गूगल साभार चित्र
मित्रों आज हम वृत्रासुर के कथानक को आगे बढ़ाते हुए कि उसने ब्रह्मा जी से वरदान पाकर आगे क्या किया।
मित्रों आज हम वृत्रासुर के कथानक को आगे बढ़ाते हुए कि उसने ब्रह्मा जी से वरदान पाकर आगे क्या किया।
जब कोई कथानक ज्यादा बड़ा हो जाता है तब श्रोताओं की रूचि घटने लगती है। उस रूचि को बरकरार रखने के लिए हम बीच में दूसरा कथानक आप से कहने लगते हैं। आज हम वृत्रासुर के उसी कथानक को आगे बढ़ाएंगे।
श्री ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त करने के पश्चयात वृत्रासुर अपने पिता के पास पंहुचा और उसने अपने वरदान प्राप्त करने की सच्चाई अपने पिता को कह सुनाई। वर युक्त पुत्र को पाकर त्वस्ता बहुत प्रसन्न हुए और पुत्र से बोले -महाभाग ! तुम्हारा कल्याण हो। अब तुम मेरे परम् शत्रु इंद्र को परास्त करो। वह बड़ा पापी है। उसने मेरे पुत्र त्रिसिरा का वध कर डाला था। अतः तुम उसे परास्त कर स्वर्ग का शासन अपने हाथ में ले लो। बेटा ! पुत्र वध से उत्पन्न हुए मेरे अपर दुःख को दूर करने में जुट जाओ। पिता की आज्ञा का पालन करो। अतः मेरा घोर संताप शांत करना अब तुम्हारे हाथों में हैं। क्यों की त्रिसिरा की मौत मेरे चित्त से कभी दूर नहीं हो पाती है।
व्यास जी कहते हैं - राजन ! त्वस्ता की बातें सुनकर वृत्रासुर रथ पर सवार होकर युद्ध के लिए चल दिया। उसने सेवकों से कहा मैं इंद्र को मारकर स्वर्ग का अकण्टक राज्य भोगूँगा। उस समय उसकी विशाल सेना की गर्जना से अमरावती भयभीत हो गयी। वृत्रासुर के आने की सुचना पाकर इंद्र तुरंत अपनी सेना सजाने में जुट गया। इंद्र ने तुरंत सभी लोकपालों को बुलाकर युद्ध करने की आज्ञा दी। शत्रु की सेना को कुचलने के लिए वृत्रासुर भी वहां आ पंहुचा। तदनन्तर देवताओं और दानवों में भयंकर युद्ध आरम्भ हो गया। देवता और दानव दोनों एक - दूसरे के रहस्य को जानते हुए बड़े उत्साह के साथ लड़ रहे थे।
वृत्रासुर ने क्रोध में जलते हुए अकस्मात् इंद्र को उसके वस्त्र और कवच आदि उतार कर अपने मुख में डाल लिया और स्वयं ज्यूँ का त्यूं डटा रहा। उस समय वह बहुत हर्षित हो रहा था। इंद्र के वृत्रासुर के मुख में चले जाने पर देवता अपार आश्चर्य में पड़ गए। हाय ! इंद्र मारे गए। - यूँ बार - बार विलाप करते हुए चिल्लाने लगे। उन्होंने अपने गुरु बृहस्पति जी से कहा - आप हमारे परम् गुरु हैं। अब हमें क्या करना चाहिए ? वृत्रासुर ने इंद्र को निगल लिया। उनके न रहने से हम सब लोगो का पारकर्म समाप्त हो गया। विभो !आप इंद्र का उद्धार करने के लिए कोई अनुष्ठान करने की कृपा करें।
देवराज की यह हालत देखकर समस्त देवता चिंता के कारण अत्यंत घबरा उठे। उन्होंने बृहस्पति जी की सलाह से शत्रु का संहार करने वाली महान बलवती जम्भाई का सृजन किया। वृत्रासुर को जम्भाई आयी और उसका मुख खुल गया। इंद्र अपने अंगों को समेत कर उसके मुख से तुरंत बाहर निकल आये। तभी से जगत में जम्भाई की उत्पत्ति हुयी। देवराज के बाहर निकल आने पर सभी देवता प्रसन्न हो गए।
देवता और दानवों में यह युद्ध दस हजार वर्षों तक चलता रहा। धीरे - धीरे वृत्रासुर की शक्ति बढ़ती गयी। तब देवराज के तेज के फीके पड़ जाने के कारण इंद्र परास्त हो गए। उनकी पराजय को देखकर देवताओं को महान दुःख हुआ। फिर तो इंद्र सहित सभी देवता युद्ध भूमि छोड़कर भाग गए। वृत्रासुर ने तुरंत देव सदन पर अपना अधिकार जमा लिया। स्वर्ग के सभी उपवन अब उसके उपभोग में आने लगे। उसने श्रेष्ठ हाथी ऐरावत को भी अपनी सवारी में ले लिया। अब समस्त देव विमानों की व्यवस्था वृत्रासुर के हाथों में आ गयी। उच्चैश्रवा घोड़े का भी वह स्वामी हो गया। कामधेनु गाय ,पारिजात पुष्प ,अप्सरायें तथा सभी रत्नो पर उसका अधिकार हो गया। अपने अधिकारों को खो चुके सभी देवता पर्वतों की कंदराओं में जाकर अपना जीवन कष्ट के साथ व्यतीत करने लगे। अब उन्हें यज्ञ में भाग मिलना भी बंद हो गया।
वृत्रासुर ने क्रोध में जलते हुए अकस्मात् इंद्र को उसके वस्त्र और कवच आदि उतार कर अपने मुख में डाल लिया और स्वयं ज्यूँ का त्यूं डटा रहा। उस समय वह बहुत हर्षित हो रहा था। इंद्र के वृत्रासुर के मुख में चले जाने पर देवता अपार आश्चर्य में पड़ गए। हाय ! इंद्र मारे गए। - यूँ बार - बार विलाप करते हुए चिल्लाने लगे। उन्होंने अपने गुरु बृहस्पति जी से कहा - आप हमारे परम् गुरु हैं। अब हमें क्या करना चाहिए ? वृत्रासुर ने इंद्र को निगल लिया। उनके न रहने से हम सब लोगो का पारकर्म समाप्त हो गया। विभो !आप इंद्र का उद्धार करने के लिए कोई अनुष्ठान करने की कृपा करें।
देवराज की यह हालत देखकर समस्त देवता चिंता के कारण अत्यंत घबरा उठे। उन्होंने बृहस्पति जी की सलाह से शत्रु का संहार करने वाली महान बलवती जम्भाई का सृजन किया। वृत्रासुर को जम्भाई आयी और उसका मुख खुल गया। इंद्र अपने अंगों को समेत कर उसके मुख से तुरंत बाहर निकल आये। तभी से जगत में जम्भाई की उत्पत्ति हुयी। देवराज के बाहर निकल आने पर सभी देवता प्रसन्न हो गए।
देवता और दानवों में यह युद्ध दस हजार वर्षों तक चलता रहा। धीरे - धीरे वृत्रासुर की शक्ति बढ़ती गयी। तब देवराज के तेज के फीके पड़ जाने के कारण इंद्र परास्त हो गए। उनकी पराजय को देखकर देवताओं को महान दुःख हुआ। फिर तो इंद्र सहित सभी देवता युद्ध भूमि छोड़कर भाग गए। वृत्रासुर ने तुरंत देव सदन पर अपना अधिकार जमा लिया। स्वर्ग के सभी उपवन अब उसके उपभोग में आने लगे। उसने श्रेष्ठ हाथी ऐरावत को भी अपनी सवारी में ले लिया। अब समस्त देव विमानों की व्यवस्था वृत्रासुर के हाथों में आ गयी। उच्चैश्रवा घोड़े का भी वह स्वामी हो गया। कामधेनु गाय ,पारिजात पुष्प ,अप्सरायें तथा सभी रत्नो पर उसका अधिकार हो गया। अपने अधिकारों को खो चुके सभी देवता पर्वतों की कंदराओं में जाकर अपना जीवन कष्ट के साथ व्यतीत करने लगे। अब उन्हें यज्ञ में भाग मिलना भी बंद हो गया।
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