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Showing posts from 2018
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               देवी बोलीं ---  हे पर्वतराज !इसके ऊपर नाभिदेश में मेघ तथा विदुत के समान कान्ति वाला अत्यंत तेजसंम्पन्न और महान प्रभा से युक्त मणिपूरक चक्र है। मणि के सदृश प्रभा वाला होने के कारण यह मणिपद्म भी कहा जाता है। यह दस दलों से युक्त है और ड ,ढ ण ,त ,थ ,द ,ध ,न ,प ,फ ,-इन अक्षरों से समन्वित है। भगवान विष्णु के द्वारा अधिष्ठित होने के कारण यह कमल उनके दर्शन का महान साधन है।               उसके ऊपर उगते हुए सूरज के समान प्रभा से संपन्न अनाहत पदम् है। यह कमल क ,ख ,ग घ ,ंड़ ,च ,छ ज झ ,ज़ ट ठ ,इन अक्षरों से युक्त बारह पत्रों से प्रतिष्ठित है। उसके मध्य में  हजार सूर्यों के समान प्रभा वाला वाणलिंग स्तिथ है। बिना किसी आघात के इसमें शब्द होता रहता है अतः मुनियों के द्वारा उस शब्द ब्रह्ममय पद्म को अनाहत कहा गया है।            उसके ऊपर सोलह दलों से युक्त विशुद्ध नामक कमल है। महती प्रभा से युक्त तथा धूम्र वर्ण वाला यह कमल अ ,आ ,इ ,ई।,से लेकर ाः तक इन सोलह...
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                                                        पर्वतराज हिमालय ने आदिशक्ति से पुछा -हे माहेश्वरी !अब आप ज्ञान प्रदान करने वाले योग का  सांगोपांग वर्णन कीजिये जिसकी साधना से मैं तत्वदर्शन की प्राप्ति के योग्य हो जाऊं।         आदिशक्ति बोलीं --हे नग !यह योग न आकाश मण्डल में है न पृथ्वी ताल पर है और न तो रसातल में ही है। योग विद्या के विद्वानों ने जीव और आत्मा के ऐक्य यानी एकाकारिता को ही योग कहा है। हे अनघ !उस योग विद्या में विघ्न उत्पन्न करने वाले काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह ,और मात्सर्ग नामक ये छह प्रकार के दोष बताये गए हैं। अतः योग  के अंगों के द्वारा उन विघ्नों का उच्छेद करके योगियों को योग की प्राप्ति करनी चाहिए।       देवी बोलीं --मुनियों ने जीवात्मा और परमात्मा में नित्य समत्व भावना रखने को समाधि क...
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गूगल से साभार चित्र                                                                                    हे पृथ्वीपते यह मेरा शरीर आपकाही है   यद्यपि मैं समर्थ  नहीं हूँ फिर भी आप कहिये मैं आपकी क्या सेवा  करूँ  ?मेरे रहते आपको किसी प्रकार की चिंता नहीं होनी चाहिए। में आपका  असाध्य कार्य भी तत्काल पूरा करूंगा।                हे राजन !आप बताइये की आपको किस बात की चिंता है ?मैं अभी धनुष लेकर उसका निवारण कर दूंगा। यदि मेरे इस शरीर से भी आपका कार्य सिद्ध हो सके तो मैं आपकी अभिलाषा पूर्ण करने को तत्पर हूँ। उस पुत्र को धिक्कार है ,जो समर्थ होकर भी अपने पिता की इच्छा पूर्ण नहीं करता। जिस पुत्र के द्वारा पिता की चिंता दूर न हुई ,उस पुत्र का जन्म लेने का क्या प्रयोजन ?         ...
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                                                       गूगल से साभार चित्र          राजा शांतनु ने निषाद कन्या से कहा -मेरी प्रियतमा मुझे छोड़कर चली गयी है तबसे मैंने अपना दूसरा विवाह नहीं किया है। हे कांते !मैं इस समय विधुर हूँ -तुम जैसी सर्वांग सुंदरी को देखकर मेरा मन अपने वशमें नहीं रहगया है।        राजा की अमृतरस के सामान मथुर तथा मनोहारी बात सुनकर वह दास कन्या सुगंधा सात्विक भावसे युक्त होकर धैर्य धारण करके राजा से बोली -हे राजन !आपने मुझसे जोकुछ कहा वह यथार्थ है किन्तु आप अच्छी तरह जान लीजिये कि मैं स्वंतंत्र नहीं हूँ। मेरे पिताजी ही मुझे दे सकते हैं। अतएव आप उन्हीं से मेरे लिए याचना कीजिये         मैं एक निषाद की कन्या होती हुई भी स्वेच्छा चारिणी नहीं हूँ। मैं सदा पिता के वश में रहती हुई सब काम करती हूँ। यदि मेरे पिता जी मुझे आपको देना स्व...
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           ऋषियों ने सूतजी से पूछा -हे धर्मज्ञ व्यासजी की सत्यवती नाम की माता जो पवित्र गंध वाली थी। राजा शांतनु को पत्नी रूप से कैसे प्राप्त हुईं ?हमें विस्तार से बताइये          सूतजी बोले -राजर्षि शांतनु सदा आखेट करने में तत्पर रहते थे। वे वन में जाकर मृगों आदि का वध किया करते थे। राजा शांतनु केवल चार वर्ष तक भीष्म के साथ उसी प्रकार सुख से रहे जिस प्रकार भगवान शंकर कार्तिकेय के साथ आनंद पूर्वक रहते थे।          एक बार वे महाराज शांतनु वन में वाण छोड़ते हुए बहुत से गैंडों आदि का वध करते हुए किसी समय यमुने नदी के किनारे जा पहुंचे। राजा ने वहां पर कहीं से आती हुई उत्तम गंध को सूंघा तब उस सुगन्धि के उदगम का पता लगाने के लिए वे वन में विचरने लगे।       वे वड़े असमंजस में पड़ गए। की यह मनोहर सुगन्धि न मंदार पुष्प की है और न कस्तूरी की है ,न मानती की है न चम्पा की है और न तो केतकी की ही है। मैंने ऐसी अनुपम सुगन्धि पूर्व में कभी नहीं अनुभव की। मुझे मुग्ध कर दे...
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                                                                                                 गूगल से साभार चित्र                                                         कुछ समय बीतने पर महाराज आखेट के लिए वन में गए। वहाँ अनेक प्रकार के मृगों भैंसों तथा सूकरों को अपने वाणों से मारते हुए वे गंगाजी के तटपर जा पहुँचे। उस नदी में बहुत थोड़ा जल देखकर वे राजा शान्तनु बड़े आश्चर्य में पड़ गए।             उन्होंने वहाँ नदी के किनारे खेलते हुए एक बालक को महान धनुष को खींचकर बहुत से बाणों को छोड़ते हुए देखा उसे देखकर राजा शांतनु बड़े विस्मित हुए और कुछ भी न जा...
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                                             मित्रों हर धर्म एवं हर समाज    में माता पिता को ईश्वर से  ऊँचा स्थान दिया जाता है ,क्योंकि हमें इस संसार मैं मनुष्य योनि  हमारे माता पिता द्वारा ही प्राप्त होती है। इसलिए हम  अपने माता पिता का यह कर्ज कभी भी नहीं उतार सकते। अगर हम अपने मा.तापिता की खुशी के लिए कोइ कार्य कर सकें जिसमें हमारी सारी खुशियां कुर्बान हों तो भी हमें अपने ऊपर  गर्व होना चाहिए। आज जो कथानक आरंभ हो रहा है उसमें एक पुत्र का अपने पिता की खुशी के लिए किया गया बलिदान इतिहास के पन्नों पर लिख दिया गया।         मित्रों उस नायक का नाम आप आगे खुद जान लेगें इसलिए इस कथानक को पढ़ते रहिये        सूतजी बोले प्रतीप के स्वर्ग चले जाने पर सत्यपराक्रमी राजा  सांतनु व्याघ्र तथा मृगों को मारते हुए मृगया में तत्पर हो गए किसी समय गंगा के किनारे घने वन में विचरण करते हुए रा...
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                                                         गूगल से साभार चित्र           श्री नारायण बोले -हे नारद !अब आप जगदम्बा का अदभुत तथा उत्तम माहात्म्य और अंग के पुत्र मनु ने जिस तरह से श्रेष्ठ राज्य प्राप्त किया था उसे सुनिए              राजा अंग के उत्तम पुत्र चाक्षुष छठें मनु हुए वे सुपुलेह नामक ब्रह्मर्षि की शरण में गए। उनहोंने ऋषि से कहा -शरणागतों की कष्टों को दूर करने वाले हे ब्रह्मर्षि !मैं आपकी शरण में आया हूँ। हे स्वामिन !मुझ सेवक को ऐसी शिक्षा दीजिये जिससे मैं श्री प्राप्त कर सकूं ,पृथ्वी पर मेरा आकण्ठ अधिपत्य हो जाए ,मेरी भुजाओं में अधिक बल आ जाए तथा अस्त्र -शस्त्र के प्रयोग में निपुण तथा समर्थ हो जाऊं ,मेरी संतानें चिरकाल तक जीवित रहें ,मैं उत्तम आयु वाला हो जाऊं तथा आपके उपदेश से अंत में मुझे मोक्ष लाभ हो जाए          ...
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                                                                                                     गूगल से साभार चित्र श्री नारायण बोले -(हे नारद ) राजा वैवस्वत सातवें मनु कहे गए हैं। समस्त राजाओं में मान्य तथा दिव्य आनंद का भोग करने वाले वे श्राद्धदेव भी कहे जाते हैं वे वैवस्वत मनु पराम्बा भगवती की तपस्या करके उनके अनुग्रह से मनवन्तर के अधिपति बन गए            आठवें मनु भूलोक में सावर्णि नाम से विख्यात हुए पूर्व जन्म में देवी की आराधना करके तथा उनसे वरदान प्राप्त कर वे मनवन्तर के अधिपति हो गए। वे सभी राजाओं से पूजित ,धीर ,महापराक्रमी तथा देवी भक्तिपरायण थे          नारदजी बोले -उन सावर्णि मनु ने पूर्वजन्म में भगवती की पार्थिव मूर्ती की किस प्रकार आराधना की थी ...
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       श्रेष्ठ वसु की पत्नी के द्वारा नंदिनी गाय के विषय में पूछे जाने पर उनके पति ने कहा - हे सुंदरी! यह महर्षि वसिष्ठ जी की गाय है। इस गाय का दूध स्त्री या पुरुष जो कोई भी पीता  है उसकी आयु दस हजार वर्ष की हो जाती है। और उसका यौवन सर्वदा बना रहता है। यह सुकर उस सुंदरी स्त्री ने कहा - मृत्यु लोक में मेरी एक सखी है, वह राजर्षि उशीनर की परम सुंदरी कन्या है। उसके लिए अत्यंत सुन्दर तथा सब प्रकार की कामनाओं को देने वाली इस गाय को बछड़े सहित अपने आश्रम में ले चलिए। जब मेरी सखी इसका दूध पीयेगी तब वह निर्जरा एवं रोग रहित होकर मनुष्यों में एक मात्र अद्वितीय बन जाएगी। यह सुनकर उन श्रेष्ठ वसुओं ने मुनि का अपमान करके नंदिनी गाय का अपहरण कर लिया।        महा तपस्वी वसिष्ठ जी  ने जब अपने आश्रम में बछड़े सहित नंदिनी को नहीं देखा तब उन्होंने उसे वनों एवं गुफाओं में देखा। जब वह गाय नहीं मिली तब मुनि ने ध्यान योग से उसे वसुओं के द्वारा हरी गयी जानकर अत्यंत कुपित हुए। वसुओं ने मेरी अवमानना करके गाय चुरा ली है। वे सभी मानव यौनि में जन्म ग्रहण करेंगे। ...
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         मुनि के ऐसा कहने पर कि हे  सुंदरी ! इस कार्य में देवताओं का ही कोई कार्य छुपा हुआ है। इसी कारण मैं तुम्हारे ऊपर कामाशक्त हुआ हूँ। ऐसा कहकर अपने वश में आयी हुयी उस कन्या के साथ संसर्ग करके मुनि श्रेष्ठ पराशर तत्काल यमुना नदी में स्नान कर वह से शीघ्र चले गए। वह साध्वी मत्स्यगंधा  भी तत्काल गर्भवती हो गयी। यथा समय उसने यमुना जी के द्वीप में दूसरे कामदेव के तुल्य एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया।            उस पुत्र ने पैदा होते ही अपनी माता से कहा - हे माता ! मन में तपस्या का निश्चय करके ही अत्यंत तेजस्वी मैं गर्भ में प्रविष्ट हुआ था। हे माते ! अब आप अपनी इच्छा के अनुसार कहीं भी चली जाएँ और मैं भी यहाँ से तप करने के लिए जा रहा हूँ। हे माता ! आपके स्मरण करने पर ,मैं अवश्य ही दर्शन दूंगा। हे माता ! जब कोई उत्तम कार्य आ पड़े तब आप मुझे स्मरण कीजिये। मैं शीघ्र ही उपस्थित हो जाऊंगा। आप चिंता छोड़ सुखपूर्वक रहिये। मत्स्यगंधा ने ( सत्यवती ) बालक को यमुना जी में जन्म दिया था। अतः वह बालक " द्वैपायन " नाम से विख्यात हुआ। वि...
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     मछुआरे ने मछली के पेट से निकले उन दोनों रूपवान बालक तथा बालिका को राजा उपरिचर को सौंप दिया।  राजा भी आश्चर्यचकित हुआ और उसने उस सुन्दर पुत्र को ले लिया। जो आगे चलकर मत्स्य नामक राजा हुआ।          राजा उपरिचर वसु ने वह कन्या उस मछुआरे को ही दे दी। जो आगे चलकर मत्स्यगंधा नाम से कही जाने लगी। उस मछुआरे दास के घर वह सुंदरी धीरे - धीरे बड़ी होने लगी।          जब मुनि ने उस अप्सरा को श्राप दिया तब वह विस्मित हो गयी और दीनता पूर्वक रोती  हुयी उस ब्राह्मण से  प्रार्थना करने लगी - दयालु ब्राह्मण ने उस रोती  हुयी स्त्री से कहा - हे कल्याणी ! तुम शोक न करो मैं तुम्हारे श्राप के अंत का उपाय बताता हूँ। मैंने क्रुद्ध होकर जो श्राप दिया है उससे तुम मत्स्य यौनि को प्राप्त होगी। किन्तु तुम अपने उदर से एक युगल मानव संतान उत्पन्न कर उस श्राप से मुक्त  हो जाओगी।         उसके ऐसा कहने पर वह यमुना जल में मछली का शरीर पाकर तथा दो सन्तानो को उत्पन्न करके श्राप ...
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      जिनके विशिष्ट वाग्भव बीजमंत्र ' ऐं 'का किसी भी बहाने से उच्चारण करते ही शाश्वती सिद्धि प्राप्त हो जाती है। उन इच्छित फल देने वाली भगवती का सभी लोगों को अपनी समस्त कामनाएं पूर्ण करने के लिए समर्पण भाव से सम्यक स्मरण करना चाहिए।          उपरिचर नाम के एक सत्यवादी ,धर्मात्मा ,ब्राह्मणपूजक तथा श्रीमान राजा हुए। जो चेदि देश के शासक थे। उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर देवराज इंद्र ने उन्हें स्फटिक मणि का बना हुआ एक सुन्दर तथा दिव्य विमान दिया। उस दिव्य विमान पर चढ़ कर चेदिराज सदा विचरण करते थे। वे कभी भूमि पर न उतारते तथा पृथ्वी से ऊपर ही ऊपर चलने के कारण सभी लोकों में उपरिचर वसु के नाम से प्रसिद्ध हुए। राजा अत्यंत धर्मपरायण थे। उनकी पत्नी का नाम गिरिका था। जो रूपवती तथा सुन्दर थी।        महाराज उपरिचर के पांच पुत्र थे जो महान वीर एवं प्रतापी थे। उन्होंने अपने राजकुमारों को अलग -अलग देशों का राजा   बना दिया।        एक बार राजा वसु की पत्नी गिरिका ने स्नान से पवित्र होकर राजा से पुत्र प्...
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    सुमेरु पर्वत के शिखर पर ही इंद्रलोक ,ब्रह्मलोक ,सेमिनीपुरी ,सत्यलोक ,कैलाश और बैकुण्ठ ये सभी लोक प्रतिष्ठित है। बैकुण्ठ को ही वैष्णवपद कहा जाता है।         महाराज रेवत  सुन्दर नेत्रों वाली पुत्री रेवती को साथ में लेकर ब्रह्मलोक पहुंच  गए। उस समय गन्दर्भ लोगों  का संगीत हो रहा था। वे अपनी कन्या के साथ कुछ देर तक सभा में रूककर संगीत सुनते हुए आनंद लेते रहे। गन्दर्भो का संगीत समाप्त हो जाने पर परमेश्वर ब्रह्मा जी को प्रणाम कर उन्हें कन्या रेवती को दिखाकर अपना आशय प्रकट किया।       राजा बोले- हे देवेश ! मैं अपनी पुत्री किसको प्रदान करूँ ? यही पूछने के लिए आपके पास आया हूँ। अतः आप इसके योग्य वर बतायें। मैंने उत्तम कुल में उत्पन्न बहुत से राजकुमारों को देखा है। किन्तु किसी में भी मेरा मन स्थिर नहीं होता है। इसलिए देवेश ! वर के विषय में आपसे पूछने के लिए यहाँ आया हूँ। आप किसी योग्य राजकुमार के विषय में बताइये जो कुलीन ,बलवान, समस्त लक्षणों से संपन्न ,दानी तथा धर्मपरायण हो।       ब्रह्म...
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                                                                                         गूगल से साभार चित्र          देवताओं और ब्राह्मणों द्वारा परमेश्वरी की स्तुति की - हे परमेश्वरी !आपको नमस्कार है। हे देवी ! हमारी शांति के लिए आपने हजारों नेत्रों से संपन्न अनुपम  रूप धारण किया है। अतः आप शताक्षी नाम से विख्यात हों। हे जननी ! भूख से अत्यंत पीड़ित होने के कारण आपकी स्तुति करने के लिए हम लोगों में सामर्थ नहीं है। हे अम्बिके ! अब आप कृपा कीजिये और हमें वेदों को प्राप्त कराइये।         उनका यह वचन सुनकर कल्याणकारिणी भगवती ने उन्हें खाने के लिए अपने हाथों में स्थित शाक तथा स्वादिष्ट फल - मूल प्रदान किये। साथ ही नानाविध अन्न तथा पशुओं के खाने योग्य पदार्थ उन्हें प्रदान किये। उसी दिन से शाकंबरी - यह उ...
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                                         गूगल से साभार चित्र   इस प्रकार कुछ समय बीतने पर गंगाजी ने महाराज शांतनु से गर्भ धारण किया और यथा समय उन सुनयनी ने एक वसु को पुत्र रूप में जनम दिया। उन्होंने उस बालक को उत्पन्न होते ही तत्काल जल में फेंक दिया। इस प्रकार दूसरा तीसरे चौथे पांचवे और छठे तथा सातवें पुत्र के मारे जाने पर राजा सांतनु को बड़ी चिंता हुई      यह मुझे त्याग कर चली जाएगी। मेरा आठवाँ  गर्भ भी इसे प्राप्त हो गया है यदि मैं इसे रोकता नहीं हूँ तो यह इसे भी जल में फेंक देगी। यह भी मुझे संदेह है कि भविष्य में कोइ और सन्तति  होगी अथवा नहीं        ।              वंश की रक्षा के लिए मुझे कोई दूसरा यत्न करना ही होगा तदनन्तर यथा समय जब वह आठवाँ वसु पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। जिसने अपनी स्त्री के वशीभूत होकर वशिष्ठ की नंदिनी गाय का हरण कर लिया था ,तब उस पुत्र को देखकर राजा शांतनु गंगा जी के ...
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     प्राचीन काल की बात है दुर्गम नामक एक अत्यंत भयंकर महा दैत्य था। वह महान दुष्ट दुर्गम रुरु का पुत्र था।        देवताओं का बल वेद है। उस वेद के नष्ट हो जाने पर देवताओं का भी नाश हो जायेगा। अतः पहले वेद नाश किया जाना चाहिए। ऐसा सोचकर वह तप करने के लिए हिमालय पर्वत पर चला गया। वहाँ पर मन में ब्रह्मा जी का ध्यान करके केवल वायु पीकर रहते हुए , एक हजार वर्ष तक कठोर तपस्या  की। उसके तेज से देव दानव सहित  सभी प्राणी भयभीत हो उठे। तब उसके तप से प्रसन्न होकर विकसित कमल के समान सुन्दर मुख वाले चतुर्मुख भगवान् ब्रह्मा हंस पर आरूढ़ होकर उसे वर देने के लिए वहाँ गए।        ब्रह्मा जी ने स्पष्ट वाणी में कहा - तुम्हारा कल्याण हो। तुम्हारे मन में जो भी इच्छा हो उसे वर के रूप में माँग लो। मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर इस समय उपस्थित हुआ हूँ।          ब्रह्मा जी के मुख से यह वाणी सुनकर वह दैत्य समाधी से उठ खड़ा हुआ। और उसने पूजा करके वर मांगते हुए कहा - हे सुरेश्वर !मुझे सभी वेद देने की कृपा की...
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     च्यवन मुनि के द्वारा अश्विनी कुमारों को सोमभाग दे दिए जाने पर इंद्र अत्यंत कुपित हुए और उन्होंने अपना परक्रम दिखते हुए मुनि  से कहा - आप इस प्रकार की अनुचित मर्यादा स्थापित मत कीजिये। अन्यथा मेरा विरोध करने वाले  आप मुनि का भी दूसरे विश्वरूप की भांति वध कर डालूंगा।       च्यवन मुनि बोले हे मघवन ! जिन महात्मा अश्विनी कुमारो ने रूप सम्पदा के तेज के द्वारा मुझे दूसरे देवता की भांति बना  दिया है , उनका अपमान मत कीजिये। हे देवेंद्र !आपके अतिरिक्त अन्य देवता सोमभाग क्यों पाते हैं ? परम् तपस्वी इन अश्विनी कुमारों को भी आप देवता समझें।       इंद्र बोले - ये दोनों चिकित्सक किसी प्रकार भी यज्ञ में सोमभाग पाने के अधिकारी नहीं हैं। यदि आप इन्हें सोमरस देंगें तो मैं अभी आपका सिर काट दूंगा।         इंद्र की इस बात की उपेक्षा करके च्यवन मुनि ने अश्विनी कुमारों को यज्ञ भाग प्रदान कर दिया। जब उन दोनों ने पीने की इच्छा से सोमपात्र ग्रहण किया तब शत्रु सेना का भेदन करने वाले इंद्र ने मुनि से ...
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              राजा शर्याति जब चिंता के सागर में डूबे हुए थे ,उसी समय सुकन्या ने चिंता से आकुल अपने पिता को संयोग वश देख लिया। उन्हें देखते ही प्रेम से परिपूर्ण हृदय वाली वह सुकन्या अपने पिता राजा शर्याति के पास गयी और वहां जाकर उनसे पूछने लगी। हे राजन ! कमल के समान नेत्र वाले बैठे हुए इन युवा मुनि को देखकर चिंता के कारण व्याकुल मुखमण्डल आप इस समय क्या सोच रहे हैं ? हे पिताजी ! इधर आईये और मेरे पति को प्रणाम कीजिये। हे मनुवंशीय राजन ! इस समय आप शोक मत कीजिये।         तब अपनी पुत्री सुकन्या की बात सुनकर क्रोध से संतप्त राजा शर्याति अपने सामने खड़ी उस कन्या से कहने लगे - हे पुत्री ! परम तपस्वी वृद्ध तथा नेत्रहीन वे मुनि च्यवन कहाँ है ? ये मदोन्मत युवक कौन हैं ? इस विषय में मुझे महान  संदेह हो रहा है। दुराचार में लिप्त रहने वाली हे पापिनी ! हे कुलनाशिनी ! क्या तुमने च्यवन मुनि को मार डाला और काम के वसीभूत होकर इस पुरुष का नये पति के रूप में वरण कर लिया। इस आश्रम में रहने वाले उन मुनि को मैं इस समय नहीं देख रहा ...