मित्रों , आप श्री आदिशक्ति माँ जगदम्बा के क्लीम  मन्त्र की महिमा के कथानक को पढ़ रहे हैं।  उसी को आगे बढ़ाते हुए -
         श्री व्यास जी कहते हैं - राजन , अपने पुत्र के  स्वयंवर में जाने की तैयारी देखकर राजकुमार की  माता  बहुत डर  गयी।  उसे तरह - तरह के भय सताने लगे।  उसने रोते  हुए अपने पुत्र से कहा की ये समाज राजाओं का है और तुम्हारे पास तो कोई सहायक भी नहीं है।  उस स्वयंवर में राजा युद्धाजित भी आएगा और वहां तुम्हारी सहायता करने वाला भी कोई नहीं होगा।  अतः बेटा तुम वहां मत जाओ।  इस पर सुदर्शन ने  अपनी माँ से कहा - माँ , होनी तो होकर रहती है।  इस विषय में सोचना बेकार  ही है। भगवती  जगदम्बा की आज्ञा से  ही  मैं वहाँ जा रहा  हूँ।  मेरे  मन में जरा  भय नहीं  है। 
          व्यास  जी कहते हैं - इस प्रकार सुदर्शन रथ पर बैठकर  जाने के लिए तैयार हो गया।  माता मनोरमा ने उसे आशीर्वाद दिया ,भगवती जगदम्बा अग्र भाग से तेरी रक्षा करें।  पार्वती पृष्ट भाग  तेरी रक्षा करें।  भगवती शिवा सर्वत्र रक्षक रहें।  संग्राम में शत्रुओं के भिड़ जाने पर भगवती भैरवी तेरी रक्षा करें।  महामाया भगवती भुवनेश्वरी जो अखिल जगत की भुवनेश्वरी हैं उनका विग्रह सत्चितानंदमय हैं।  सभी समय सम्पूर्ण देवताओं  के समाज में तेरी रक्षा करें।  उन्होंने राजकुमार से  कहा कि मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी। यह कहकर वह अपनी दासी को साथ लेकर हर्ष पूर्वक वे तीनों वहां से चल पड़े।  वे तीनों समय पर कशी पहुंच गए। वहां पहुंचने पर राजा सुबाहु ने उनका स्वागत किया और उनकी सेवा का समुचित प्रबंध कर दिया।  वहां देश - देशांतर के राजा आये हुए थे। जिनसे सुदर्शन की भेंट हुयी। राजा युद्धाजित भी वहां आया था। करूप , भद्र,सिंधु और महिष्मति आदि देशों के राजा भी वहां पधारे थे। 
         उस समय बहुत से राजकुमार आपस में बातें कर  थे कि राजकुमार सुदर्शन शांतिपूर्वक वहां आया है। उसके साथ कोई सहायक भी नहीं है। भला ऐसे निर्धन सुदर्शन को राजकुमारी कैसे पसंद करेगी? इतने में प्रसिद्ध नरेश युद्धाजित राजाओं से कहने लगा - राजकुमारीके   लिए इस सुदर्शन को मैं मृत्यु के मुख में झौक दूंगा। इस पर नीति शास्त्र के विद्वान केरल नरेश ने युद्धाजित से कहा कन्या को अपनी इच्छा से पति का वरण करने के लिए यह स्वयंवर रचा गया है। यहाँ युद्ध करना सर्वथा अनुचित है। राजेंद्र आपने अन्याय पूर्वक इस राजकुमार को राज्य से निकर दिया। महाभाग रघुवंश में उत्पन्न यह राजकुमार सुदर्शन महाराज कौशल नरेश का सुपुत्र है। भला इस निरअपराधी कुमार को आप कैसे मरेंगे ? ऐसा करेंगे तो यह अन्याय होगा और फिर इसका फल आपको भोगना पड़ेगा। 
           देखिये , सब पर शासन करने वाला जगत पिता परमेश्वर विराजमान हैं। धर्म की ही विजय होती है और सत्य का ही मस्तक ऊँचा रहता है।  राजेंद्र आप अन्याय न करें।  आप अपनी पाप बुद्धि त्याग दें। सुन्दर रूप वाला आप का दोहित्र भी तो यहाँ पर आया है।  इस समय राजलक्ष्मी उसकी शोभा बढ़ा रही है।  भला उसे ही वह राजकुमारी क्यों न स्वीकार कर लेगी ? इतना ही नहीं इस स्वयंवर में अत्यंत पराक्रमी राकुमार आये हैं।  कन्या स्वेच्छा से किसी को  भी स्वीकार कर सकती है।  विवेकी पुरुषों का इस विषय में विवाद करना उचित नहीं है। 
            व्यास जी कहते हैं - इस प्रकार सभा में विवाद हो रहा था।  उस समय राजा सुबाहु को सभा में बुलाकर उनसे पूछा गया की राजन आप क्या चाहते हैं ? आपने अपनी पुत्रीको किसे देने की बात मन में सोची है। 
             सुबाहु बोले - मान्यराजाओं मेरी ये कन्या मन ही मन सुदर्शन को वर चुकी है। मेरे बार - बार समझने पर भी वह मानती नहीं है।  सुदर्शन भी यहाँ  आया है वह किसी सहायक के बिना यहाँ आया है।  फिर भी उसे किसी तरह की चिंता नहीं है।  
             तब राजाओं ने सुदर्शन से कहा - तुम बहुत भाग्यशाली हो ,तुमने उत्तम व्रत का पालन किया है।  पर यहाँ तुम्हें किसने बुलाया है ? जो तुम इस राजाओं के समाज में चले आये हो।  न तुम्हारे पास सेना है , न मंत्री ,न खजाना और न ही तुम अधिक बलवान हो। फिर तुम यहाँ किस लिए आये हो ?राजकुमारी को पाने के लिए तुम्हारा भाई सूरवीर भी यहाँ आया हुआ है और उसकी सहायता के लिए महाभाऊ युद्धाजित  भी यहाँ उपस्थित है। सेना रहित तुम्हारे यहाँ आने का क्या रहस्य है बताओ ?
            सुदर्शन ने कहा - सभी साधनों रहित मैं स्वयंवर का समाचार सुनकर यहाँ आया हूँ।  भगवती जगदम्बा ने मुझे ऐसी आज्ञा दी है। उन  जगदीश्वरी ने जो रच रखा है वह तो होकर ही रहेगा।  राजाओं इस सारे संसार में मेरा कोई शत्रु नहीं है। मेरी दृष्टि में सर्वत्र भगवती जगदम्बा की झॉकी दिखाई देती है।  आदरणीय राजाओं जो होना है वे होकर रहेगा।  मैं सर्वदा माँ के आधीन हूँ। सम्पूर्ण देव , दानव और मानव को भगवती ही शक्ति प्रदान करती हैं।  वह जिसे चाहती हैं उसे राजा और जिसे चाहती हैं रंक बना  देती हैं।  भगवती जगदम्बा पराआद्या शक्ति हैं।  मुझ मैं सामर्थ्य है या नहीं इसकी मुझे कोई परवाह नहीं है। मैं भगवती की आज्ञा का पालन कर रहा हूँ और इस स्वयंवर में  आ गया हूँ।  हार या जीत का मुझे कोई संकोच नहीं   .........  

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