से आरम्भ होती है। जो कि आयुर्वेद के जनक थे।      ...
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                                                 गूगल से साभार चित्र                     व्यास जी कहते हैं - राजन ! देवताओं की बात सुनकर इंद्र चिंतित हो गए और उन्होंने गुरु बृहस्पति जी को बुलाकर उनसे मंत्रणा शुरू की।         इंद्र ने कहा-  आप  सर्वज्ञ हैं। आप बुद्धिमान शास्त्र के तत्व को जानने वाले तथा देवताओं के गुरु हैं।  विधियों के ज्ञाता ब्राह्मण हैं।  आप शत्रुक्षय करने वाली कोई शांति करने की कृपा करें। जिससे मुझे दुःख न देखना पड़े।       बृहस्पति जी बोले - देवराज ! मैं क्या करूँ ? इस समय तुम्हारे द्वारा घोर निन्दित कार्य हो गया।  निरपराधी  मुनि को मारकर क्यों इस बुरे फल के भागी बन गए। दूसरों को पीड़ा देने वाला स्वयं सुखी रहे यह असम्भव है। तुमने मोह ओर लोभ में पड़कर ब्रह्म हत्या कर डाली। सम्पूर्ण देवता भी मिलकर...
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                                                गूगल से साभार चित्र           तदनन्तर त्रिशिरा का वध करके इंद्र अपने भवन की ओर चल दिए। वह मुनि महान आत्मा व तप का भंडार था। इंद्र के द्वारा मारे जाने के पश्चात् भी ऐसा प्रकाशमान हो रहा था मनो जीवित हो। यह देखकर इंद्र मन ही मन सोचने लगा कि यह मुनि जीवित न हो जाये। उस समय उसके सामने तक्षा नामक एक व्यक्ति खड़ा था। इंद्र ने उससे कहा - तक्षा ! तुम इस तेजस्वी मुनि के मस्तक को धड़ से अलग कर दो। इंद्र की बात सुनकर तक्षा ने कहा - इस मुनि का कन्धा बड़ा विशाल प्रतीत हो रहा है। मेरी कुल्हाड़ी उसे मार न सकेगी। तुमने यह अत्यंत निंदनीय कार्य किया है।  जो मारा हुआ है उसे पुनः मारने में केवल पाप का भागी ही होना पड़ता है।  मैं इस पाप से डरता हूँ।  वह मुनि तो मर ही गया ,फिर इसका सिर काटने से क्या परियोजन।          इंद्र ने कहा - इस पाप को दूर करने के लिए मैं प्रायश...
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                                         गूगल से साभर चित्र                                               एक  समय राजा जन्मेजय ने ऋषि व्यास जी से पूछा  कि मुनि इंद्र ने वृत्रासुर को मारा यह एक प्राचीन कथा है। फिर उस दैत्य को देवी ने कैसे मारा ? और किस कारण से इस कार्य में देवी प्रकट हुयी। ऋषिवर एक ही वृत्रासुर के दो विनाशक कैसे हो सकते हैं ? कृपया इस प्रसंग को विस्तार से सुनाएँ।      व्यास जी कहते हैं राजन !एक बार  वृत्रासुर और इंद्र का युद्ध हुआ था। वृत्रासुर को शत्रु मानकर इंद्र ने मार डाला।  इससे उन्हें महान दुःख उठाने पड़े।  इंद्र ने उन्हें कपट भेष धारण कर मारा था।  इसमें कोई आश्चर्य नहीं। क्यूंकि महामाया के प्रभाव से मुनियों की भी बुद्धि  भ्र्ष्ट हो जाती है। सत्यमूर्ति भगवान विष्णु अपनी माया ...
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                                                     गूगल से साभार चित्र        मैं भुवनेश्वरी देवी का ध्यान करता हूँ। उनके श्री अंगों की आभा प्रभात काल के सूर्य के सामान हैं और मस्तक पर चन्द्रमा का मुकुट है और उभरे हुए स्तनों और तीन नेत्रों से युक्त हैं। उनके मुख पर मुस्कान की छटा छायी रहती हैं और हाथों में वरद ,अंकुश, पाश एवं अभय मुद्रा शोभा पाते   है।        ऋषि कहते हैं - देवी के द्वारा वहाँ महादैत्यपति शुम्भ के मारे जाने पर इंद्र आदि देवता अग्नि को आगे करके उन कात्यायनी देवी की स्तुति करने लगे।  उस समय अभीष्टि की प्राप्ति होने से उनके मुख कमल दमक उठे थे।  और उनके  प्रकाश से दिशायें भी जगमगा उठी।        देवता बोले शरणगत की पीड़ा दूर करने वाली  देवी ! हम पर प्रसन्न हो ।  सम्पूर्ण जगत की माता प्रसन्न हो! विश्वेश्वरी! विश्व की रक्षा ...