ॐ गं गणपतये नमः 
         मित्रों आप सबको और आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें ।  रिद्धि - सिद्धि के स्वामी भगवान श्री गजानन गौरी गणेश आपकी सभी मनोकामनाएँ पूरी करें। 
         मित्रों सृष्टि की रचना के पश्चात माँ आदि शक्ति ने प्रथम पुरुष श्री गणेश की उत्पत्ति की। उसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण था और वह था बुद्धि , विवेक ,पवित्रता एवं माँ के प्रति पूर्ण समर्पण।  अगर मनुष्य में ये गुण न हों तो वह पशु सामान हैं। इसलिए माँ आदि  शक्ति ने प्रथम पुरुष श्री गजानन की उत्पत्ति की। 
         एक समय श्री विष्णु ने माँ आदि शक्ति पर्वती से उन्हें अपने पुत्र रूप में उत्पन्न करने की अभिलाषा व्यक्त की, जिसे माँ पर्वती ने सहर्ष स्वीकार कर लिया और समय आने पर उसके पूर्ण होने का अश्वासन दिया। 
        एक बार भगवान् सदा शिव भगवती भवानी पर्वती के साथ विहार के लिए पृथ्वी पर गए।  वहां पर एक सुन्दर वन में एक मनोहर नगरी का निर्माण कर महेश्वर उमा सहित निवास करने लगे। एक दिन भगवान शिव अपने गणों के साथ भगवती के लिए सुन्दर पुष्प लेने के लिए गए।  उस समय भगवती गौरी अपने शरीर पर हल्दी का उप्टन लगा कर स्नान के लिए जाने लगी। उस समय सम्पूर्ण ब्रमाण्ड की रक्षा करने वाली माँ जगदम्बा अपने निवास की रक्षा के लिए विचार करने लगी। उसी समय उन्हें भगवान श्री विष्णु की पूर्व प्रार्थना का ध्यान आया।  माँ ने अपने शरीर पर लगे हरिद्रा उप्टन का कुछ अंश लेकर एक पुत्र की रचना की।  उस बालक के बड़े हाथ , लम्बा सा पेट, सुन्दर मनोहर मुख मंडल , तीन नेत्र , रक्त वर्ण और मध्यानकालीन सूर्य के समान चमकता हुआ प्रभा मंडल था।  जगदम्बा का वह पुत्र सभी गणों का स्वामी और साक्षात नारायण रूप ही था।  माँ पार्वती ने अपने पुत्र को निवास के बाहर खड़ा कर यह आज्ञा दी। जब तक वह आदेश न दें तब तक किसी को भी भीतर प्रवेश न करने दिया जाये।  
      भगवान् शिव के लौटने पर उन्हें श्री गणेश ने अंदर प्रवेश नहीं करने दिया। इस कारण भगवान शिव को बहुत क्रोध आया और उन्होंने श्री गणेश का मस्तक  अपने त्रिशूल के प्रहार से खंडित कर  दिया।  लेकिन श्री गणेश  फिर भी वहाँ डटे रहें।
      जब माता पार्वती को  यह घटना ज्ञात हुयी तब माँ पार्वती ने बहुत क्रोध किया हुए भगवान् शंकर को यह   आदेश दिया कि वे उनके पुत्र को तुरन्त जीवित करें।  
       इसके पश्चात भगवान् शिव अपने गणों के साथ उस वन में गए और श्री गणेश के लिए एक मस्तक  की खोज की तब उन्हें एक बलवान हाथी जो की उत्तर दिशा की और मुख करके लेटा हुआ था।  भगवान शिव ने उसका मस्तक काट लिया और उस मस्तक को श्री गणेश के मस्तक के स्थान पर लगा दिया। जिसे देखकर माता पार्वती प्रसन्न हो गयी।  तब श्री शिव ने अपनी भूल को स्वीकार करते हुए पुत्र गजानन को अपनी गोद में लेकर बहुत स्नेह किया और बोले जनार्दन अनजाने में ही मैंने आपका मस्तक खंडित कर दिया था। इसके लिए मैं अपराधी हूँ  तथा उन्हें अपने गणों का स्वामी होने का आशीर्वाद दिया और उन्हें यह भी आशीर्वाद दिया की हर पूजा में सर्वप्रथम उनका पूजन किया जायेगा और हवन में प्रथम हविष्य प्रदान किया जायेगा।  
       मित्रों , श्री गणेश जी में माँ आदि शक्ति की सारी  शक्तियाँ , गुण , प्रेम,  माँ के चरणों के प्रति पूर्ण समर्पण , माँ के आदेश का पालन और अबोधिता जैसे अनेकों गुण विद्यमान है। श्री गणेश के प्रसन्न होने पर सारे देवता स्वतः ही प्रसन्न हो जाते हैं।  इसलिए प्रत्येक मनुष्य को श्री गणेश जी के गुणों को आत्मसात कर उनकी भक्ति पूर्वक आराधना करनी चाहिए। उनके अनेक गुणों की चर्चा अगले कथानक में करेंगे।  


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