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Showing posts from 2017
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                                                             गूगल से साभार चित्रण        अश्विनी कुमारों ने सुकन्या की बात सुनकर उससे कहा - हे कल्याणी ! तुम्हारे पिता ने तुम्हें उन तपस्वी को कैसे सौंप दिया। तुम तो इतनी सुन्दर हो, की तुम्हें देवताओं के यहाँ होना चाहिए। इतनी सुन्दर स्त्रियाँ तो वहां भी  नहीं हैं। तुम्हें तो दिव्य वस्त्र और सुन्दर आभूषण धारण करने चाहिए।  इन वल्कल वस्त्रों में तुम  सोभा नहीं पा रही हो।        हे प्रिये ! विधाता ने यह कौन सा कृत्य किया है जो की तुम इस नेत्र हीन मुनि को पति रूप में प्राप्त करके इस वन में महान कष्ट भोग रही हो ? तुमने इन्हें व्यर्थ ही वरण किया। नवीन अवस्था प्राप्त करके  तुम इनके साथ सोभा नहीं पा रही हो।  भली - भांति लक्ष्य साध करके कामदेव के द्वारा वेग पूर्वक छोड़े  गए बाण किस पर गिरेंगे। तुम्हारे पति तो इस प्रका...
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                                                       गूगल से साभार चित्र                                          राजा शर्याति के महल वापस जाने के पश्चयात सुकन्या अपने पति च्यवन मुनि की सेवा   में संलग्न हो गयी। धर्मपरायण वह उस आश्रम में अग्नियों की सेवा में निरंतर रहने लगी। सर्वदा पति  सेवा में तत्पर रहने वाली वह बाला  विभित प्रकार के   स्वादिष्ट फल तथा कंदमूल लेकर मुनि को अर्पण करती थी।         वह शीतकाल में उष्ण जल से उन्हें शीघ्रता पूर्वक स्नान करने के पश्चयात मृगचर्म पहनकर पवित्र आसान पर विराजमान कर देती थी। पुनः उनके आगे तिल ,जौ ,कुशा और कमंडल रखकर उनसे कहती थी मुनि श्रेष्ट अब आप अपना नित्य कर्म करें। उसके पश्चयात सुकन्या पति का हाथ पकड़कर उठती और पुनः किसी आसान अथवा...
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             राजा शर्याति एवं उनके मंत्रीगण इस शंकट पर कोई निर्णय नहीं ले सके तब अपने पिता तथा मंत्रियों को चिंता से व्याकुल देखकर सुकन्या उनका अभिप्राय समझ गयी और मुस्कराकर बोली -हे पिता जी ! आज आप चिंता से व्याकुल इन्द्रियों वाले किसलिये है ? निश्चित ही आप मेरे लिए ही अत्यंत दुःखी तथा म्लानमुख  है। अतएव हे पिताजी ! मैं अभी भयाक्रांत मुनि च्यवन के पास जाकर और उन्हें आश्वस्त करके अपने को अर्पितकर प्रसन्न करुँगी।        इस प्रकार सुकन्या ने जो बात कही उसे सुनकर प्रसन्न मन वाले राजा शर्याति ने सचिवों के समक्ष उससे कहा - हे पुत्री ! तुम अबला हो।  अतएव वृद्धता से त्रस्त उस अंधे तथा विशेष रूप से क्रोधी मुनि की सेवा उस वन में कैसे करोगी ? हे पुत्री ! कहाँ तो तुम ऐसी रूपवती और कहाँ वन में रहने वाला वह वृद्ध मुनि ऐसी स्थिति में ,मैं अपनी पुत्री को उस अयोग्य को भला कैसे अर्पित करू ?       हे पुत्री मेरा राज्य और यहाँ तक की मेरा शरीर भी रहे अथवा चला जाये ,किन्तु मैं उस नेत्रहीन मुनि को  तुम्ह...
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                                                 गूगल से साभार चित्र          राजा शर्याति के सैनिकों के मलमूत्र के अवरोध की बात उन्हें ज्ञात हुयी तब राजा ने इस कष्ट को दूर करने पर विचार किया। कुछ समय सोचने के पश्चयात घर पर आकर अपने परिजनों तथा सैनिकों से अत्यंत व्याकुल हो  पूछने लगे - किसके द्वारा यह नीच कार्य किया गया है ? इस सरोवर के पश्चिमी तट पर वन में महान  तपस्वी च्यवन मुनि कठिन तपस्या कर रहे हैं। अग्नि के समान तेज वाले उन तपस्वी के प्रति किसी ने कोई अपकार अवश्य ही किया है। इसलिए हम सबको   ऐसा कष्ट हुआ है। महा तपस्वी ,वृद्ध एवं श्रेष्ट महात्मा च्यवन का अवश्य ही किसी ने अनिष्ट कर दिया है। यह अनिष्ट जान बूझकर किया गया या अनजाने में इसका फल तो भोगना ही पड़ेगा।         इस घटना से चिंतित राजा शर्याति ने सब लोगों से पूछने के पश्चयात अपने बंधुओं से भी पूछा। समस्त प्रजा जन और अपने ...
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गूगल से साभार चित्र          मित्रों आज से हम जो कथानक आरम्भ कर रहे हैं। उसमे एक पत्नी का पति व्रत ,एक राजा की मर्यादा एवं एक ऋषि की तपस्या का फल सम्मिलित है। कथानक बड़ा अवश्य है परन्तु अत्यंत रुचिकर भी है।.           वैवस्वत मनु के पुत्र शर्याति नाम वाले ऐश्वर्यशाली राजा थे। उनकी चार हजार भार्यायें  थी। वे सभी अत्यंत रूपवती तथा समस्त शुभ लक्षणों से युक्त थी।राजा की  सभी पत्नियाँ  प्रेम पूर्वक रहती थी। उन सभी के बीच में सुकन्या नाम की एक ही सुन्दर पुत्री थी। सुन्दर मुस्कान से सरोवर रहने वाली वह कन्या पिता एवं समस्त माताओं की अत्यंत दुलारी थी।              उस नगर से थोड़ी ही दूर पर मानसरोवर के समान एक सुन्दर तालाब था। जिसमे उतरने के लिए सीड़ियों का मार्ग बना हुआ था। स्वच्छ जल से परिपूर्ण उस सरोवर में हंस ,बतख ,चक्रवाक ,जलकाक और सारस पक्षियों का समूह था। जो की उसकी शोभा बढ़ा रहा था। पाँच प्रकार के कमलों से सुशोभित था। जिनके ऊपर भवरे मड़राते रहते थे।      ...
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                                                         गूगल से साभार चित्र         ब्रह्मा और विष्णु बोले - सर्व सृष्टि कारिणी , परमेश्वरी ,सत्यविज्ञानरूपा ,नित्या ,आद्याशक्ति ! आपको हम प्रणाम करते है। आप वाणी से परे हैं ,निर्गुण और अति सूक्ष्म है। ज्ञान से परे और शुद्ध विज्ञान से प्राप्य हैं। आप पूर्णा ,शुद्धा ,विश्वरूपा ,वंदनीया तथा विश्ववन्धा है। आप सबके अन्तः कारण  में वास करती हैं एवं सारे संसार का पालन करती हैं। दिव्य स्थान निवासिनी आप भगवती महाकाली को हमारा प्रणाम है। महामाया स्वरूपा आप महामयी तथा माया से अतीत हैं। आप भीषण श्याम वर्ण वाली भयंकर नेत्रों वाली परमेश्वरी  हैं। आप सिद्धियों से संपन्न विद्या रूपा  समस्त प्राणियों के हृदय में निवास करने वाली तथा सृष्टि का संहार करने वाली हैं। आप महाकाली को हमारा नमस्कार है।  दोनों संध्याएँ आपकी दोनों भृगुटियाँ हैं। आप विश्व रूपा हैं। वायु आपका श्वा...
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                                                     गूगल से साभार चित्र      भगवान शिव की बात सुनकर सभी ने अपने वाहनों से धरातल पर उतर कर तथा ध्वज की और देखकर भक्ति पूर्ण प्रणाम किया। उन्होंने उस नगरी में प्रवेश को वर्जित करने वाले विघ्नो को भी चारों और देखा। तब भगवान शिव को आगे करके ब्रह्मा , विष्णु और इंद्र ने भैरवी गणों से रक्षित जगदम्बा की उस दिव्य नगरी में प्रवेश किया। उस दिव्य नगरी को देखकर वैकुण्ठपति  विष्णु ने भी अपने मन में विस्मित होते हुए अपने दिव्य लोक की निंदा की।         अंतपुर के द्वार पर उन्होंने महाभाऊ ,स्थूलकाय चतुर्भुज गणनायक गजानन को देखा। भगवान् रूद्र ने उन गणनायक से परम प्रीति पूर्वक कहा कि वत्स ! तुम शीघ्र जाकर महाकाली को मेरा सन्देश दो।        माहेश्वरी ! ब्रह्मा ,विष्णु और इंद्र शिव के साथ भक्ति पूर्वक आपके दर्शन की इच्छा से नगर के द्वार आये हैं। उनक...
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                                        गूगल से साभार चित्र           एक समय इंद्र ने श्रेष्ठ मुनिवर गौतम जी से ब्रह्म हत्या का प्रायश्चित पूछा था। उन्होंने देवराज इंद्र को बताया की सुरश्रेष्ट भगवती महाकाली के लोक में जाकर उनके दर्शन करो। किन्तु उनका लोक कहाँ है यह मैं नहीं जनता। उनकी यहाँ बात सुनकर इंद्र ब्रह्मा जी के पाए आये और  पूछा। तब उन्होंने कहा की इसका पता तो श्री विष्णु बता सकते हैं। किन्तु भगवन विष्णु भी महाकाली के धाम को नहीं जानते थे। अतः वे सभी श्री महादेव जी के पास पहुंचे। और अपने आने का उद्देश्य प्रकट किया।             श्री शिव जी बोले - मधुसूदन ! एक लाख दिव्य वर्षों तक तपस्या कर के मैंने उस स्थान का ज्ञान प्राप्त किया  है। आप सभी मेरे साथ आएं। मैं वहां  ले चलूँगा। शीघ्र ही उनके लोक में पहुंचकर उन भगवती के दर्शन कराऊंगा। हम आज ही महाकाली के रत्नमंडित लोक को जायेंगे।   ...
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                                                     गूगल से साभार चित्र                ब्रह्मा आदि देवताओं ने कहा माता ! शिवसुन्दरी ! आप तीनो लोको की माता हैं और शिवजी पिता है तथा ये सभी देवगण आप के बालक हैं। अपने को आप का शिशु मानने के कारण देवताओं को आप से कोई भय नहीं है। देवी ! आप की जय हो। गौरी ! आप तीनो लोको में लज्जा रूप से व्याप्त हैं। अतः पृथ्वी की रक्षा करें। और हम लोगो पर प्रसन्न हों।       विश्व जननी ! आप सर्वात्मा हैं। और आप तीनो गुणों से रहित ब्रह्म है ,अहो , अपने गुणों के वसीभूत होकर आप ही स्त्री तथा पुरुष का स्वरूप धारण  करके संसार में इस प्रकार की क्रीड़ा करती है और लोग आप जगत जननी को कामदेव के विनाशक परमेश्वर शिव की रमणी कहते है।         तीनो लोको को सम्मोहित करने वाली शिवे ! आप अपनी इच्छा के अनुसार अपने अंश से कभी पुरुष ...
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                                             गूगल से साभार चित्र           एक समय धन के लोभी हैहय  वंशी क्षत्रिय भार्गव  वंश की स्त्रियों को अपार दुःख पहुंचने लगे। तब वे भयभीत होकर और अत्यंत घबराकर जीवन से निराश हो हिमालय पर्वत पर चली गयी। वही नदी के तट पर उन्होंने मिट्टी की गौरी देवी की प्रतिमा बनाकर स्थापित की और निराहार रहकर उनकी उपासना करने लगी। उन्हें अपनी मृत्यु निश्चित जान पड़ती थी। उस समय श्रेष्ट स्त्रियों के पास स्वप्न में देवी पधारी और उनसे बोली -  तुम लोगों में से किसी एक स्त्री की जाँघ से एक पुरुष उत्पन्न होगा। मेरा अंशभूत यह पुरुष तुम लोगों का कार्य संपन्न करेगा। यों कहकर भगवती जगदम्बा अंतर ध्यान हो गयी।             नींद टूटने पर उन सभी  स्त्रियों के मन में बड़ा हर्ष हुआ। उनमे से एक चतुर स्त्री ने गर्भ धारण किया। उसका हृदय भी भयभीत था। वंश वृद्धि के लिए वह वहां से भ...
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                                        गूगल से साभार चित्र           इस प्रकार भगवती से वर पाकर देवता तथा  मुनि वृत्रासुर के श्रेष्ठ स्थान पर गए। और वृत्रासुर के समीप जाकर प्रिय वचन कहने लगे। उन्होंने कपट भरी बड़ी मधुर तथा सरस वाणी में वृत्रासुर को संधि करने के लिए प्रसन्न कर लिया।         उनकी बात सुनकर वृत्रासुर ने कहा - महाभाग ! सूखे अथवा गीले अस्त्र ,पत्थर तथा भयंकर वज्र से दिन में या रात में देवताओं सहित इंद्र मुझे न मारें। इसप्रकार की शर्त पर इनके साथ संधि की जा सकती है। अन्यथा संधि बिलकुल असंभव है। तदनन्तर उन्होंने वृत्रासुर से कहा - बहुत ठीक ऐसा ही होगा। इंद्र ने  आकर सारी शर्तों को स्वीकार  कर लिया। तब से वृत्रासुर इंद्र की बातों पर विश्वास करने लगा। इस प्रकार की मित्रता हो जाने पर वृत्रासुर के मन में बड़ी प्रसन्नता हुयी। फिर भी वृत्रासुर को मरने की इच्छा इंद्र के मन में बानी हुयी थी।  ...
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                                                        गूगल से साभार चित्र         तदनन्तर इंद्र के साथ सभी देवता भगवान शंकर और ब्रह्मा जी को साथ लेकर भगवान विष्णु के स्थान पर पहुंचे। वेद में कहे पुरुषसूक्त मन्त्र से स्तुति करने के बाद श्री हरि से बोले -विभो ! त्रिलोकी में कोई भी बात आप से छिपी नहीं है। फिर भी हम से बार - बार आने का कारण क्यों पूछते हैं ?           भगवान विष्णु ने कहा - देवताओं ! तुम्हें भयभीत नहीं होना चाहिए।  वृत्रासुर को मारने का उपाय मैं तुम्हें बताता हूँ।  इस दैत्य ने तपस्या कर ब्रह्मा जी से वर प्राप्त कर लिया है। इस कारण इस दैत्य को जीतने में सब प्राणी असमर्थ हैं। पहले इसे किसी प्रकार प्रलोभन से वश में करो। फिर अवसर पाकर इसको मार डालना चाहिए। मैं इंद्र की सहायता के लिए ,इनके श्रेष्ठ आयुध वज्र में गुप्तरुप से प्रवेश कर जाता हूँ। गन्धर्वो तुम लोग वृत्र...
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                                                      गूगल  साभार चित्र         मित्रों आज हम वृत्रासुर के कथानक को आगे बढ़ाते हुए कि उसने ब्रह्मा जी से वरदान पाकर आगे क्या किया।     जब कोई कथानक ज्यादा बड़ा हो जाता है तब श्रोताओं की रूचि घटने लगती है। उस रूचि को बरकरार रखने के लिए हम बीच में दूसरा कथानक आप से कहने लगते हैं। आज  हम वृत्रासुर के उसी कथानक को आगे बढ़ाएंगे।       श्री ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त करने के पश्चयात वृत्रासुर अपने पिता के पास पंहुचा और उसने अपने वरदान प्राप्त करने की सच्चाई अपने पिता को कह सुनाई। वर युक्त पुत्र को पाकर त्वस्ता बहुत प्रसन्न हुए और पुत्र से बोले -महाभाग ! तुम्हारा कल्याण हो। अब तुम मेरे परम् शत्रु इंद्र को परास्त करो। वह बड़ा पापी है। उसने मेरे पुत्र त्रिसिरा का वध कर डाला था। अतः तुम उसे परास्त कर स्वर्ग का शासन अपने हाथ में ले लो। बेटा ! ...
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                                         गूगल से साभार चित्र                  इस प्रकार लक्ष्मी जी को वरदान देकर गौरीपति भगवान शंकर पार्वती सहित अंतर ध्यान हो गए। लक्ष्मी जी वही रुककर भगवती जगदम्बा के अत्यंत मनोहर चरण कमलों का ध्यान करने लगी। पतिदेव हय का रूप धारण करके यहाँ कब पधारेंगे इस प्रतीक्षा में प्रेमपूर्वक गदगद वाणी से बार - बार श्री हरि  की स्तुति करने लगी।           लक्ष्मी जी को वर देकर भगवान् शंकर तुरंत कैलाश पहुंचे और वहाँ परम बुद्धिमान चित्ररूप को दूत बनाकर लक्ष्मी जी का कार्य पूर्ण करने के लिए वैकुण्ठ भेजने हेतु तैयार हुए।  भगवान शिव ने कहा - चित्ररूप ! तुम श्री हरि के पा जाकर इस प्रकार प्रेमपूर्वक मेरी बातें उन से कहो, जिससे वे श्री लक्ष्मी जी का  शोक दूर करने के लिए तुरंत प्रयत्नशील हो जाये।           श्री विष्णु जी के उ...
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                                            गूगल से साभार चित्र          श्री विष्णु भगवान् ने माता महालक्ष्मी को घोड़ी का रूप धारण करने का श्राप क्यों दिया ? आज हम इस कथानक के विषय में बताएँगे।        एक बार लीला में श्री विष्णु ने लक्ष्मी जी को घोड़ी बनने का श्राप दे दिया था। भगवान् की हर एक लीला में कुछ उद्देश्य अवश्य छिपा होता है। इसी रहस्य के कारण लक्ष्मी जी दुखी तो बहुत हुयी परन्तु वे भगवान् को प्रणाम कर और उनकी आज्ञा लेकर मृत्यु लोक में चली गयी। सूर्य की पत्नी ने जिस स्थान पर अत्यन कठोर तप किया था ,उसी स्थान पर लक्ष्मी जी घोड़ी का रूप धारण कर रहने लगी। वहाँ यमुना और तमसा नदी के संगम पर सुपर्णाक्ष नामक स्थान था। वहाँ सुन्दर वन सुशोभित थे। वहीं रहकर लक्ष्मी जी ने जो समस्त संसार के मनोरथ पूर्ण करती हैं वहां पर जो मस्तक पर चन्द्रमा धारण करते हैं उन त्रिशूलधारी भगवन शंकर का एकाग्रचित्त से ध्यान करने लगी। उस पावन तीर...
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                                            गूगल से साभार चित्र        मित्रों दीपावली के दिन श्री गणेश जी एवं लक्ष्मी जी की पूजा करते समय सर्वप्रथम श्री गणेश जी के बारह नामों के द्वारा जो कि  पहले कथानको में बताये गए हैं।  श्री गणेश जी की प्रार्थना कर नीचे दिए गए स्त्रोतों द्वारा उनसे हृदय से प्रार्थना करें कि वह उनके पूजन में विराजमान होकर उन्हें आशीर्वादित कर धन - ध्यान से बुद्धि विवेक के साथ आशीर्वादित कर उनके परिवार में पूरे वर्ष विराजमान रहें।                सम्पूर्ण सौभाग्य प्रदान करने वाले सचिदानंद स्वरूप विघ्नराज गणेश को नमस्कार है। जो दुष्ट अरिष्ट ग्रहों को नाश करने वाले परात्पर परमात्मा हैं उन गणपति को नमस्कार है। जो महापराक्रमी ,लम्बोदर ,सर्पमय यज्ञोपवीत से सुशोभित ,अर्धचंद्रधारी और विघ्न समूह का विनाश करने वाले हैं ,उन गणपति देव की मैं वंदना करता हूँ। हेरम्ब को नमस्कार है। भगवान् ...
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                                                 गूगल से साभार चित्र          धनतेरस के दूसरे दिन छोटी दीपावली का उत्सव मनाया  जाता हैं। इस दिन विशेष रूप से श्री महालक्ष्मी जी की पूजा की जाती हैं। इस दिन को नरकचौदस नाम से भी जाना जाता है। आज के दिन घर के द्वार पर चार बत्ती का यम के नाम का दीपक जलाया जाता है। आज हम नरकासुर की कथा का कथानक पढ़ेंगे।         नरक नाम का दानव प्राग्ज्ञोजिषितपुर का राजा था।  वह भूमि देवी का पुत्र था। उसे भौमासुर के नाम से भी पुकारा जाता था। उसने हाथी का रूप धारण कर प्रजापति त्वस्ता की पुत्री कसेरू का जिसकी आयु चौदह वर्ष थी ,अपहरण कर लिया था। वह उसे मोहवश  हर ले गया था।  उसने उसे ना - ना प्रकार के रत्नो ,आभूषणों ,वस्त्रों  आदि के प्रलोभन द्वारा अपनी रानी बनाने का प्रयत्न किया।       उसने गन्धर्व कन्याओं का भी अपहरण किया। परन्तु ...