
महेश्वर और पार्वती अपने दोनों पुत्रों श्री कार्तिकेय और श्री गणेश की बाललीलाओं का आनंद लिया करते थे और उनके दोनों पुत्र भी प्रीतिपूर्वक अपनी विभिन्न लीलाओं के द्वारा माता -पिता को सदा असीम आनंद प्रदान किया करते थे। वे दोनों बालक स्वामी कार्तिक और गणेश भक्तिपूर्वक सदा चित्त से माता - पिता की सेवा किया करते थे। एक समय शिव और शिवा दोनों एकांत में बैठकर विचार करने लगे कि अब ये दोनों बालक विवाह योग्य हो गए अब इनका विवाह कैसे संपन्न हो। माता - पिता के विचारों को जानकर उन दोनों के मन में भी विवाह करने की इच्छा हुयी। वे दोनों पहले मैं विवाह करूँगा , पहले मैं विवाह करूँगा - यूँ कहते हुए परस्पर विवाद करने लगे। तब जगत के अधीश्वर लौकिक आचार के साथ बहुत विस्मित हुए। कुछ समय पश्चात् उन्होंने अपने दोनों पुत्रों को बुलाया और कहा - शिव - पार्वती बोले - सुपुत्रों ! हम दोनों ने पहले ही यह नियम बनाया है ,जिसे तुम लोग प्रेमपूर्वक सुनो। हमारा प्यार तुम दोनों के लिए सामान है और हमें तुम समान रूप से प्यारे हो। त...