गूगल से साभार चित्र 


    मित्रों  सर्वप्रथम आपको ,आपके परिवार तथा आपके सहपाठियों को पाँच पर्वों के त्यौहार दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ। 

    श्री गणेश जी ,श्री महालक्ष्मी जी ,श्री महा सरस्वती जी ,श्री महाकाली जी ,श्री कुबेर जी ,श्री धन्वन्तरि जी एवं श्री कृष्ण जी आपके व आपके परिवार में मंगलमय एवं समृद्धिपूर्ण परिवर्तन लाए, यही हमारी आदिशक्ति एवं देवताओं से प्रार्थना है।  

     सुखमय जीवन का अर्थ केवल धन ही नहीं है। मनुष्य का सर्वप्रथम निरोगी होना अनिवार्य है। अगर हम निरोगी हैं तभी हम उत्तम रूप से धन अर्जित कर सकते हैं। इसलिए दीपावली के पर्व की शुरूआत धनतेरस के दिन अर्थात धन्वन्तरि देव की पूजा से आरम्भ होती है। जो कि आयुर्वेद के जनक थे। 

       दीपावली पर्व की शुरूआत श्री महालक्ष्मी और धन के देवता कुबेर जी की पूजा के साथ आरम्भ होती है। इस दिन लक्ष्मी जी का आगमन होता है। इसलिए उनके स्वागत के अवसर पर घर के द्वार पर रंगोली अवश्य बनानी चाहिए। इसदिन परिवार या किसी मिलने वाले के उत्तम स्वास्थ्य के लिए तेरह दीपक अवश्य जलाने चाहिए। धनतेरस से दिवाली तक घर में ,बगीचे में ,मंदिर में ,गौशाला में दीपक अवश्य जलाएँ। इस दिन महर्षि धन्वन्तरि जी की पूजा सभी रोगों का नाश कर उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करती  है। क्यूंकि आरोग्य परिवार में धन की हानि नहीं होती और सुख सम्पदा बनी रहती है।  इस दिन परिवार के किसी रोगी व्यक्ति के लिए महामृत्युंजय मन्त्र का जाप करने से बीमार व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ होता है। इस दिन यथा शक्ति सोना ,चाँदी या ताँबे की वस्तुएँ खरीदने से परिवार में धन धन्य की वृद्धि होती है।  आज हम महर्षि धन्वन्तरि के जन्म से सम्बंधित कथानक पढ़ेंगे। 

    एक समय  जन्मेजय ने श्री वैशम्पायन ऋषि से पूछा की धन्वन्तरि देव इस मनुष्य लोक में किस प्रकार उत्पन्न हुए ? तब ऋषि बोले - भारतश्रेष्ठ !पूर्वकाल में अमृत मंथन के समय धन्वंतरि देव  हुए थे। समुद्र से प्रकट होते  समय भगवान् विष्णु के नामों का जप और आरोग्य साधक कार्य का चिन्तन करते हुए दिव्यकांति से प्रकाशित भगवान  खड़े हो गए।  भगवान् विष्णु ने   उनसे कहा -आप जल से  प्रकट होने के कारण अब्ज कहलाओगे। तब अब्ज ने  भगवान् विष्णु से कहा -प्रभो ! मैं आपका पुत्र हूँ। मेरे लिए  यज्ञ भाग की  व्यवस्था कीजिये। 

    श्री  विष्णु बोले  - बेटा ! तुम्हें छोटे - मोटे उपहोम कभी अर्पित नहीं किये जा सकते। तुम देवताओं के पीछे उत्पन्न हुए हो  अतः तुम्हारे लिए वेद विरुद्ध यज्ञभाग्य की कल्पना नहीं की जा सकती और वैदिक यज्ञ भाग  पाने  तुम  अधिकारी नहीं हो। दूसरे जन्म में तुम्हें गर्भावस्था  में  ही अणिमा आदि सिद्धि प्राप्त हो जाएगी। तुम उसी शरीर से देवत्व प्राप्त कर लोगे और ब्राह्मण लोक चरु , मन्त्र ,व्रत एवं जपनीय मन्त्रों द्वारा तुम्हारा यजन करेंगे।  फिर तुम उस जन्म में आयुर्वेद को आठ भागों में विभक्त करके उसे आठ अंगों से युक्त बना दोगे। 

      दूसरा द्वापर आने  पर तुम संसार में प्रकट होओगे। धन्वंतरि को यह वर देकर भगवान् विष्णु अंतर्ध्यान हो गए । दूसरे द्वापर में सुनहोत्र के पुत्र काशीराज धन्व पुत्र की कामना लेकर दीर्घकाल तक तपस्या में लीन रहे। उन्होंने अब्ज देव की आराधना की तब  उनकी आराधना से संतुष्ट होकर भगवान् अब्ज राजा धन्व से बोले -उत्तम  व्रत का पालन करने वाले नरेश ,वर मांगो। मैं तुम्हें दूंगा। 

      राजा बोले - भगवन !यदि आप  मुझसे प्रसन्न हैं तो आप मेरे पुत्र होकर इसी जन्म में आपकी ख्याति हो। तथास्तु कहकर भगवान अब्ज अंतर्ध्यान हो गए। तदनन्तर धन्व के घर में धन्वन्तरि जी का जन्म हुआ। काशीराज धन्वन्तरि समस्त रोगो का नाश करने में समर्थ थे। उन्होंने मुनिवर भरतद्वाज मुनि से आयुर्वेद तथा चिकित्सा कर्म का ज्ञान प्राप्त किया तथा उसे आठ भागों में विभक्त कर दिया। 

 नोट - आप हमारे इस कथानक के  विषय में और अधिक जानकारी पाने के लिए हमें मेल करें - ravimehra1959@gmail.com 

      










Comments

Popular posts from this blog