सुबाहु  ने भगवती जगदम्बा की स्तुति आरम्भ की -
            जगत को धारण करने वाली देवी को नमस्कार है।  भगवती शिवा को निरंतर नमस्कार है। भगवती दुर्गा सभी मनोकामनाएँ पूर्ण कर देती हैं। उन्हें बारम्बार प्रणाम है। कल्याणमयी माता ! शिवा , शांति  और विद्या ये सभी तुम्हारे नाम हैं।  जीव को मुक्ति देना तुम्हारा स्वभाव है। तुम जगत में व्याप्त हो और सारे संसार का सृजन करना तुम्हारे हाथ का खेल है। तुम्हें बारम्बार नमस्कार है। भगवती मैं अपनी बुद्धि  से विचार करने पर भी तुम्हारी गति को नहीं जान सकता।  निश्चय ही तुम निर्गुण हो और मैं सगुण जीव हूँ।  तुम पारशक्ति हो। भक्तों का संकट टालना तुम्हें बहुत प्रिय है। आज तुम्हारा स्वभाव प्रकट हो गया है। मैं क्या स्तुति करूँ।  तुम भगवती सरस्वती हो। तुम बुद्धि रूप में सब के भीतर विराजमान  हो। सम्पूर्ण प्रणियों में विद्यमान गति , मति , विद्या  और बुद्धि सब तुम्हारे ही रूप हैं।  तुम्हारी क्या स्तुति करू।  जब की मन पर तुम्हारा ही शासन विद्यमान है।  तुम सर्व व्यापक हो। अतः तुम्हारी क्या स्तुति की जाये।  माता ! ब्रह्मा,  विष्णु  और महेश ये प्रधान देवता  माने जाते हैं। ये तुंहारी निरंतर स्तुति करते रहे।  फिर भी तुम्हारा पार नहीं पा सके।  फिर मंदबुद्धि अवगुणों से ओत - प्रोत मैं एक तुच्छ प्राणी तुम्हारे चरित्र का वर्णन कैसे कर सकता हूँ।  संत पुरुषों की संगति से चित्त के विकार दूर हो जाते हैं।  मेरे जमाता तुम्हारे भक्त हैं और उन के संग के प्रभाव से आज मुझे भी तुम्हारे दिव्य दर्शन प्राप्त हो सके।  ब्रह्मा, विष्णु , महेश , इंद्र सहित सभी देवता और मुनि रहस्यों के पूर्ण जानकार  भी माता तुम्हारे जिस दुर्लभ दर्शन के लिए लालायित रहते हैं वही दर्शन सम, दम और समाधि से शून्य मुझ साधारण व्यक्ति को सुलभ हो गए।  भवानी ! कहाँ तो मैं प्रचंड मुर्ख ,कहाँ तुम। संसार से मुक्त कर  देने वाली अनोखी  तुम्हारी झांकी। देवी तुम से कोई बात छुपी नहीं है। देवगण सदा तुम्हारी आराधना करते हैं।  भक्तों पर दया करना तुम्हारा स्वभाव है।  ऐसी कठिन परिस्थियों में तुमने सुदर्शन की रक्षा कर ली।  तुमने सुदर्शन के उन पराक्रमी शत्रुओं के प्राण तुरंत हर लिए।  भक्तों पर दया करने वाला तुम्हारा यह चरित्र परम पावन है।  इस दयालुता वश तुमने शत्रु को मारकर सुदर्शन को बचा लिया।  भगवती तुमने सेवा प्रायण भक्त के यश को उज्जवल बनाने के लिए ही यह चरित्र रचा है। अन्यथा मेरी पुत्री से विवाह करके ये अयोग्य सुदर्शन युद्ध में कैसे सफलता प्राप्त कर सकता था।  माता ! तुम अपने भक्त को जन्म - मरण आदि भय से मुक्त कर देने में समर्थ हो।  फिर उसके लौकिक मनोरथ पूर्ण कर देने में कौन सी बड़ी बात है।  माता ! न मैं तुम्हारा बीज मन्त्र जनता हूँ , और न ही भजन।  आज तुम्हारा प्रभाव सामने प्रकट होने से मैं इस से पूर्ण परिचित  हो गया।  
                           माता तुम्हें नमस्कार है।  नमस्कार है।  नमस्कार है। 
नोट :- मित्रों , आदिशक्ति माँ जगदम्बा की इस स्तुति को जो प्राणी नित्य स्मरण करता है ,उसके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।  

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