गूगल से साभार चित्र 

      मित्रों दीपावली के दिन श्री गणेश जी एवं लक्ष्मी जी की पूजा करते समय सर्वप्रथम श्री गणेश जी के बारह नामों के द्वारा जो कि  पहले कथानको में बताये गए हैं।  श्री गणेश जी की प्रार्थना कर नीचे दिए गए स्त्रोतों द्वारा उनसे हृदय से प्रार्थना करें कि वह उनके पूजन में विराजमान होकर उन्हें आशीर्वादित कर धन - ध्यान से बुद्धि विवेक के साथ आशीर्वादित कर उनके परिवार में पूरे वर्ष विराजमान रहें।    
     
     सम्पूर्ण सौभाग्य प्रदान करने वाले सचिदानंद स्वरूप विघ्नराज गणेश को नमस्कार है। जो दुष्ट अरिष्ट ग्रहों को नाश करने वाले परात्पर परमात्मा हैं उन गणपति को नमस्कार है। जो महापराक्रमी ,लम्बोदर ,सर्पमय यज्ञोपवीत से सुशोभित ,अर्धचंद्रधारी और विघ्न समूह का विनाश करने वाले हैं ,उन गणपति देव की मैं वंदना करता हूँ। हेरम्ब को नमस्कार है। भगवान् ! आप सब सिद्धियों के दाता हैं। आप हमारे लिए सिद्धि - बुद्धि दायक है। आपको सदा ही मोदक प्रिय हैं। आप मन के द्वारा चिंतित अर्थ को देने वाले हैं। सिंदूर और लाल वस्त्र से पूजित होकर आप सदा वर प्रदान करते हैं। 

      जो मनुष्य भक्ति -भाव से युक्त हो इस गणपति स्त्रोत का पाठ करता है स्वयं लक्ष्मी जी उसके देह - गेह को नहीं छोडती हैं।  

    दीपावली के पर्व पर पूजा के समय लक्ष्मी स्त्रोत का पाठ अवश्य करना चाहिए। 

     जैसे भ्र्मरी अधखिले कुसुमों से अलंकृत तमाल तरु का आश्रय लेती हैं ,उसी प्रकार जो श्री हरि  के रोमांच से सुशोभित श्री अंगों पर निरंतर पड़ती रहती है, तथा जिसमे सम्पूर्ण ऐश्वय का निवास है। वह सम्पूर्ण मंगलों की अधिष्ठत्री देवी भगवती महालक्ष्मी की कटाक्ष लीला मेरे लिए मंगल दायिनी हो। 

     जैसे भ्र्मरी महान कमल दल पर आती जाती रहती है ,उसी प्रकार जो मुरु शत्रु श्री हरि के मुखार बिंद की और बारम्बार प्रेम पूर्वक जाती है और लज्जा के कारण लौट आती है। वह समुद्र कन्या लक्ष्मी की मनोहर मुग्ध दृष्टि माला मुझे धन सम्पति प्रदान करें। 

    जो सम्पूर्ण देवताओं के अधिपति इंद्र के पद का वैभव - विलास देने में समर्थ हैं ,मुरारी श्री हरि को भी अधिकाधिक आनंद प्रदान करने वाली है  तथा जो नील कमल के भीतरी भाग के समान मनोहर जान पड़ती हैं ,वह लक्ष्मी जी के अध खुले नयनों की दृष्टि क्षण भर के लिए मुझ पर भी थोड़ी सी अवश्य पड़े। 

    शेषशायी भगवान् विष्णु की धर्मपत्नी श्री लक्ष्मी जी का वह नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करने वाला हो। जिसकी पुतली तथा बरौनियां  अनंग के वशीभूत हो अध् खुले किन्तु साथ ही निर्निमेष नयनों से देखने वाले आनदकंद श्री मुकुंद को  अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती है। 

     जो भगवान् मधुसूदन के कौस्तुभमणिमण्डित वक्ष स्थल में इंद्र नीलमयी हारावली सी सुशोभित होती है तथा उनके भी मन में  प्रेम का संचार करने वाली है वह कमलकुंजवासिनि कमला की कटाक्षमाला मेरा कल्याण करे। 

      जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है उसी प्रकार जो कैटभ शत्रु श्री  हरि के काली मेघमाला के समान श्यामसुंदर वक्ष स्थल पर प्रकाशित होती है। जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगवंश को आनंदित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी हैं। उन भगवती लक्ष्मी की पुज्य्नीया मूर्ति मुझे कल्याण प्रदान करे। 

     समुद्र कन्या कमला की वह मंद ,अलस ,मंथर और अर्धोन्मीलित दृष्टि जिसके प्रभाव से काम देव ने मंगलमय भगवान् मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था यहाँ मुझ पर पड़े। 

   भगवान् नारायण की प्रियसी लक्ष्मी का नेत्ररूपी मेघ दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्मरूपी घाम को चिरकाल के लिए दूर हटाकर  विसाद में पड़े हुए मुझ दीन  रूपी चातक पोत पर धन रूपी जलधारा की वृष्टि करे। 

  विशिष्ठ बुद्धि वाले मनुष्य जिनके प्रीतिपात्र होकर उनकी दया दृष्टिके प्रभाव से स्वर्गपद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं उन्हीं पद्मासना पद्मा की  वह विकसित कमल गर्भ के समान कांतिमती दृष्टि मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करे। 

    जो  सृष्टि  -लीला के समय ब्रह्म शक्ति के रूप में स्थित होती है। पालन लीला करते समय भगवान् गरुणध्वज की सुंदरी पत्नी लक्ष्मी के रूप में विराजमान होती हैं तथा प्रलय लीला के काल में शाकम्बरी अथवा चंद्र्शेखरबल्लभा पार्वती के रूप में  अवस्थित होती हैं उन त्रिभुवन के एक मात्र गुरु भगवान नारायण की नित्य यौवना  प्रेयसी श्री लक्ष्मी जी को नमस्कार है। 

      माता !शुभ कर्मों का फल देने वाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिंधुरुप रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमल वन में निवास करने वाली शक्ति स्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है। तथा पुरुषोत्तमप्रिया पुष्टि को नमस्कार है। 

      कमल वदना कमला को नमस्कार है। क्षीर्सिन्धुसम्भूता श्री देवी को नमस्कार है। चन्द्रमा और सुधा की सगी बहिन को नमस्कार है। भगवान् नारायण की वल्लभा को नमस्कार है। 

       कमल के समान नेत्रों वाली माननीय माँ ! आपके चरणों में की हुयी वंदना सम्पति प्रदान करने वाली सम्पूर्ण इन्द्रियों को आनंद देने वाली ,साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा उद्यत है। वह सदा मुझे ही  अवलम्बन करे। 

       जिनके कृपाकटाक्ष के लिए की हुयी उपासना उपासक के लिए सम्पूर्ण मनोरथों और संपत्तियों का विस्तार करती है। श्री हरि के  हृदय में रहने वाली आप महालक्ष्मी देवी का मैं मन ,वाणी और शरीर से भजन करता हूँ। 

       भगवती हरिप्रिये ! तुम कमल वन में निवास करने वाली हो। तुम्हारे हाथों में लीला कमल सुशोभित है। तुम अत्यंत उज्ज्वल वस्त्र , गंध और माला आदि से शोभा पा  रही हो। तुम्हारी झांकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवी ! मुझ पर प्रसन्न हो जाओ। 

      दिग्गजों द्वारा सुवर्ण कलश के मुख से गिराए गए आकाश गंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्री अंगों का अभिषेक  सम्पादित होता है। सम्पूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान् विष्णु की गृहिणी और क्षीर सागर की पुत्री उन जगज्जनी लक्ष्मी को मैं प्रातः काल प्रणाम करता हूँ। 

     कमल नयन केशव की कमनीय कामिनी कमले ! मैं अकिंचन मनुष्यों में अग्रगण्य हूँ। अतेव तुम्हारी कृपा का स्वभाविक पात्र हूँ। तुम उमड़ती हुयी करुणा के बाढ़ की तरल तरंगो के समान कटाक्षों द्वारा मेरी ओर देखो। 

       जो मनुष्य इन स्तुतियों द्वारा प्रतिदिन वेदत्रयी स्वरूपा त्रिभुवन जननी भगवती लक्ष्मी जी की स्तुति करते हैं वे इस भूतल पर महान गुणवान और अत्यंत सौभाग्यशाली होते हैं। तथा विद्वान पुरुष भी उनके मनोभाव को जानने के लिए उत्सुक रहते है। 
      

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