श्री गणेश जी सर्वप्रथम स्थापित किये हुए देवता हैं।  ये बीज हैं ,और बीज से सारा विश्व निकलकर उसी में वापिस समा  जाता है।  विश्व में जो कुछ है , श्री गणेश उसी का बीज हैं।  इसलिए श्री गणेश को प्रमुख देवता माना  जाता है।  सभी लोग प्रथम श्री गणेश जी का पूजन करते हैं। उसका कारण है की श्री गणेश तत्व परमेश्वरी ने सब से पहले इस सृष्टि में स्थापित किया।  संसार में सर्वप्रथम श्री गणेश की स्थापना की गयी।  श्री गणेश पवित्रता के  प्रतीक हैं।  सब से पहले पवित्रता फैलाई गयी। जिससे यहाँ आने वाले मनुष्य सुरक्षित रह सकें। इसलिए गौरी माँ ने इस सृष्टि को पवित्रता से नहला दिया।  पवित्रता का मतलब सिर्फ नहाना तथा सफाई करना नहीं है ,वरन अपने आपको अंदर से पवित्र करना है।  यानि हृदय को स्वच्छ रखें।  अर्थात क्रोध को हृदय से दूर रखें। क्यों की क्रोध आने पर पवित्रता नष्ट हो जाती है। पवित्रता का दूसरा नाम प्रेम है। जो सदा बहता रहता है। प्रेम का सबसे बड़ा शत्रु क्रोध है।  क्रोध के कारण ही संसार में अनेकों युद्ध हुए है। 
       श्री गणेश जी की कृपा पूरे  वर्ष बानी रहे यही हमारी हार्दिक इच्छा है। 
यूँ तो श्री गजानन गुणों की खान हैं। परन्तु कुछ गुण ऐसे भी हैं ,जिन्हें हम भी आत्मसात कर सकते हैं।  
      श्री सुमुखाय का जन्म माँ भगवती पार्वती जी ने अपने शरीर के उबटन  से किया। ये भगवती की माया थी। वह उबटन  तो था ही साथ ही उसमे माँ की समस्त शक्तियां एवं गुण हैं ।  इसकारण श्री एकदंताय  को सभी देवताओं से उच्च पद प्रदान किया गया।  श्री कपिलाय माँ के सबसे प्यारे पुत्र रूप में संसार में प्रसिद्ध हुए क्यों कि वे सबसे विवेकशील हैं । माँ पार्वती ने उनमे अपने प्यार को कूट - कूट के भरा है । इसलिए श्री गजकर्णकाय बड़े ही अबोध बालक हैं और माँ के चरणों के प्रति पूर्ण समर्पित हैं।  उन्हें माँ का इतना प्यार मिलता है की वे माँ के हाथ के बने मोदक खाकर संसार में श्री लम्बोदराय नाम से विख्यात हैं।  आप इतने बुद्धिमान हैं की एक छोटे से मूसक पर विराजमान होकर माता - पिता को पृथ्वी रूप में उपास्थित मानकर और उनकी परिक्रमा लगाकर इतनी विकट  परिस्थियों में भी अपने भाई से प्रतियोगिता में  प्रथम  स्थान प्राप्त कर विजयी होकर श्री विकटाय नाम  से प्रसिद्ध हुए।  
      सारे कष्टों को दूर करने वाले श्री विघ्ननाशय अपने भक्तों के कार्यों में आने वाले विघ्नो को दूर रखते हैं ,उन्हें सुख पहुंचते हैं। श्री महादेव जी के द्वारा प्राप्त वरदान के फलस्वरूप श्री गणाध्यक्षाय  सारे गणों के स्वामी , श्री धूम्रकेतवे सारे संसार में प्रथम पूजित होने का गौरव प्राप्त कर इस ब्रह्माण्ड के पावित्र्य  की रक्षा करते हैं। जिनका मस्तक श्री आदिशक्ति के चरणों में हर समय झुका रहता है तथा श्री माँ के कार्य को करने के लिए तत्पर रहने वाले श्री भालचन्द्राय  अपने तीन नेत्रों के साथ भक्तों के दुखों को दूर करते रहते हैं।  वे श्री शंकर जी के पुत्र होने के साथ ही उनके गणों के स्वामी होने के कारण  श्री  गणाधिपाय नाम से भी पुकारे जाते हैं।  संसार एवं देवताओं के द्वारा प्रथम पूजित  श्री गणेश जी को हम सब बारम्बार प्रणाम करते हैं और श्री मंगलमूर्ति से उनके आशीर्वादों की कामना करते हैं।  
   नोट - मित्रों उपरोक्त कथानक् में श्री गणेश जी के बारह( १२ ) नाम बताये गए हैं। जो जन नित्य इन बारह नामों का स्मरण करते हैं उन्हें श्री गणेश जी की कृपा एवं सभी प्रकार के मंगलों की प्राप्ति होती है और वह उन्हें सारे कष्टों से दूर रखते हैं।  

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