मित्रों , इस संसार में दो तरह के प्राणी रहते हैं । एक जो ईश्वर को मानते हैं और दूसरे वो जो प्रकृति को सर्वोच्च मानते हैं। जबकि ईश्वर और प्रकृति दोनों एक ही हैं। हम यहाँ पर इस कथानक के द्वारा उस सर्वशक्तिमान आदिशक्ति या प्रकृति दोनों से ही एकाकारिता पाने का प्रयास करा रहे हैं , और उसके लिए हमारे पास दो स्थितियों का होना अति आवश्यक है। प्रथम - अबोधिता एवं दूसरा- समर्पण, समर्पण का होना अति आवश्यक है।
मित्रों जिस प्रकार हम बचपन में अपनी अंगुली को अपने माता - पिता या संरक्षक के हाथ में सौंप कर निश्चिन्त हो जाते हैं और पूरी तरह उनके प्रति समर्पित हो जाते हैं ,तब हम पूरी तरह उनको अपना मार्गदर्शक स्वीकार कर लेते हैं। इसीप्रकार अगर हम अपने जीवन को उस परम आदिशक्ति को सौंप दे तो हम ,हर चिंता से दूर हो सकते हैं। मित्रों हर कार्य , हर क्षण उस ही आदिशक्ति या प्रकृति द्वारा ही किया जाता है। क्यूंकि हर कार्य का कर्त्ता और कारण आदिशक्ति माँ परमेश्वरी ही हैं। इस कथानक के द्वारा हम आपको यही विश्वास दिलाना चाहते हैं की अगर हम हर कार्य को करते समय उस कार्य के कर्ता होने का भाव न रखें तो हमारे हर कार्य को देखने की जिम्मेदारी माँ आदिशक्ति अपने ऊपर ले लेती हैं और हमारे समस्त कार्य अबोधिता में पूर्ण होते चले जाते हैं। आगे हम उस कथानक को उसी अबोधिता में देखेंगे की किस प्रकार शशीकला ने राजकुमार सुदर्शन को प्राप्त किया।
सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण करने वाली उन कल्याणमयी देवी को सुदर्शन ने अपने ज्ञान का विषय बना लिया था। जिससे उसके सभी कार्य सिद्ध हो गए। ये विद्या और अविद्या रूप से विराजमान भगवती जगदम्बा साक्षात् परब्रह्म ही हैं। उनके दर्शन केवल योगाभ्यास के द्वारा ही किये जा सकते हैं। वे भगवती मुमुक्षियो के अत्यंत प्रिय हैं। भगवती के प्रसाद के बिना परमात्मा के स्वरूप को कोई नहीं जान सकता। उन भगवती का मन ही मन चिंतन करता हुआ सुदर्शन वन में रहता था।
इधर शशीकला के पिता राजा सुबाहु ने अपनी कन्या को विवाह के योग्य समझकर उसके विवाह की तैयारी शुरू कर दी। एक इच्छा स्वयंवर - जिसमें कन्या अपनी इच्छा से अपना वर चुन ले , इस प्रकार स्वयंवर विवाह की तैयारी पूर्ण होने पर शशीकला ने अपनी सखी से कहा - तुम एकांत में जाकर मेरी माता से कहो की मैं अपने मन में ध्रुवसन्धि के राजकुमार को अपना पति चुन चुकी हूँ। सुदर्शन के सिवा दूसरे किसी को मैं अपना पति नहीं बनाउंगी। भगवती जगदम्बा की कृपा से वह राजकुमार मेरा पति बन चुका है।
व्यास जी कहते हैं - शशिकला की वह सखी बहुत ही मधुर बोलने वाली थी। वह उसकी माता के पास गयी और एकांत में बोली - साध्वी , आपकी पुत्री दुखी है। उसने आपके लिए सन्देश दिया है कि भारतद्वाज जी के आश्रम में जो राजा ध्रुवसन्धि का कुमार सुदर्शन है ,वह राजकुमारी द्वारा मन से पति रूप में वर लिया गया है। अतः वह किसी दूसरे राजा को अपना पति नहीं बनाना चाहती है।
शशीकला की सखी के वचन सुनने के साथ रानी ने राजा के आने पर पुत्री की सभी बातें उन से कही। यह सुनकर राजा सुबाहु बड़े आश्चर्य में पड़ गए और हॅसते हुए कहने लगे -अरे सुंदरी ,तुम उस बालक की बात कर रही हो जो राज्य से निकल दिया गया है। वह निरंजन वन में अकेले ही अपनी माँ के साथ रहता है। राजा वीरसेन उसके पक्ष में था , उसे युद्धाजीत ने मर डाला। प्रिये भला वह निर्धन छोकरा मेरी कन्या का पति कैसे बन सकता है। तुम राजकुमारी से कहो की एक से बढ़कर एक सम्पत्तिशाली राजा स्वयंवर में आने वाले हैं।
व्यास जी कहते हैं - पति की आज्ञा अनुसार उसने राजकुमारी को गोद में बिठाकर कहा - बेटी तुम मुझ से इतनी अप्रिय बातें क्यों करती हो। तुम्हारी पिता को तुम्हारे इस कथन से बहुत कष्ट हो रहा है ,क्यूँकि सुदर्शन राजच्युत और आश्रयहीन बालक है। उसके पास धन भी नहीं है। उसे उसके बंधुओं ने राज्य से निकल दिया है। वह अपनी माँ के साथ वन में रहता है। जंगली फल-मूल से ही उसकी क्षुदा शांत होती है। पुत्री वह तुम्हारे योग्य वर नहीं है। इस सुदर्शन का ही एक सुकोमल भाई है वह बहुत सुन्दर है। वह कौशल देश में राज्य करता है। मैंने एक बात और सुनी है कि राजा युद्धाजित सुरर्शन का वध करने के लिए निरंतर प्रयास करता रहता है। उसने अपने दोहित्र शत्रुजित को राज्य पर बिठाया है। युद्ध में सुदर्शन का नाना वीरसेन मारा गया था। युद्धाजित, सुदर्शन को मरने के लिए भारतद्वाज मुनि के आश्रम में गया था। लेकिन मुनि के मना करने पर वह लौट आया था। अतः ऐसा वर तुम्हारे योग्य कैसे हो सकता है?
शशीकला ने अपनी माँ से कहा- मुझे तो वह राजकुमार को ही अपना पति बनाना है। उस उत्तम वर को वरण करने के लिए भगवती जगदम्बा मुझे स्वप्न में आज्ञा दे चुकी हैं। अतः उसके अलावा किसी दूसरे राजकुमार को मैं अपना पति नहीं बनाऊँगी।
व्यास जी कहते हैं - शशीकला ने अनेक प्रमाण रखकर अपनी माँ को समझाया तब रानी ने उसकी कही हुयी सारी बातें राजा को बताई। स्वयंवर का दिन निकट आने पर शशिकला ने उसी क्षण एक ब्राह्मण को कहा की आप भारतद्वाज मुनि के आश्रम में जाएं और ये सब बातें मेरे पिता को मालूम हुए बिना सुदर्शन को बतायें की स्वयंवर में बहुत से बलशाली राजा आने वाले हैं लेकिन आपको ही मैं अपना पति चुन चुकी हूँ। भगवती ने मुझे स्वप्न में बता दिया है कि आप ही मेरे पति बनेंगे। भगवती जगदम्बा की कृपा से हम लोगो का कल्याण होगा। आप आज ही यहाँ पधारें। ये सारा जगत जिनके आधीन है। वो भगवती जो आज्ञा दे चुकी हैं ये बात कभी असत्य नहीं हो सकती।
द्विजवर आप एकांत में राजकुमार को मेरी ये बातें भली भाँति समझा दें ,और जिस प्रकार भी हो मेरा वह काम बना दें।
मित्रों, इससे आगे की कहानी अगले कथानक में बताएँगे---------
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